सोशल मीडिया के युग में नेरुदा से क्या सीख सकते हैं?

मार्क आइजनर

द पोएट्स कॉलिंग के लेखक तथा ‘द एसेंशियल नेरुदा: सेलेक्टेड पोयम्स’ के अनुवादक और संपादक

विश्व प्रसिद्ध कवि पाब्लो नेरुदा को प्रेम और क्रांति का कवि कहा जाता है। वे साहसी कवि थे। कमरें मे बैठ कर लिखने वाले नहीं बल्कि मैदान में उतर कर तानाशाह से लड़ने वाले कवि। यही कारण कि उनकी कविताएं प्रतिरोध की कविताएं हैं। दुनिया में जहां प्रतिरोध है वहां नेरुदा की कविताएं हैं। 1950 में अंतर्राष्ट्रीय शांति पुरस्कार, 1953 में लेनिन शांति पुरस्कार और स्टालिन शांति पुरस्कार तथा 1971 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वाले पाब्लो नेरुदा का जन्‍म 12 जुलाई 1904 को हुआ था। उनका मूल नाम नेफ्ताली रिकार्दो रेइस बासोल्ता था। उनके रचना संसार का एक छोर प्रेम कविताएं हैं तो दूसरा छोर संघर्ष और प्रतिरोध की प्रतिनिधि आवाज। चिली के तानाशाहों के विरोध में बोलने के लिए उन्हें निर्वासित होना पड़ा। नेरुदा चिली की सामाजिक उथल-पुथल के प्रत्यक्षदर्शी नहीं, बल्कि भुक्तभोगी थे। चिली के घटनाक्रम से आहत नेरुदा कैंसर से भी जूझ रहे थे। कथित तौर पर तानाशाह के आदेश पर एक रोज अस्पताल के एक डॉक्टर ने उन्हें कोई गलत इंजेक्‍शन देकर घर भेज दिया, जहां कुछ घंटों में ही बीसवीं सदी का यह महान कवि 23 सितंबर 1973 को चिरनिद्रा में चला गया।

अपने प्रिय कवि के अंतिम दर्शन के लिए तानाशाह के कर्फ्यू के आदेश के बावजूद चिली की राजधानी सांतिआगो में सड़कों पर हजारों लोग उतर आए। तानाशाह की बंदूकों के सामने कवि और कविता भारी पड़े। ऐसे में सवाल उठता है कि आज के समय में जब अभिव्‍यक्ति के इतने मंच हैं और प्रतिरोध की आवाजों की इतनी जरूरत है, तब क्‍या वाकई में नेरुदा और उनका लिखा हमें राह दिखा सकता है? इस सवाल का जवाब खोजने में यह आलेख हमारी मदद कर सकता है:

सामाजिक अन्याय, युद्ध और उदार लोकतंत्र के क्षरण के समय में हमें प्रेरित करते हैं नेरुदा

जब मैंने एक दशक से पहले पाब्लो नेरुदा की जीवनी लिखना शुरू की तो मैं कविता की राजनीतिक शक्ति और सामाजिक परिवर्तन को प्रेरित करने की इसकी क्षमता की पड़ताल करना चाहता चाहता था। नेरुदा की कविताएं उनके द्वारा अपने समूचे जीवन में व्‍यक्‍त मानवता का एक हिस्‍सा हैं। यानी, नेरुदा ने जब कविताएं नहीं लिखीं तब भी मानवता के पक्ष में वे मैदान में डटे रहे।

मैंने जब ‘नेरुदा: द पोएट्स कॉलिंग’ नामक पुस्तक को पूरा किया तो महसूस हुआ कि मैं जिन सवालों के जवाब बरसों से खोज रहा हूं वे अचानक नई शक्‍ल और अहमियत लेने लगे हैं। जैसे-जैसे राजनीतिक क्षेत्र में प्रतिरोध तेजी से सक्रिय शब्द बनता जा रहा है तब पिछली सदी के सबसे महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित प्रतिरोध कवियों में से एक नेरुदा से हम क्‍या सीख सकते हैं? जब हम अपना सांस्कृतिक भविष्‍य लिख रहे हैं तब वे हमें क्या दे सकते हैं? इन सवालों के कुछ जवाब या कम से कम एक दृष्टिकोण तो हमें नेरुदा के जीवन और कार्य में मिल सकता है।

नेरुदा का कृतित्व सीधे उन ऐतिहासिक घटनाओं से आकार लेता है जिनमें उन्होंने भूमिका निभाई थी। अपनी युवावस्था के आरंभ में चिली के क्रांतिकारी छात्र आंदोलन के दौरान उन्होंने एक कार्यकर्ता-लेखक की भूमिका निभाई। इस तरह वे देश को नियंत्रित करने वाले अभिजात वर्ग को चुनौती देने वाली युवा पीढ़ी की आवाज बन गए थे। अपने अंतिम वर्षों में, उन्होंने अमेरिकी हस्तक्षेप के खिलाफ़ चिली का जोरदार पक्ष लिया और फ्रांस में राजदूत के रूप में, साल्वाडोर एलेंडे की ऐतिहासिक समाजवादी सरकार का प्रतिनिधित्व किया। पाठकों और स्वयं के लेखन के साथ उनके रिश्ते ने उस वक्‍त के राजनीतिक संकटों और अधिनायकवाद से आकार लिया था।

चिली के कुटिल व अप्रत्याशित स्‍वभाव वाले राष्ट्रपति गेब्रियल गोंजालेज विडेला 1947 में चिली में शीत युद्ध के शुरू होने पर नेरुदा सहित उन्हें चुनने में सहायत अन्य लोगों के खिलाफ़ हो गए। राष्‍ट्रपति ने श्रमिकों और वामपंथियों के खिलाफ दमनकारी कदम उठाए। उन्होंने कम्युनिस्ट अखबार को बंद कर दिया। तीन सौ हड़ताली कोयला खनिकों को पैटागोनिया के एक द्वीप पर जेल में डाल दिया। श्रमिक नेताओं और अन्य विरोधियों को बंद कर दिया। उस समय सीनेटर रहे नेरुदा ने अपने लेखन और अपने कार्यों दोनों के माध्यम से सरकार की निंदा की। उन्होंने सीनेट में स्‍पष्‍ट रूप से कहा, “अब कांग्रेस भी सेंसरशिप के अधीन है। अब आप बात भी नहीं कर सकते … कोयला-खनन क्षेत्र में हत्याएं हुई हैं!”

राष्‍ट्रपति गोंजालेज विडेला ने और कुछ नहीं सुना। उन्होंने नेरुदा पर देशद्रोह का आरोप लगाया और उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश दिया, जिससे उन्हें निर्वासित होना पड़ा।

नेरुदा ने इसका सौंदर्यपरक और वैचारिक रूप से साहसिक काव्यात्मक अंदाज में इसका उत्‍तर दिया। यह कविताएं उनकी पुस्तक ‘कैंटो जनरल’ में पढ़ी जा सकती है। यह पुस्‍तक और उनके दर्ज नेरुदा के शब्‍द प्रतिरोध की एक महाकाव्यत्‍मक कहानी है जो अमेरिका के इतिहास को एक नए तरीके से बताती है। पचास साल बाद, 2003 में, सैंटियागो की मेट्रो पर काम करने वाले एक इंजीनियर ने मुझे बताया था कि ‘कैंटो जनरल’ क्‍यों महत्वपूर्ण है। उस इंजीनियर के मुताबिक यह “हमें लोगों के दृष्टिकोण से अमेरिका का इतिहास दिखाती है … न कि विजेताओं द्वारा बताए गए वर्णन के आधार से।”

नेरुदा की कविता और सामाजिक उथल-पुथल के उनके अनुभव के बीच का संबंध स्पेनिश गृहयुद्ध के फैलने के समय कहीं ज्‍यादा प्रदर्शित हुआ था। नेरुदा 1934 में अपने तीसवें जन्मदिन से ठीक पहले चिली के वाणिज्यदूत के रूप में मैड्रिड पहुंचे। सिर्फ तीन साल पहले ही स्पेनिश सम्राट का अंत हुआ था और तत्‍कालीन साहित्‍यकार, बुद्धिजीवी में एक आदर्शवादी और प्रगतिशील भावना उत्‍पन्‍न हुई थी। इन लेखकों में कवि और नाटककार फेडेरिको गार्सिया लोर्का भी थे। लोर्का की नेरुदा से मुलाक़ात एक साल पहले हुई थी। जब नेरुदा मैड्रिड पहुंचे तो रेलवे स्टेशन पर लोर्का उनका इंतज़ार कर रहे थे।

घटनाएं बार-बार साफ करती है कि नेरुदा अपने युग के अवसाद और अलगाव के कष्टदायक दौर से उभरे थे और उन्होंने इसे “चमकदार एकांत” (luminous solitude) कहा है। यह कष्‍टदायक दौर उन्होंने पूर्वी एशिया में कई कांसुलर पदों पर कार्य करते हुए झेला था। उस अवधि के दौरान उनकी कविताएं गहन आत्मनिरीक्षण बन गईं, हालांकि वे सिर्फ अपने आंतरिक जीवन पर ही केंद्रित नहीं थे। कांसुलर पदों पर सेवा करते हुए और साहित्‍य रचते हुए, दोनों भूमिकाओं में उन्होंने महिलाओं, रंगभेद के शिकार स्‍थानीय समुदाय और गरीबों को अधीन करने वाले कार्यों में सक्रियता से भाग लिया था। वर्षों बाद, अपने संस्मरणों में, उन्होंने श्रीलंका में एक तमिल नौकरानी के साथ बलात्कार का भी वर्णन किया, जिसने उत्पीड़ितों की ओर से एक कार्यकर्ता के रूप में उनकी भविष्य की भूमिका की एक परत जोड़ दी।

जब वे मैड्रिड पहुंचे तब कार्यकर्ताओं और कलाकारों की एक समृद्ध, रोमांचक संगत के प्रति उत्साह से भरे हुए थे। लेकिन स्पेन की सामाजिक और राजनीतिक स्थितियां अपेक्षा से अधिक तनावपूर्ण और जटिल थी। जैसा कि इतिहासकार गेब्रियल जैक्सन ने लिखा है, 1930 में स्पेन एक मरणासन्न राजशाही, बहुत असमान आर्थिक विकास वाला देश और उत्साही राजनीतिक और बौद्धिक अंतर्धाराओं का युद्धक्षेत्र बन गया था। जैसे-जैसे पड़ोस में हिटलर और मुसोलिनी ने सत्ता हासिल की, स्पेनिश फासीवादियों ने खुद को और अधिक हिंसक रूप से स्थापित किया। प्रगतिशील सरकार को जीवित रहने के लिए संघर्ष करना पड़ा। मार्च, 1936 की शुरुआत में ही फासिस्ट समूह फालेंज के सदस्य कारों में सवार होकर मैड्रिड में घूमते रहते, मशीन गन से मजदूर वर्ग के इलाकों में गोलियां चलाते रहते थे। जून तक, कम्‍युनिस्‍ट, समाजवादी और अराजकतावादी दलों के कई सदस्य सार्वजनिक रूप से क्रांति को बढ़ावा दे रहे थे, जबकि दक्षिणपंथी प्रेस मध्यम वर्ग में साम्यवादी राज्य का डर पैदा कर रहा था और इस विचार को बढ़ावा दे रहा था कि केवल एक सैन्य तख्तापलट ही स्पेन को बचा सकता है। फासीवादी क्रांति की अफवाहें तेज से फैल रही थीं। समलैंगिक और वामपंथी लेखक लोर्का इस सबसे भयभी थे। वे गणतंत्र की रक्षा में अधिक मुखरता से जुटे हुए थे। भय से वे यह उम्‍मीद लिए अपने गृहनगर ग्रेनेडा भाग गए, कि उनका प्रभावशाली व रूढ़िवादी परिवार उनकी रक्षा करेगा।

17 जुलाई, 1936 को फासीवादी जनरल फ्रांसिस्को फ्रेंको ने एक सैन्य विद्रोह का नेतृत्व किया। इस कारण स्पेनिश गृहयुद्ध छिड़ गया। मुसोलिनी और हिटलर ने उन्हें विमान और हथियार मुहैया कराए। राष्ट्रवादी के रूप में पहचाने जाने वाले विद्रोही तेज़ी से मैड्रिड की ओर आगे बढ़े। मैड्रिड में नेरुदा और उनके दोस्तों ने एंटी-फासीस्ट इंटेलेक्चुअल्स का गठबंधन बनाया था। वे सभी गणतंत्र के समर्थन में अपनी रचनात्मकता का इस्तेमाल करने को प्रतिबद्ध थे। उन्‍होंने रंगमंच को जनता में लोकप्रिय बनाया। सर्वेंटेस से लेकर लोर्का तक के ऐसे नाटकों का मंचन किया गया जो उनकी विचारधारा तथा विपरीत समय में संस्कृति को भी मजबूत करते थे। एलायंस ने एक पत्रिका प्रकाशित की जिसकी सामग्री मुख्य रूप से रिपब्लिकन सैनिकों के लिए होती थी। यूनिट का एक सदस्य अनपढ़ लोगों के लिए जोर से पढ़ता था।

युद्ध के एक महीने बाद, राष्ट्रवादियों ने लोर्का को गिरफ्तार कर लिया। जब पूछा गया कि लोर्का ने क्या अपराध किया है, तो प्रभारी अधिकारी ने जवाब दिया, “उसने कलम से उतना नुकसान किया है जितना दूसरों ने पिस्तौल से किया है।” तीन दिन बाद, लोर्का और तीन अन्य कैदियों को जैतून के पेड़ों के पास गोली मार दी गई।

इस खबर ने नेरुदा को अंदर तक हिला दिया। एक दोस्त की हत्या के बाद उपजे खौफ से परे लोर्का की मौत के कुछ और संदेश भी थे। लोर्का कविता का अवतार थे। ऐसा लग रहा था जैसे फासीवादियों ने कविता की ही हत्या कर दी हो। नेरुदा उस क्षण पर पहुंच गए थे जहाँ से वापस लौटना संभव नहीं था। उनकी कविता को अपना रूप बदलना ही था; उसे काम करना था। उभरते फासीवाद की वास्तविकताओं को नजरअंदाज करती उदास व प्रेम कविताओं या आध्यात्मिक लेखन का समय नहीं था। उन्‍हें तो अपने दिल में मची उथलपुथल को अधिक मारक शब्दों और स्पष्ट, जीवंत रूपकों को माध्‍यम से प्रस्‍तुत करना था हो उनके उद्देश्य को पूरा कर सके। उन वास्तविकताओं को व्‍यक्‍त करना था जो वे अनुभव कर रहे थे। एक ऐसे तरीके से जिसे व्यापक श्रोता/दर्शक तुरंत समझ सकें।

नेरुदा ने युद्ध पर प्रतिक्रिया के रूप में कुल इक्कीस कविताएं लिखीं। ये कविताएं उनकी पुस्तक ‘एस्पाना एन एल कोराज़ोन’ (दिल में स्पेन) में शामिल थीं। ये कविताएं उनकी पिछली, अधिक रहस्यपूर्ण पुस्तकों के सुसंस्कृत, बौद्धिक पाठकों से परे किन्‍हीं और पाठकों के लिए थीं। नेरुदा की ये कविताएं फ्रंटलाइन सैनिकों द्वारा छापी जाती थीं। रिपब्लिकन सैनिकों ने कविताओं को टाइप किया, प्रतियां छापीं, और उन्हें लड़ने वाले सैनिकों तक पहुंचाया। दूसरे शब्दों में, कविता प्रतिरोध के लिए ईंधन थी और नेरुदा एक व्यापक आंदोलन का केवल एक हिस्सा थे: इतने सारे कवियों का स्पेनिश गृहयुद्ध पर इतना गहरा प्रभाव था कि इसे ‘कवियों का युद्ध’ कहा गया है।

जैसे ही फासीवादियों ने मैड्रिड पर बम गिराए, नेरुदा पेरिस चले गए। पेरिस में उन्होंने गणतंत्र के लिए लेखकों को एकजुट करने के लिए एक सभा आयोजित करने में मदद की। प्रतिभागियों में अर्नेस्ट हेमिंग्वे और लैंगस्टन ह्यूजेस भी शामिल थे। नेरुदा ने रिपब्लिकन के समर्थन में कई प्रकाशन भी शुरू किए। ब्रिटिश कार्यकर्ता नैन्सी क्यूनार्ड के साथ, उन्होंने ‘द पोएट्स ऑफ द वर्ल्ड डिफेंड द स्पैनिश पीपल’ प्रकाशित किया। क्यूनार्ड के घर में एक प्रिंटिंग प्रेस थी; नेरुदा ने टाइप सेट करने में मदद की। पत्रिका की बिक्री से प्राप्त धन फ्रेंको की सेना से लड़ रहे रिपब्लिकन सैनिकों का समर्थन करने के लिए भेजा गया। जुटाई गई धनराशि महत्वपूर्ण नहीं थी, लेकिन योगदानकर्ताओं का बेबाक समर्थन बहुत मायने रखता था।

इस बीच, चिली के विदेश मंत्री ने बयान दे कर फ्रांस में नेरुदा की गतिविधियों को पक्षपातपूर्ण बताते हुए उन्‍हें अस्वीकार कर दिया। कवि नेरुदा को घर लौट जाने का आदेश दिया गया; वे अक्टूबर, 1937 में वापस लौटे। फ्रेंको ने 1 अप्रैल, 1939 को जीत की घोषणा की। बार्सिलोना और पूरे कैटेलोनिया पर कब्जा करने के उनके अंतिम आक्रमण ने पांच लाख से ज्‍यादा स्पेनिश शरणार्थियों को फ्रांस में भागने पर मजबूर कर दिया था। जहां वे भूख और बीमारी के शिकार होकर शिविरों में रहने लगे थे। पेरिस में नेरुदा के दोस्तों ने उन्हें स्थिति के बारे में लिखा और उनसे कुछ करने की अपील की। कवि नेरुदा ने नव निर्वाचित वामपंथी राष्ट्रपति से मदद मांगी, जिन्होंने उन्हें पेरिस में वाणिज्यदूत नियुक्त किया।

पेरिस में, नेरुदा ने एक पुराने मालवाहक जहाज के जरिए दो हजार से ज्‍यादा शरणार्थियों को आजादी दिला कर चिली पहुंचाया। यह उपलब्धि दुनिया भर में सुर्खियां बनीं।

आज जब हम बढ़ते अधिनायकवाद और अन्याय के नए युग का सामना कर रहे हैं, तो यह सवाल मौजूं बना हुआ है कि क्या कविता में बदलाव लाने की शक्ति है? हम ‘बम नहीं कविताएं फेंकों’ लिख सकते हैं, लेकिन कठोर सत्य यह है कि एक कविता अकेले सपने देखने वालों को निर्वासित होने से नहीं बचा सकती या एक अयोग्य राष्ट्रपति को रोक नहीं सकती। और फिर भी, नेरुदा ने बताया कि कविता की मार्मिक प्रकृति एक संयुक्‍त, सामूहिक प्रयास के माध्यम से परिवर्तन ला सकती है। एक-एक करके बूंदों को इकट्ठा करने की तरह, हर बार जब कोई कविता किसी व्यक्ति की चेतना के संपर्क में आती है तो दृष्टिकोण में बदलाव संभव है। फिर चाहे उस कविता का पाठक 1930 के दशक के स्पेनिश रिपब्लिकन सैनिक हों या रेडियो पर सुनी गई हो या फिर नए सिरे से लिखी गई हो। कविता ऊर्जा दे सकती है, जानकारी दे सकती है और प्रेरित कर सकती है। यह अकेले बमों को नहीं रोक सकता, लेकिन जब इसे सामाजिक आंदोलन की सभी कार्यों में शामिल किया जाता है तो यह बदलाव ला सकती है। नेरुदा ने हमें दिखाया है कि प्रतिरोध के बड़े परिवर्तनकारी प्रयासों में कविता भावनात्मक रूप से शक्तिशाली घटक कैसे हो सकती है।

नेरुदा की कविता की प्रभावशीलता इसकी सहनशीलता से साबित होती है, कितनी बार लोग उनके शब्‍दों को एक साधन के रूप में इस्तेमाल करते हैं। ये शब्‍द उन्हें जगाते हैं, उन्हें जगाए रखते हैं, उन्हें बनाए रखते हैं। सैन फ्रांसिस्को में, 2003 में इराक पर आक्रमण के दौरान, नेरुदा के इन शब्दों को बैनरों पर लिखा गया था:

अत्याचार उस सिर को काट देता है जो गाता है, लेकिन कुएं के तल में पहुंचा दी गई आवाज धरती के गुप्त झरनों में वापस आ जाती है और अंधेरे में उठ खड़े हुए लोगों के शब्‍दों के माध्यम से ऊपर उठती है।

लगभग एक दशक बाद, मिस्र की कला इतिहासकार बहिया शेहाब ने अरब स्प्रिंग के दौरान काहिरा की सड़कों पर नेरुदा के शब्दों को स्प्रे-पेंट किया:

“आप सभी फूल काट सकते हैं, लेकिन आप वसंत को नहीं रोक सकते।”

पांच साल बाद, जनवरी 2017 के महिला मार्च के दौरान, काहिरा में छपे नेरुदा के वही शब्द मूल स्पेनिश वाले पोस्टरों पर सजे हुए थे:

“Podrán cortar todas las flores, pero no podrá detener la primavera.”

सामाजिक अन्याय, युद्ध और उदार लोकतंत्र के क्षरण के समय में नेरुदा हमें प्रेरित करते हैं। नेरुदा ने संकट के जवाब में अपनी कविता को काफी हद तक अनुकूलित किया। स्पेनिश गृहयुद्ध की शुरुआत में, उन्होंने अपनी अंतर्मुखी प्रयोगात्मक कविता को त्याग कर ऐसा रूप दिया जो दूसरों को सक्रिय होने के लिए मजबूर कर सके।

चाहे हम कवि हों, शिक्षक हों, पाठक हों, सामाजिक कार्यकर्ता हों या दुनिया की परवाह करने वाले आम नागरिक हों, हम भी खुद को अभिव्यक्त करने के तरीके को बदल सकते हैं। सोशल मीडिया के युग में, हमें प्रतिरोध के सैनिकों तक अपना संदेश पहुंचाने के लिए प्रयोग किए जाने वाले पुराने तरीके आजमाने की जरूरत नहीं है। हम सभी बोल सकते हैं। हम सभी संवाद का हिस्सा हो सकते हैं। और कविता सोच समझ के सामूहिक तरीके का हिस्सा हो सकती है।

नेरुदा और उनके जैसे ही अन्य लोगों से हम सीख सकते हैं कि खुद को अभिव्यक्त करने का तरीका और सुनना किसी भी प्रतिरोध के मुख्य घटक हैं।

सिटी लाइट्स पब्लिशर्स द्वारा प्रकाशित ‘द एसेंशियल नेरुदा’ के अनुदित आलेख का संपादित अंश। द पेरिस रिव्‍यू से साभार।

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