सरकारी प्रतिबंध से कितना रूक जाएगा भीख मांगना और देना?

  • जे.पी.सिंह

वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के विशेषज्ञ

गरीबी के मूल कारणों पर ध्यान दिए बिना भिक्षावृत्ति नहीं रोकी जा सकती

इंदौर प्रशासन ने हाल ही में भीख मांगने और दान देने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया है। इंदौर भारत सरकार द्वारा शहरों को भिखारी मुक्त बनाने के लिए शुरू की गई स्माइल पहल के तहत चिह्नित 10 शहरों में से एक है। यह योजना भिखारियों के पुनर्वास, परामर्श और सतत विकास की वकालत करती है।

दिल्ली हाई कोर्ट भिक्षावृत्ति को अपराध घोषित करने वाले कानून बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ़ बेगिंग एक्ट, 1959 [Bombay Prevention of Begging Act, 1959] की 25 धाराओं को समाप्त कर चुका है। साथ ही, भिक्षावृत्ति के अपराधीकरण को असंवैधानिक करार दिया है। हाईकोर्ट ने यह निर्णय भिखारियों के मौलिक अधिकारों और उनके आधारभूत मानवाधिकारों के संदर्भ में दायर दो जनहित याचिकाओं की सुनवाई के दौरान दिया। वर्ष 2018 में बॉम्बे अधिनियम के कई प्रावधानों को रद्द करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने उन्हें “स्पष्ट रूप से मनमाना” और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन घोषित किया, जो सम्मान के साथ जीने के अधिकार की गारंटी देता है। न्यायालय ने गरीबी के मूल कारणों पर ध्यान दिए बिना भिक्षावृत्ति को अपराध घोषित करने पर प्रश्न उठाया। वर्ष 2021 में सुप्रीमकोर्ट ने सार्वजनिक स्थानों से भिखारियों को हटाने की मांग वाली जनहित याचिका पर विचार करने से मना कर दिया, जिससे इस विचार को बल मिला कि भिक्षावृत्ति एक सामाजिक-आर्थिक मुद्दा है और इसे अभिजात्य दृष्टिकोण से नहीं देखा जाना चाहिए।

गौरतलब है कि कि देश में अब तक भिक्षावृत्ति के संदर्भ में कोई केंद्रीय कानून नहीं है। बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ़ बेगिंग एक्ट, 1959 को ही आधार बनाकर 20 राज्यों और 2 केंद्रशासित प्रदेशों ने अपने कानून बनाए हैं। दिल्ली भी इनमें से एक है। केंद्रशासित प्रदेश दमन और दीव भी इसमें शामिल है। ‘विश्व असमानता रिपोर्ट 2022’ के मुताबिक, भारत की टॉप 10 फीसदी आबादी के पास राष्ट्रीय आय का 57 फीसदी हिस्सा है। वहीं, देश की टॉप 1 फीसदी आबादी के पास राष्ट्रीय आय का 22% हिस्सा है। नीचे से 50 फीसदी, यानी भारत की गरीब आबादी के पास राष्ट्रीय आय का केवल 13 फीसदी हिस्सा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत द्वारा अपनाए गए आर्थिक सुधारों और उदारीकरण ने ज्यादातर टॉप 1 फीसदी को लाभ पहुंचाया है। भारत वर्ष 2024 के वैश्विक भुखमरी सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट- GHI) में 27.3 स्कोर के साथ 127 देशों में से 105 वें स्थान पर है। यह खाद्य असुरक्षा और कुपोषण की चुनौतियों से प्रेरित ‘गंभीर’ भूख संकट को उजागर करता है। साथ ही भारत को भुखमरी के मामले में गंभीर स्थिति वाले देशों में रखा गया है।

1 जनवरी 2025 से शहर में भीख मांगने और भिक्षा देने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का आदेश देते हुए इंदौर प्रशासन ने कहा कि भीख मांगने या भिखारियों को भीख देने वालों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाएगी और उन पर जुर्माना भी लगाया जाएगा। यह कदम केंद्र सरकार की स्माइल पहल के व्यापक उपाय के अंतर्गत आता है, जिसका उद्देश्य 10 भारतीय शहरों को भिखारी मुक्त बनाना है, इंदौर उनमें से एक है। यदि भारत में भिखारियों की संख्या पर गौर किया जाय तो 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 4 लाख से भी अधिक भिखारी हैं। भिखारियों की इतनी बड़ी संख्या दिखाती है कि भारत अपनी कल्याणकारी राज्य की भूमिका निभाने में पूरी तरह सफल नहीं रहा है। इसलिए समाज के सबसे कमजोर और हाशिये पर खड़े तबके को अपराधी घोषित करना किसी भी प्रकार से न्याय संगत नहीं है। इन्हीं सब पक्षों के आधार पर दिल्ली हाई कोर्ट ने अपना निर्णय दिया है। हालांकि, भिक्षावृत्ति का रैकेट चलाने वाले गिरोहों के खिलाफ कठोर कदम उठाने के लिए सरकार कोई भी कानून बना सकती है। इस पर हाईकोर्ट ने कोई रोक नहीं लगाई है।

इंदौर प्रशासन का दावा है कि यह शहर में सक्रिय भीख मांगने वाले गिरोहों और सिंडिकेट के खिलाफ एक सामूहिक कार्रवाई है। इंदौर के जिला मजिस्ट्रेट ने कहा कि पुलिस ने पिछले साल की शुरुआत से ही इन गिरोहों के खिलाफ कार्रवाई की है, कुछ मामलों में गिरोह के सदस्य प्रति सप्ताह 75,000 रुपये से अधिक कमाते पाए गए। यह भी कहा कि वह इन गतिविधियों में शामिल लोगों के लिए पुनर्वास कार्यक्रमों को बढ़ावा दे रहा है।

भीख मांगने पर प्रतिबंध नीति के आलोचकों का तर्क है कि यह गरीबी और करुणा को अपराध घोषित करके हमारे संविधान के मूल सिद्धांतों जैसे प्रत्येक नागरिक को दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है।संविधान के प्रावधान आदेश के साथ असंगत प्रतीत होते हैं क्योंकि यह भीख मांगने के मूल कारणों जैसे भेदभाव, बेरोजगारी और आर्थिक न्याय [राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों में अनुच्छेद 39 (बी), 39 (सी) और अनुच्छेद 46 के तहत उल्लेख किया गया है कि राज्य को आर्थिक समानता को बढ़ावा देना चाहिए] से निपटता नहीं है। इसके बजाय, आदेश समाज के कमजोर वर्गों को दरकिनार करने का जोखिम उठाता है, जो हमारे संविधान के सार के बिल्कुल विपरीत है। जैसे-जैसे शहर इस नीति के साथ आगे बढ़ रहा है, यह बुनियादी संवैधानिक अधिकारों के साथ कल्याणकारी कार्यक्रमों के संतुलन का एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाता है।

भीख मांगना भोजन या पैसे के रूप में प्रसाद देने या लेने का एक स्वैच्छिक कार्य है और इसे अपराध के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है। भीख मांगना किसी व्यक्ति की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों से उपजा है, जिसे सार्वजनिक आदेशों या प्रतिबंधों के माध्यम से हटाया या जबरन समाप्त नहीं किया जा सकता है।दयनीय परिस्थितियों से पीड़ित व्यक्ति सहायता प्राप्त करने के लिए स्वेच्छा से शब्दों या कार्यों के माध्यम से अपनी दुर्दशा व्यक्त करने के लिए भीख मांगते हैं। गतिविधियों का ऐसा संचार अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत संरक्षण के योग्य है, जो भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है।प्रतिबंध लगाकर सरकार न केवल व्यक्तियों को उनकी आय के साधनों या सार्वजनिक सहायता से वंचित करती है, बल्कि अनुच्छेद 19(1)(जी) का भी उल्लंघन करती है, जो किसी भी पेशे को अपनाने के अधिकार की गारंटी देता है क्योंकि यह आय के लिए भिक्षा देने जैसे कार्यों को प्रतिबंधित करता है। यह अनुच्छेद 21 का भी उल्लंघन करता है, जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करता है क्योंकि भीख मांगना और भिक्षा देना स्वैच्छिक कार्य हैं जो न तो दूसरों को नुकसान पहुंचाते हैं और न ही प्रतिबंधित करते हैं।भीख मांगने पर पूर्ण प्रतिबंध गरीबों को उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति के आधार पर समाज से बाहर कर देता है, जो अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) और अनुच्छेद 15 (भेदभाव का निषेध) का उल्लंघन है।

यह औपनिवेशिक युग की मानसिकता को भी दर्शाता है, जो 1824 के यूरोपीय वैग्रेंसी एक्ट और 1860 के बॉम्बे सिटी पुलिस एक्ट जैसे कानूनों में निहित है , जिसने सभी प्रकार की भीख मांगने पर प्रतिबंध लगा दिया और उसे अपराध घोषित कर दिया। ये अनुचित कार्य भिखारियों के खिलाफ अभिजात वर्ग के पूर्वाग्रह को प्रकट करते हैं, क्योंकि वे गरीबी और बेघर होने के संरचनात्मक कारणों से निपटने के बजाय अपनी उपस्थिति को छिपाने का लक्ष्य रखते हैं।भीख मांगने की समस्या काफी हद तक गरीबी और बेघर होने से संबंधित सामाजिक-राजनीतिक मामलों में निहित है, जो आवास, रोजगार के अवसर और अन्य आवश्यक चीजें प्रदान करने में सरकार की विफलता को उजागर करती है।गरीब सिर्फ़ इसलिए गरीब नहीं हैं क्योंकि वे कमतर इंसान हैं या इसलिए कि वे शारीरिक या मानसिक रूप से उन लोगों से कमतर हैं जिनकी स्थिति बेहतर है। इसके विपरीत, गरीबी ज़्यादातर मामलों में समाज और राज्य की सामाजिक और आर्थिक संबंधों के आधार के रूप में निष्पक्षता और समानता स्थापित करने में विफलता का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष परिणाम है,” जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है ।इसी प्रकार, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के मानवाधिकारों पर मार्गदर्शक सिद्धांत इस बात पर बल देते हैं कि गरीबी आधारित बहिष्कार को मानवाधिकार उल्लंघन माना जाना चाहिए तथा आपराधिकरण के बजाय संरचनात्मक आधार पर समाधान की आवश्यकता है।

बेल्जियम, फ्रांस और स्पेन जैसे यूरोपीय देश इस तरह के सूक्ष्म दृष्टिकोण का उदाहरण हैं। वे विशेष प्रकार की भीख मांगने पर प्रतिबंध लगाते हैं, जिसमें बाल तस्करी, जबरन भीख मांगना या गुप्त उद्देश्यों से प्रेरित गतिविधियाँ शामिल हैं। स्पेन में कानून बहुविषयक दृष्टिकोण पर केन्द्रित है, जिसमें नागरिक समाजों के साथ सहयोग बनाए रखने के लिए पुलिस अधिकारियों और सरकारी अभियोजकों के प्रशिक्षण पर जोर दिया गया है। इसी तरह, ऑस्ट्रिया में प्रवासी भिखारियों और भीख मांगने वाले परिवारों की शिकायतों पर चर्चा करने के लिए गोलमेज सम्मेलन आयोजित किए गए। जर्मनी (म्यूनिख) में भी, केवल वर्गीकृत प्रकार की भिक्षावृत्ति प्रतिबंधित है, जैसे संगठित और आक्रामक भिक्षावृत्ति। दरअसल निर्धनता एक व्यक्ति को क्या करने के लिए मजबूर नहीं करती है?

भोजन, वस्त्र और आवास की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति न होने पर भावुक लोग आत्महत्या कर लेते हैं। कुछ चोरी करने लगते हैं, कुछ गैर-सामाजिक गतिविधियों में लिप्त हो जाते हैं और अन्य भिक्षावृत्ति के लिए मजबूर हो जाते हैं। कुछ लोग आलस्य के करण भी भीख मांगते हैं लेकिन हमारे देश में जैसे सभी व्यवस्था का दुरूपयोग होता है वैसे भिक्षावृत्ति का भी हो रहा है। कई बार गरीबी से पीड़ित ऐसे लोगों की मजबूरी का फ़ायदा कुछ गिरोह भी उठाते हैं। ऐसे गिरोह संगठित रूप से भिक्षावृत्ति के रैकेट चलाते हैं। ये गिरोह गरीब व्यक्तियों को लालच देकर, डरा-धमकाकर, नशीले ड्रग्स देकर, तथा मानव तस्करी के द्वारा लाए गए लोगों को शारीरिक रूप से अपंग बनाकर भीख मांगने पर मजबूर करते हैं। कई बड़े और पेशेवर भिखारी बच्चों को इस पेशे में धकेलते हैं और उनकी कमाई का एक बड़ा हिस्सा खुद ही ले लेते हैं।

कई भिखारी अनाथ या गरीब बच्चों को पाल-पोसकर और भीख मांगकर अपनी आजीविका कमाते हैं। केवल घुमंतू जनजातियों में नहीं बल्कि अलग अलग राज्यों के जाति से इतर कई तबकों में भिक्षावृत्ति उनका खानदानी पेशा है बल्कि कई जगह इस आधार पर उनकी सामाजिक हैसियत तय होती है कि उनके घर में कितने लोग इस पेशे में हैं यानि कितनी झोली बाज़ार में घूम रही है। नशे की लत ने भी बहुतेरों को भिक्षावृत्ति में धकेल दिया है। भिक्षावृत्ति एक ऐसी समस्या है जिसके लिए इसे खत्म करने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। इसके बावजूद भीख मांगने का चलन लगातार बढ़ रहा है। कई राज्यों ने भीख के उन्मूलन के लिए अधिनियम पारित किए हैं, लेकिन वे पर्याप्त नहीं हैं। भिखारियों के पुनर्वास की कोई व्यवस्था न होने के कारण कानून निष्प्रभावी हो गए हैं। इस समस्या के समाधान के लिए सभी राज्यों में एकसमान अधिनियम बनाए जाने चाहिए और भिखारियों के पुनर्वास की योजनाओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इसके लिए अल्पकालिक और दीर्घकालिक प्रयासों की आवश्यकता है।

संविधान सभा में इस विषय पर चर्चा हुई थी। 1 सितंबर, 1949 को संविधान सभा में चर्चा के दौरान राज बहादुर द्वारा “भिक्षावृत्ति पर नियंत्रण और उन्मूलन” को संघ सूची में जोड़ने का प्रस्ताव रखा गया था।राज बहादुर ने तर्क दिया, कि कुछ लोग आलस्य के कारण भीख माँगते हैं, ईमानदारी से कार्य करके समाज में योगदान दिए बिना भीख माँगते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि ये लोग समाज के लिए बोझ हैं।इसके उत्तर में डॉ. बीआर अंबेडकर ने स्पष्ट किया, कि भिक्षावृत्ति का मुद्दा पहले से ही समवर्ती सूची में “भिक्षावृत्ति” के तहत संबोधित किया गया है, जो केंद्र और राज्यों दोनों को विधायी कार्रवाई करने की अनुमति देगा। अम्बेडकर ने जोर देकर कहा, कि इस मुद्दे को संघ सूची में अलग से शामिल करने की आवश्यकता नहीं है।

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