यादों का उजास

- बंसीलाल परमार
प्रख्यात फोटोग्राफर
1997 मैं अपने मित्र वीरेंद्र सिंह तोमर के विवाह में इटारसी गया था। वैवाहिक कार्यक्रम होने के बाद भी एक-दो दिन मुझे रोक लिया। वे मुझे अपने परिचितों से मिलवाने के लिए ले गए। मैं शासकीय महाविद्यालय इटारसी में प्राध्यापक कश्मीर उप्पल सर के आवास पर भी गया था। घर का परिसर लकड़ी तथा पत्थर टुकड़ों की कलाकृतियों सजा था। वेस्ट मटेरियल को कलाकृतियों के रूप में सजा हुआ देखकर बहुत ही खुशी हुई। मुझे जिज्ञासा हुई तो मैंने पूछ लिया कि आपको इन चीजों को इस तरह संग्रहित करने की प्रेरणा कहां से मिली?
उन्होंने जो बताया वह चौंकाने वाला नहीं था। उन्होंने यह प्रेरणा जिनसे ली थी उनसे मैं ही नहीं पूरा कला और शिक्षा जगत परिचित था; श्रद्धेय गुरुजी विष्णु चिंचालकर जी। हिंदी के अखबार ‘नईदुनिया’ के माध्यम से मैं गुरुजी से लंबे समय से परिचित था। प्रत्येक रविवार के अंक में साहित्य पृष्ठ पर कहानी में उनके द्वारा बनाए श्वेत-श्याम चित्र तथा दीपावली विशेषांक का रंगीन मुखपृष्ठ उनकी पहचान था। शिक्षा क्षेत्र में वे भी उनके सृजन संसार का कोई सानी नहीं था। अक्षरों और अंकों से चित्र तथा वेस्ट मटेरियल से बनी बिना मूल्य की शैक्षणिक सामग्री (जो वास्तव में बहुमूल्य थी) आज के महंगे प्रोजेक्ट की तुलना में बच्चों को ज्यादा कल्पनाशीलता और ज्ञान में देती थी। उस समय चर्चित हुए होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम तथा एकलव्य संस्था के कार्यों में उनका महत्वपूर्ण योगदान था।
मैं उप्पल सर के आवास के कलासंसार और गुरुजी के रचना संसार में खोया था। तभी एक सवाल से मेरी तंद्रा टूटी। उप्पल सर ने मुझसे पूछा कि क्या आप कभी गुरुजी से मिले हैं ? मैं मिला नहीं था इसलिए इंकार कर दिया। उप्पल सर ने कहा, आप एक बार जरूर मिलिए। उन्होंने मुझे गुरुजी का पता भी दिया।
विष्णु चिंचालकर, गौरैया कुंज, संवाद नगर इंदौर
मेरा इंदौर अक्सर आना-जाना रहता था। मैं कई बार इंदौर गया लेकिन हर बार गुरुजी से मिलने की तमन्ना अधूरी ही रही। मैं हर बार मुलाकात का विचार कर जाता लेकिन बिना मिले ही लौट आता। उनसे ही नहीं किसी भी कलाकार से मिलने से कतराता हूं। इसका कारण एक बुरा अनुभव है। एक कलाकार से मुलाकात के कड़वा अनुभव से गुजरा था मैं। हूं उप्पल सर ने कहा, जरूर जाइए आप। इटारसी से लौटते समय मैं इंदौर गया तथा शाम को संवाद नगर के गौरैया कुंज पहुंच गया। मुझे गौरैया कुंज कांक्रीट के जंगल में शांतिनिकेतन सा अनुभूत हुआ। मैंने बाहर से आवाज लगा कर अपने आने की सूचना दी। अंदर से एक संत कलामनीषी कुर्ता पाजामा पहने बाहर आए। श्रद्धा से मेरे हाथ उनके चरणों तक बढ़ गए। उप्पल सर का उल्लेख करते हुए अपना परिचय दिया।
लॉन के मुख्य द्वार पर एक लालटेन टंगी थी। दरवाजे पर अलग सी प्राचीन घंटियां। जैसे ही कक्ष में प्रवेश किया ऐसा लगा जैसे किसी संग्रहालय में पहुंच गया हूं। हर चीज, हर वस्तु एक खास तरह से रखी गई थी कि उनसे कुछ न कुछ चित्र, कलाकृति बन रही थी। मुझे कहीं से कहीं तक ऐसा नहीं लगा कि मैं पहली बार मिल रहा हूं। इतनी आत्मीयता भरे व्यवहार वाले महान चित्रकार माना निरंहकारी संत से मिल रहा हूं।
उनसे कला पर बात करता रहा। उनके विचारों को जानता रहा। उन्होंने हर चीज समझाई। बातों को बीच में रोक कर वे एक स्लेट लेकर आए। स्लेट पर अक्षर तथा अंकों से चित्र बना कर दिखाने लगे। गुरुजी के व्यक्तित्व और कला ज्ञान से मैं अभिभूत था। उस पहली ही मुलाकात ऐसा लगा मानो मेरा जन्म सार्थक हुआ। गुरुजी से भेंट में एक नई कला दृष्टि मिली। थोड़ी में गुरुजी की पुत्रवधु और पोत्री भी कक्ष में आए। हमने साथ ही चाय भी।

बस, उस दिन के बाद जब भी इंदौर जाता व्यस्त कार्यक्रम के बाद भी संवाद नगर जाना और गुरुजी से मिलना मेरी यात्रा का तय हिस्सा था। लंबे समय बाद जब एक बार मैं गुरुजी मिलने गौरैया कुंज पहुंचा हमेशा की तरह सहजता से गेट खोलने का प्रयास किया। गेट पर हाथ लगाते हैं विशाल डीलडोल का कुत्ता झपट कर आया। पीछे-पीछे गुरुजी थे। वे जंजीर खींच कर उसे रोकने का प्रयास कर रहे थे। इसी जद्दोजहद में वे हांफ रहे थे। मैंने भी खुद को असहज अनुभव किया। गौरैया कुंज की कोमलता में श्वान की आक्रामकता देख कर मुझे तथा स्वयं गुरुजी को भी अच्छा नहीं लगा। मैं उनकी विवशता को अनुभव कर रहा था। थोड़ी बातचीत के बाद मैंने विदा ली।
यह मेरी उनसे अंतिम भौतिक भेंट थी। एक-दो वर्ष बाद गुरुजी के देहावसान की खबर सुनी। मन बहुत विषाद से भर गया। मैंने बहुत कुछ सीखा, बहुत पाया। उनके द्वारा दी गईं अनेक हस्ताक्षरयुक्त पुस्तकें आज भी मेरे संग्रह है में है। कितना स्वर्णिम समय था वह जब गुरुजी चिंचालकर, मनीषी गायक पं. कुमार गंधर्व, बाबा डीके, राहुल बारपुते, राजेंद्र माथुर तथा अनेक कलाधर्मी लोग नईदुनिया जैसे समाचार पत्र से जुड़ कर एक स्वस्थ समाज का निर्माण कर रहे थे। आज बाबाओं, टोटकेबाजों, विभेदकारी लोगों से अखबार भरे पड़े हैं। महत्वहीन लोगों को महत्वपूर्ण तथा महत्वपूर्ण लोगों को महत्वहीन बना रहे हैं। मेरा सौभाग्य है कि मैं गुरुजी मिला तथा यह सीखा कि हर कृति में कलाकृति है बस गौर से देखने की आश्यकता है।

