सुरेंद्र दांगी
कहते हैं कि शाहजहाँ का खानसामा बना कुछ रहा था और बन गए ये गुलाबजामुन। अब तो तमाम तरह की मिठाइयां उपलब्ध हैं लेकिन गुलाबजामुन आज भी मिठाइयों के माथे का मुकुट बना हुआ है। आज भी बैठ कर होने वाली पंगत में पड़ोसी की पत्तल से चुरा कर गुलाब जामुन के जीम जाने को कला का दर्जा हासिल है। आज का किस्सा इसी गुलाब जामुन को लेकर है। जग घूमेया थारे जैसा ना कोई, रसगुल्ला भी नहीं! रसमलाई भी नहीं!!
कोई 18-20 साल पुरानी बात है। गाँव की एक शादी में पंगत की परोसगारी हो रही थी। छेवले(पलाश) के पत्तों के बने दोना-पत्तल परोसे गए। फिर एक आदमी ने पानी सींचकर उन्हें शुद्ध किया। पहले नमक-मिर्ची परोसे गए। पूड़ियां आईं, बूंदी, बालूशाही, सेव, बर्फी भी परोसे गए। सूखी और तरी वाली सब्जी के साथ बूंदी का रायता, पापड़ और अचार भी परोसे गए। और फिर वह गुलाबजामुन भी परोसा गया जिसका लगभग हर पंगतिया को इंतजार रहता है।
दोनों हाथों में पत्तल लेकर घर के मुखिया जीमना शुरू करने का आग्रह करते हुए होन दो लक्ष्मीनारायण कहने ही वाले थे कि पंगत में बैठा रतन उठकर खड़ा हुआ और बोला- हे, भगवान ये घर गिर जाए!!
इस अप्रत्याशित बात से, जो कभी देखी न सुनी, सभी लोग हतप्रभ हो गए! कुछ लोगों ने कहा, ये कैसी बात करते हो? और यदि ये घर गिरेगा तो तुम्हारे ऊपर भी तो गिरेगा तुम भी तो दब जाओगे।
रतन बोला- घर गिरेगा लेकिन मैं बच जाऊंगा दबने से!
लोगों ने कहा, भला तुमने ऐसे कौन से पुण्य किए हैं कि ऐसा चमत्कार होगा कि हम सब तो दब जाएंगे अकेले तुम बच जाओगे?
रतन बोला- जैसे गुलाब जामुन से बच गया। आप सभी को तो गुलाब जामुन परोस दिया केवल मेरी पत्तल पर ही नहीं परोसे गए। जब गुलाब जामुन से बच गया तो दबने से भी बच जाऊंगा।
(परोसने वाले उसके पत्तल पर गुलाब जामुन परोसना भूल गए थे).
लोग हँसते-हँसते चिल्लाए, अरे इसे दो गुलाब जामुन। परोसे भैया।
और फिर खूब हँसी के बीच जम कर लक्ष्मीनारायण हुआ।