जनता बाद में, पहले घमंड

- मोहम्मद लईक
लेखक पत्रकार हैं।
राजनीति में यह अक्सर कहा जाता है कि किसी भी नेता की असली ताकत उसके समर्थक और आम जनता होते हैं। जनता ही वह रीढ़ है, जिस पर नेता का राजनीतिक अस्तित्व टिका होता है। चुनाव जीतने वाला नेता जनता की नब्ज समझता है, उनके सुख-दुख में शामिल होता है और उनके सम्मान का मूल्य जानता है। लेकिन क्या वह नेता भी जनता का आभार समझ सकता है, जिसने कभी चुनावी मैदान ही न देखा हो?
ऐसा लगता है कि इस सवाल का जवाब “नहीं” है; खासकर तब, जब हम 21 साल से राज्यसभा सांसद रहीं समाजवादी पार्टी की जया अमिताभ बच्चन के व्यवहार को देखें।
जया बच्चन, जो सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की पत्नी और पूर्व विश्व सुंदरी ऐश्वर्या राय बच्चन की सास हैं, 2004 से लगातार समाजवादी पार्टी के टिकट पर राज्यसभा सांसद हैं। लेकिन इन 21 सालों में उन्होंने न तो कोई प्रत्यक्ष चुनाव लड़ा, न ही जनता के बीच सक्रिय आंदोलनकारी की भूमिका निभाई। फिर भी, उन्हें जनता के टैक्स से मिलने वाली तमाम सांसदीय सुविधाओं का लाभ लगातार मिल रहा है।
ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या उन्होंने पार्टी और जनता के लिए उतना किया है, जितना उन्हें मिला है?
सेल्फी पर नाराजगी
सोमवार को दिल्ली में विपक्षी दलों ने एक विरोध मार्च निकाला, जिसमें कई सांसदों ने गिरफ्तारी दी। वापसी के बाद संसद भवन के पास कांस्टीट्यूशन क्लब के बाहर जया बच्चन एक ऐसी घटना में चर्चा में आ गईं, जिसने उनके ‘घमंडी’ छवि को और पुख्ता कर दिया।
एक व्यक्ति, जो केवल उनके साथ सेल्फी लेना चाहता था, को उन्होंने धक्का देते हुए कहा—”यह क्या कर रहे हो?” यह जानते हुए भी कि जनता के साथ फोटो या सेल्फी लेना नेताओं के लिए आम बात है, उनका यह व्यवहार आलोचना का कारण बन गया।
यह पहली बार नहीं है जब जया बच्चन अपने गुस्से और तुनकमिजाजी के कारण सुर्खियों में आई हों।
2023, में इंदौर दौरे के दौरान एयरपोर्ट पर एक कर्मचारी ने सेल्फी लेने की कोशिश की तो उन्होंने नौकरी से निकलवने की धमकी दे दी।
राज्यसभा में तत्कालीन उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा सभापति जगदीप धनखड़ के साथ सदन का वीडियो तो आप लोगो को याद ही होगा।
ईशा देओल की गोद भराई के समय भी उनका वीडियो वायरल हुआ, जिसमें उनका रूखा व्यवहार साफ दिखा।
एक कॉलेज सेमिनार में एक कैमरामैन के फ्लैश पर नाराज़ होकर उन्होंने अपशब्द कहे।
इन घटनाओं ने उनकी छवि एक ‘घमंडी’ और जनता से कटे हुए नेता की बना दी है।
जया बच्चन के व्यवहार में एक अजीब-सा अहंकार झलकता है- क्या यह उनके पति की 3000 करोड़ की संपत्ति का घमंड है? अगर हाँ, तो उन्हें यह भी याद रखना चाहिए कि इस रुतबे और मंच तक पहुँचाने में जनता और राजनीति का योगदान भी है।
अगर उन्हें जनता से इतनी शिकायत या दूरी है, तो क्यों न राजनीति से इस्तीफा देकर मुंबई के अपने ‘जलसा’ में ही रहें? समाजवादी पार्टी जैसी जनता-आधारित पार्टी को ऐसे नेताओं से नुकसान ही होता है, जो समाजवाद की विचारधारा से मेल नहीं खाते। एक सांसद होना सिर्फ पद, वेतन और सुविधाओं का नाम नहीं है—यह जनता की उम्मीदों का भार है।अगर कोई नेता बार-बार अपने व्यवहार से यह संकेत दे कि उसे जनता से न तो लगाव है, न सम्मान, तो ऐसे नेता का राजनीति में बने रहना वाकई सवालों के घेरे में आता है।
राजनीति का मूल मंत्र है- जनता पहले। लेकिन शायद जया बच्चन के मामले में यह मंत्र कहीं खो गया है।