सुना है कि मंज़िल क़रीब आ गई है…

  • आशीष दशोत्‍तर

साहित्‍यकार एवं स्‍तंभकार

संपर्क: 9827084966

1 thought on “सुना है कि मंज़िल क़रीब आ गई है…”

  1. मंज़िल से पहले गुमराह होने की ख़्वाहिश किसी बड़े मक़ाम तक पहुंचने का पैग़ाम है। गुमराह होना एक नए रास्ते की तामीर करने के लिए ज़रूरी है। गुमराह होना अपनी सोच को साकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है……..वाह सोच साकार करने के लिए अब गुमराह होना ही होगा…..

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