
- राघवेंद्र तेलंग
सुपरिचित कवि,लेखक,विज्ञानवेत्ता
मुंबई के काला घोड़ा आर्ट परिसर में 27 मई से 2 जून तक अद्भुत चित्र प्रदर्शनी
महान चित्रकार, वइंजीनियर लियोनार्दो दा विंची ने कहा है कि पेंटिंग दरअसल कविता है जिसे देखने की ज़रूरत है बनिस्बत कि उसे महसूस किया जाए, वहीं कविता दरअसल एक पेंटिंग है जिसे देखने की जगह महसूस किया जाना चाहिए। शायराना मिजाज में यहां फिराक साहब को याद करते हुए इसे यूं भी कहा जा सकता है कि-
तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो,
तुमको देखें कि तुमसे बात करें।
जी हां! आज हम मुंबई के प्रख्यात चित्रकार नागनाथ मानकेश्वर के मंत्रमुग्ध कर देने वाले चित्रों की बात करने जा रहे हैं। इनकी बनाई अनेक रंग-बिरंगी पेंटिंग्स को देखने का अवसर आ रहा है मुंबई के काला घोड़ा आर्ट परिसर में 27 मई से 2 जून तक। नीचे लिखा हुआ यह सब तफसील से पढ़कर जाएंगे तो एक अलग ही मजा आएगा।
चित्रकला या पेंटिंग कलाकार के चरित्र को प्रकट करती है, कलाकार जो बदले हुए नजरिए से अपने काम के अर्थ में योगदान देता है। इस प्रकार वास्तव में एक कृति को समझने के लिए, कलाकारों और उनके रहने-होने के समय के बारे में जानना उपयोगी होता है। कलाकार के शुरुआती मास्टर्स के बारे में भी जानने की मुझे बहुत उत्सुकता रहती है जिनके लाइनों/ स्ट्रोक्स का उसने सावधानीपूर्वक परीक्षण किया हो, जो कि अन्य समकालीन चित्रकारों की तुलना में उसके लिए अधिक विशिष्ट थे और इससे उस कलाकार ने अपने अलग हस्ताक्षर कैसे निर्मित किए?
इस चित्र प्रदर्शनी में नागनाथ का नया काम देखने को मिलेगा सो मुझे तो भारी उत्सुकता है देखने की। मुझे याद आता है नागनाथ की एक अद्भुत पेंटिग है जिसमें एक सेक्सोफोन वादक है जिसमें चित्रकार का फोकस सेक्सोफोन और उसकी ऊंगलियों पर है। दिलचस्प बात यह है कि यहां संगीत के चिर-यौवन का संकेत वाद्य को रंगीन बता कर उसे नायकत्व प्रदान किया गया है, वहीं पृष्ठभूमि बतौर वादक के शरीर का हिस्सा ब्लैक एंड व्हाइट में है यानी चित्रकार ने यहां संगीत साधकों की जड़ों की ओर इशारा किया है। यहां वादक पीढ़ी दर पीढ़ी वाला वादक है जो पुरा-परंपरा की गूंज अपनी आत्मा के माध्यम से रंगीन साज़ को पात्र बनाकर उड़ेल रहा है। चेलो वाद्य को ले जाता हुआ कलाकार एक चित्र में है जिसका दिलचस्प शीर्षक ‘लेबर ऑफ लव’ भी इसी सूत्र को पकड़े है कहता हुआ जैसे सबसे ऊपर है अभिव्यक्ति का माध्यम फिर कलाकार।

अपने दर्शकों में संगीत के प्रति रसिक भाव जागृत कर देने वाले नागनाथ मानकेश्वर मुंबई में रहते हैं और उनकी यह कला यात्रा उतनी ही पुरानी है जितना पुराना उनका मेवाती गुरूकुल ऑफ सितार से रिश्ता है। जी हां! नागनाथ जी एक बेहतरीन सितार वादक भी हैं। स्वयं एक संगीतकार होने के नाते नागनाथ जाहिर करते चलते हैं कि समूचे देश में लोकरंग के रस को संगीत वाद्य अपनी बनावट और तासीर के ज़रिए बयान करते हैं और नागनाथ जी कहते भी हैं कि ऑर्गेनिक साउंड के सोर्स ये जो साज़ हैं इनमें आत्मा तक को जगाने की ताक़त होती है और जब साज़ और कलाकार में एकात्म हो जाता है तब साज़ एक लिविंग एंटिटी की भांति काम करने लगता है।
इसी क्रम में नागनाथ की दो अन्य पेंटिंग्स भी मेरे देखने में आईं। एक चित्र ‘ म्यूजिशियन इन ए सिटी’ में दरअसल होती हुई बारिश ही दृश्य की नायिका है और है एक पुरानी स्टाइल का ट्रक, हमारी सेना के शक्तिमान ट्रक के जैसा। दृश्य की नायिका बारिश के संग अपनी धुन में दीखता एक कलाकार है जिसके दाहिने हाथ में एक क्लेरिनेट है। समझने वाली बात यह है कि इस चित्र का नायक वास्तव में यह क्लेरिनेट ही है जिसे बारिश का आनंद ले चुका हर दर्शक समझ ही जाता है। लेकिन ऊंची-ऊंची इमारतें देखकर ये पंक्तियां याद आ जातीं हैं-ऊंची इमारतों ने मेरा आस्मां ढंक लिया, कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज खा गए। दूसरा चित्र ‘ रे चार्ल्स ‘ खुलकर हंसते एक ऐसे व्यक्ति का पोर्ट्रेट है जो मजबूत कद-काठी का है और संकल्पित व्यक्तित्व की अनुशासित मगर खुलकर हंसी गई हंसी की लकीरें और शेड्स कैसे होंगे यह इस चित्र के चेहरे में डूबकर देखा जा सकता है, इस हंसते नायक ने जो धूप काला चश्मा पहन रखा वह एक अलग रहस्य का सूत्र भी है। ये दोनों चित्र ब्लैक एंड व्हाइट हैं और यह चारकोल का कार्य है जिसमें नागनाथ इतने निपुण हैं कि कहा ही क्या जाए।

अगर शैल चित्रकला के इतिहास से शुरू करके सोचें तो एकबारगी लगता है कि क्या चित्रकला यानी कोई अतीत की यात्रा करने जैसा है और न केवल समय के मामले में, बल्कि हमारा अपना इतिहास, हमारी भावनाएं भी क्या अंततः कलात्मक अभिव्यक्ति के लिए हैं, आखिर इसमें क्या दर्शन छुपा हुआ है? इतिहास के आगे बढ़ने के दौर के दौरान शैलचित्र बुद्धि और स्मृति के अंतर्संबंधों के अंकेक्षक हैं जिससे विवेक की निर्मिति हुई तत्पश्चात आज के दौर का वह चर्चित विचार कांशसनेस भी उपजा जो तब भी था मगर छोटे और सघन फॉर्म में। कहते हैं चित्रकार का महान उद्देश्य होता है, न केवल किसी शरीर के बाहरी स्वरूप को, बल्कि उसके आंतरिक सार, उसकी ऊर्जा, जीवन शक्ति और आत्मा को भी पकड़ना, चैतन्य की यही समग्रता किसी कला को कालजयी हो जाने की तरफ ले जाती है।

आज का इंसान समझता है कि प्रकृति उसी के लिए बनी है और उसके जीवन का उद्देश्य प्रकृति के दोहन के अलावा और कुछ है ही नहीं। आज के समय की दिखती समझ से ऐसा लगता है कि संरक्षण और किफ़ायत से प्रकृति के साथ रिश्ता रखने का काम अनदेखे, अज्ञात एलियंस का है हमारा नहीं I तभी तो चित्रकला और साहित्य में लोगों को दिखाई दे रहा है कि प्रकृति और संगीत चारों तरफ अनुपस्थित है ऐसे में कंक्रीट के जंगल के बरक्स आज प्रकृति के स्रोत व संगीत पर कूची चलाना जोखिम भरा है और वर्चुअल क्रिएटर कहलाने का खतरा मोल लेना है। लेकिन नागनाथ यह खतरा मोल लेते हैं और ऐसा कुछ कर दिखाते हैं जिससे उनके बोलते चित्रों का साइलेंस चित्रों को देखने वालों के भीतर उतर जाता है और देर तक उसके भीतर गूंजता रहता है। दर्शक को वे इस अकाट्य तर्क के लिए कन्विन्स करने में सफल हो जाते हैं कि संगीत के सुरों की याद भर दिलाकर दर्शक के अंदर सुप्त पड़े भूतकाल को जगा कर उसे वर्तमान से कनेक्ट किया जा सकता है।
नागनाथ जी के चित्र संग्रह देखकर ऑर्गेनिक फीलिंग्स पैदा होती हैं। ये चित्र एक सुघड़ सोच, विश्वास और कॉन्सेप्ट के तहत निर्मित हैं इसीलिए ये वैसा ही असर देखने में पैदा करते है और दर्शक-पाठक को रोककर थाम लेते हैं। यही तो ग्रेविटी की बात है जिसकी तलाश समकालीन कला के अंदर हर रसिक कर रहा है।

इसी के बरक्स देखें तो साइबर वर्ल्ड में दृश्य अनुभव के लिए एक नया आयाम पेश करने वाली आधुनिक डिजिटल कला की धारा, रेटिना और ऑप्टिकल भ्रम के कंपन पर आधारित है, जो दर्शक की दृश्य धारणा के साथ एक खेल पैदा करती है, आखिर यह कितना सही है ! दो मौलिक अलग-अलग पक्ष मशीन और मानव शरीर यथा सूचनात्मक ज्ञान और अंतर्ज्ञान कैसे भला मिल सकते हैं मौलिक आधार की कला में! डिजिटल और ऑर्गेनिक इन दो पक्षों में से अगर किसी एक को चुनने को मुझे कहा जाए तो मैं ऑर्गेनिक यानी निसर्ग का चुनाव करूंगा, ऐसा मुझे नागनाथ मानकेश्वर के काम को देखकर लगा। नागनाथ जी से चर्चा भरी मुलाकात कर लौटते हुए मैं सोच रहा था कि आजकल की डिजिटल तकनीक चित्रकला या पारंपरिक या समकालीन पेंटिंग को एक अतिरिक्त भौतिक कनेक्शन तो जरूर प्रदान करती है, लेकिन क्या इससे मनुष्य का नितांत एक आत्मिक/अंतरंग अनुभव जो पहले हुआ करता था इस डिजिटल ब्रह्मांड में कहीं खो तो नहीं गया है? डिजिटल और ऑर्गेनिक कला के इन दो पक्षों में से अगर मुझसे किसी एक को चुनने को कहा जाए तो मैं ऑर्गेनिक यानी निसर्ग का चुनाव करूंगा, ऐसा मुझे नागनाथ मानकेश्वर जी के चित्रों को देखकर हमेशा से लगता है। इतना सब कह चुकने के बाद हंसध्वनि के इस मंच से फिर कहता हूं कि साइलेंस की आवाज़ को सुनना हो तो नागनाथ की पेंटिंग्स जरूर देखिए।
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