आजाद भारत के विकास का गांधी मॉडल

- डॉ.ब्रह्मदीप अलूने
‘गांधी है तो भारत है’ के लेखक और राजनीति शास्त्र के प्राध्यापक
देशी घी के बारे में पारंपरिक मान्यता है कि यह स्मरण शक्ति और एकाग्रता को बढ़ाता है। हृदय के लिए यह लाभकारी माना जाता है,पाचन के लिए उत्तम है तथा दिमाग को शांत करने में भी मदद करता है। घी पाचन अग्नि को प्रज्वलित करने में मदद करता है। भारत की आज़ादी के सफर में बापू आम जन के लिए देशी घी का डोज थे। देशी घी की तरह ही बापू की छाप करोड़ो लोगों में ताकत और उत्साह का संचार करती रही तथा अंततः अंग्रेजों को देश छोड़कर जाना पड़ा।
बापू का दिमाग इतना शांत था कि अंग्रेज जब भारत को तोड़ रहे थे, बापू गांवों में जाकर भारत को जोड़ रहे थे। अंग्रेज दिल्ली में रहकर भारत की सत्ता चलाने का मंसूबा पाले थे,बापू ने कहा की हर गांव एक देश के बराबर है। बापू को गांवों का देशी नुस्खा जिसे ग्राम स्वराज भी कहा जाता है बखूबी याद था, हिंदुस्तान में इसकी जड़ें बहुत बहुत गहरी है। बापू अक्सर राम राज्य की बात कहते थे, इसका कारण था कि उन्होंने रामायण को खूब पढ़ा था। वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में ग्रामीण जीवन और समाज के विकास के बारे में विचार किया गया है। इसमें ग्रामीण क्षेत्रों की सामाजिक और प्रशासनिक व्यवस्थाओं का वर्णन है। यह विशेष रूप से रामराज्य के आदर्शों को प्रस्तुत करता है, जिसमें प्रशासन की सुव्यवस्था, न्याय व्यवस्था और गांवों के प्रशासनिक कार्यों के संचालन के तरीके पर प्रकाश डाला गया है। कैसे राजा और उसके प्रशासनिक अधिकारी गांवों की देखरेख करते थे और सुनिश्चित करते थे कि वहां के लोग सुरक्षित और समृद्ध रहें। यह प्राचीन भारत के ग्रामीण प्रशासन का एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करता है,जिसमें एक न्यायपूर्ण और सुव्यवस्थित शासन की झलक मिलती है।
ब्रिटिश गवर्नर जनरल चार्ल्स टी. मेटकाफ ने अपने अध्ययनों के आधार पर 1932 में भारतीय ग्रामों को लघु-गणराज्य की संज्ञा दी थी। उनके मतानुसार स्व-शासन के कारण ही भारतीय गांव सदैव बाहरी दबावों से मुक्त रहे हैं और अनेक विदेशी आक्रमणों के बाद भी सहस्रब्दियों से भारतीय संस्कृति अक्षुण्ण रही। प्रजा द्वारा निर्वाचित ग्रामणी या ग्राम प्रमुख व विशपति द्वारा ग्राम सभाओं के माध्यम से जनभावनाओं के अनुरूप स्थानीय शासन को चलाया जाता था। ग्रामणी, ग्रामाधिप, ग्राम सभा, विश, विशपति व पंचायतों आदि के संदर्भ वेदों में हैं। बीस गांवों की भौगोलिक इकाई विश कहलाती थी और बीस, सौ व एक हजार ग्रामों के अधिपति को क्रमश: विशपति, शत ग्रामाधिप व सहस्र ग्रामाधिप कहा जाता था।
महात्मा गांधी द्वारा भारत की आजादी से बहुत पहले प्रस्तावित ग्रामीण पुनर्निर्माण की एक अनूठी अवधारणा को आज़ाद भारत में ग्राम विकास का एक महत्वपूर्ण वैकल्पिक मॉडल माना तथा इसके आधार पर आर्थिक विकास करने की ओर कदम बढ़ाएं। इसमें सामाजिक सहभागिता पर आधारित मॉडल को भी प्राथमिकता से लागू किया गया जिससे लोककल्याण और सामाजिक न्याय का मार्ग प्रशस्त हो सके। इसके अंतर्गत सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिए पंचायत राज संस्थाओं की शासन क्षमताओं का विकास तथा पंचायती प्रणाली के भीतर जनभागीदारी,पारदर्शिता तथा जवाबदेही के लिए ग्राम सभाओं को मजबूत बनाया गया। राज्य सरकारों ने भी पंचायतों की स्थापना की और ध्यान दिया। 1952 में सामुदायिक विकास कार्यक्रम प्रारम्भ हुए। 1992 में संविधान में 73 वां और 74 संशोधन बेहद प्रभावी और लाभदायक रहा। 73 वां संशोधन ग्रामीण स्वायत्तता से संबंधित है जबकि 74 वां संशोधन शहरी प्रशासन से। इस अधिनियम का उद्देश्य शासन व्यवस्था को अधिक लोकतांत्रिक बनाना था तथा 1993 में स्थानीय सरकार को संविधानिक दर्जा मिलना मील का पत्थर साबित हुआ। ग्राम स्वराज से लेकर पंचायतों तक की परिकल्पना में बापू बार बार याद दिलाते है की असल आज़ादी के लिए गांवों का विकास जरूरी है।
गांधीजी हमेशा कहा करते थे कि अपनी राह खुद चुननी चाहिए। किसी और के रास्ते पर चलने से बेहतर है कि आप अपनी आत्मा की आवाज सुनकर अपना मार्ग निर्धारित करें। बापू भारी भरकम साम्राज्य का मुकाबला हथियारों से तो कर नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने ग्राम स्वराज से अंग्रेजों को चुनौती दी। महात्मा गांधी,ग्राम स्वराज में कहते थे कि हमारे गांवों की सेवा करने से ही सच्चे स्वराज की स्थापना होगी, अन्य सब प्रयत्न निरर्थक सिद्द होंगे। अगर गांव नष्ट हो जाएं तो हिंदुस्तान भी नष्ट हो जाएगा। गांव उतने ही पुराने है जितना भारत पुराना है।
दिल्ली की सत्ता की लड़ाई का इतिहास बहुत पुराना है और मध्ययुग में तो यह बेहद रक्तरंजित रहा है। बापू का तो हिंसा पर विश्वास ही नहीं था। उन्होंने सत्ता के केंद्र को ही बदल दिया और कहा की आजादी नीचे से शुरू होनी चाहिए। हर एक गांव में पंचायत का राज होगा। उसके पास पूरी सत्ता और ताकत होगी। इसका मतलब यह है कि हर एक गांव को अपने पांव पर खड़ा होना होगा। अपनी ज़रूरतें खुद पूरी कर लेनी होगी, जिससे वह अपना सारा कारोबार खुद चला सके। यहां तक कि वह सारी दुनिया के खिलाफ अपनी रक्षा खुद कर सके। उसे शिक्षा देकर इस हद तक तैयार करना होगा कि वह बाहरी हमले के मुकाबले में अपनी रक्षा करते हुए मर मिटने के लायक बन जाए। इस तरह आखिर हमारी बुनियाद व्यक्ति पर होगी। इसका यह मतलब नहीं कि पड़ोसियों पर या दुनिया पर भरोसा ना रखा जाए या उनकी राजी खुशी से दी हुई मदद न ली जाए। कल्पना यह है कि सब लोग आजाद होंगे और सब एक दूसरे पर अपना असर डाल सकेंगे।
बापू ने आज़ादी का मंत्र गांवों से फूंका और उसका असर भारत छोड़ो आंदोलन में देखने को मिला जब गांव गांव से अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंका गया और समांतर सरकारों की स्थापना कर ली गई। बापू ने दक्षिण अफ्रीका और ब्रिटेन में 21 साल बितायें थे लेकिन जब वे भारत लौटे और आज़ादी के आंदोलन में शामिल हुए तो लोगों से हिंदी,गुजराती या स्थानीय भाषाओं में बात करते थे। संवाद का माध्यम लोगों से जोड़ता है और बापू का माध्यम बिल्कुल देशी था। बापू का जीवन बहुत कुछ सिखाता है। काश हमारे दूसरे नेता भी देशी घी बन पाते तो भारत की सारी बीमारियों का इलाज संभव हो जाता। ब्रिटिश खुफिया एजेंसियों ने गांधी को अहिंसक होने के बावजूद सबसे ख़तरनाक आदमी कहा था क्योंकि वह बिना हथियार उठाए करोड़ों लोगों को विद्रोह के लिए प्रेरित कर सकते थे। बापू ने यह काम बखूबी किया और वह भी देशी तरीके से। कुल मिलाकर आप बापू को आप देशी घी कह सकते है।