कहां गई होगी, क्यों गई होगी, उसका क्या हुआ होगा?

जे.पी.सिंह, वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के विशेषज्ञ


मध्य प्रदेश सरकार ने जुलाई 24 में राज्य विधानसभा में बताया कि पिछले तीन वर्षों में यानी 1 जुलाई 2021 से 31 मई 2024 के बीच राज्य में 31,000 से अधिक महिलाएं और लड़कियां लापता हुईं। कुल संख्या में 28,857 महिलाएं और 2,944 लड़कियां हैं। राज्य ने कांग्रेस विधायक और राज्य के पूर्व गृहमंत्री बाला बच्चन द्वारा उठाए गए सवाल के जवाब में यह डेटा पेश किया। एनडीटीवी की एक रिपोर्ट मुताबिक मध्य प्रदेश में हर दिन औसतन 28 महिलाएं और तीन बच्चे लापता होते हैं। देश में 2019 से 2021 के बीच लापता हुई लड़कियों और महिलाओं में सबसे अधिक लगभग दो लाख लड़कियां मध्य प्रदेश से हैं। दूसरे स्थान पर पश्चिम बंगाल है।

केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2019 से 2021 के बीच देश भर में 18 वर्ष से अधिक आयु की 10,61,648 महिलाएं और उससे कम आयु की 2,51,430 लड़कियां लापता हुईं। यूएनएफपीए (संयुक्त राष्ट्र यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य एजेंसी) की रिपोर्ट बताती है कि यदि भारत की जनसंख्या वर्तमान दर से, जो लगभग एक प्रतिशत प्रतिवर्ष है, बढ़ती रही तो अगले 75 वर्षों में यह वर्तमान से दोगुनी हो जाएगी। लेकिन भारत महिला जनसंख्या के मामले में आज भी पिछड़ा हुआ है और यहां महिलाओं और लड़कियों की संख्या अनुमान से करोड़ों कम है। हमारे देश में महिलाओं के खिलाफ हिंसा का एक क्रूर रूप है महिलाओं का लापता हो जाना। अफसोस की बात है ये महिलाओं और किशोरियों की आर्थिक स्थिति, शैक्षिक स्थिति, सामाजिक और यहां तक कि राजनीतिक स्थिति से भी जुड़ी है। इतनी बड़ी संख्या में महिलाओं का लापता होना देश में महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट से पता चलता है कि इसी समयावधि के दौरान 18 वर्ष से अधिक आयु की दस लाख से अधिक महिलाएं और 18 वर्ष से कम आयु की 25 लाख लड़कियां लापता हुई हैं। भारतीय गृह मंत्रालय की ओर से साल 2023 संसद में पेश की गई रिपोर्ट में महिलाओं को लेकर चिंताजनक स्थिति पर प्रकाश डाला गया। गृह मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि देश में 2019 से 2021 के बीच 13.13 लाख से ज्यादा लड़कियां और महिलाएं लापता हो गईं। ये आंकड़े राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जुटाए गए हैं। मंत्रालय ने संसद को बताया कि देश में 2019 से 2021 के बीच 18 साल से अधिक उम्र की 10,61,648 महिलाएं और 18 साल से कम उम्र की 2,51,430 लड़कियां गायब हो गईं। गायब हुईं महिलाएं और लड़कियां सबसे अधिक मध्य प्रदेश की हैं। मध्य प्रदेश में 1,60,180 महिलाएं और 38,234 लड़कियां इस अवधि के दौरान गायब हुईं। इसके बाद दूसरे स्थान पर पश्चिम बंगाल है, जहां 1,56,905 महिलाएं और 36,606 लड़कियां लापता हो गईं। महाराष्ट्र में 1,78,400 महिलाएं और 13,033 लड़कियां इस अवधि के दौरान लापता हो गईं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 और 2021 के बीच जम्मू और कश्मीर से 9,765 महिलाएं और लड़किया लापता हो गईं। इनमें 18 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं की संख्या 8,617 और 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों की संख्या 1,148 थी।

केंद्र शासित प्रदेशों से महिलाओं के लापता होने की घटनाओं में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली पहले स्थान पर है, जहां इस अवधि के दौरान 61,054 महिलाएं और 18 वर्ष से कम उम्र की 22,919 लड़कियां लापता हो गईं। ओडिशा में 70,222 महिलाएं और 16,649 लड़कियां लापता हुईं, जबकि आदिवासी बहुल राज्य छत्तीसगढ़ में 49,116 महिलाएं और 10,817 लड़कियां लापता हुईं। एनसीआरबी ने इस संख्या की गणना गुमशुदा महिलाओं और लड़कियों के संबंध में पुलिस स्टेशनों में दर्ज रिपोर्टों के आधार पर की है। हालांकि सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि असल संख्या अधिक हो सकती है क्योंकि कई परिवार सामाजिक कलंक समेत विभिन्न कारणों से लापता लड़कियों की रिपोर्ट दर्ज नहीं कराते हैं।

डेक्कन हेराल्ड की एक खबर मुताबिक 2019 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर शुरू किए गए एनसीआरबी द्वारा किए गए पहले के विश्लेषण का उद्देश्य बाल और महिला तस्करी के लिए अतिसंवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करना था। इस विश्लेषण के अनुसार, इन लापता मामलों के कारण जटिल और बहुआयामी हैं, जिनमें मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और गलतफहमी से लेकर घरेलू हिंसा और आपराधिक उत्पीड़न तक शामिल हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि लापता महिलाओं के लिए सेक्स-सिलेक्टिव अबॉर्शन (भ्रूण लिंग परीक्षण उपरांत गर्भपात) और पोषण व स्वास्थ्य देखभाल में प्रसवोत्तर उपेक्षा को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। ये लापता महिलाएं लड़कों के लिए एक मजबूत सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक प्राथमिकता को दर्शाती हैं। भारतीय नोबेल पुरस्कार विजेता, अर्थशास्त्री अमर्त्य कुमार सेन ने गणना की है कि किस प्रकार लिंग अनुपात, लापता महिलाओं की संख्या में परिवर्तित हो जाता है। सेन ने 1992 में ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में ‘लापता महिलाओं’ की अवधारणा प्रस्तुत की थी। उन्होंने अनुमान लगाया था कि 100 मिलियन महिलाएं लापता हैं, जिनमें से 80 फीसद भारत और चीन से हैं।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट के अनुसार श्रम और यौन तस्करी के लिए, भारत एक स्रोत, गंतव्य और ट्रांसिट देश है। भारत में 90 फीसद तस्करी देश के भीतर होती है, जबकि 10 फीसद राष्ट्रीय सीमाओं के पार होती है।
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) द्वारा जारी 2020 की वैश्विक आबादी की स्थिति रिपोर्ट के अनुसार पिछले 50 सालों में लापता हुईं महिलाओं की संख्या दुगुनी हो गई है। यह संख्या साल 1970 में 6.10 करोड़ थी जो 2020 में बढ़कर 14.26 करोड़ हो गई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में साल 2020 तक 4.58 करोड़ और चीन में 7.23 करोड़ और 23 लाख महिलाएं लापता हुई हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने 2016, 2017 और 2018 की अवधि में किए गए ‘भारत में लापता महिलाएं और बच्चे’ अध्ययन में पाया कि देश में 5,86,024 महिलाएं लापता हैं। इसका मतलब है कि भारत में हर दिन 550 से ज़्यादा महिलाएं लापता हो रही हैं। इसे अक्सर सेक्स ट्रैफिकिंग से जोड़ा जाता है, जबकि यह मानव तस्करी के कहानियों का सिर्फ एक पहलू है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट ‘महिलाओं और बच्चों की तस्करी: चुनौतियां और समाधान’ के अनुसार श्रम और यौन तस्करी के लिए भारत एक स्रोत, गंतव्य और ट्रांसिट देश है। भारत में 90 फीसद तस्करी देश के भीतर होती है, जबकि 10 फीसद राष्ट्रीय सीमाओं के पार होती है। महिलाओं और बच्चों की मानव तस्करी मानवाधिकारों के हनन के सबसे जघन्य प्रकारों में से एक है। चूंकि यह एक जटिल समस्या है, इसलिए इस पर शिक्षाविदों, कानूनी पेशे और नागरिक समाज ने बहुत कम ध्यान दिया है। आंकड़ों के अनुसार, भारत में मानव तस्करी किए गए 95 प्रतिशत लोगों को जबरन सेक्स ट्रैफिकिंग में डाल दिया जाता है। 2011 में मानव तस्करी के खतरे के संदर्भ में तस्करी सूचकांक में 196 देशों में से इसे सातवें स्थान पर रखा गया था।

संयुक्त राष्ट्र और विश्व बैंक जैसे संगठनों ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों से निपटने के लिए मजबूत, विश्वसनीय और अलग-अलग डेटा प्रणालियों को संभावित तरीकों के रूप में माना है। 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार, वे स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा और शासन जैसे प्रमुख क्षेत्रों में नैदानिक कार्य, रोकथाम और प्रतिक्रिया प्रयासों और नीतियों को सूचित करते हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट के अनुसार तस्करी की शिकार अधिकांश उत्तरदाता आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों से थे। सरकार महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा की बात करती आ रही है। लेकिन लापता होती महिलाओं और लड़कियों की संख्या में कमी नहीं आ रही है। वहीं ये भी सच है कि ये सिर्फ दर्ज हुए केस हैं, क्योंकि बहुत से लोग लापता के मामले लोक लाज के डर से दर्ज नहीं कराते हैं। यूएनएफपीए द्वारा जारी 2020 की वैश्विक आबादी की स्थिति रिपोर्ट के अनुसार पिछले 50 सालों में लापता हुईं महिलाओं की संख्या दुगुनी हो गई है। यह संख्या साल 1970 में 6.10 करोड़ थी जो 2020 में बढ़कर 14.26 करोड़ हो गई है।

दरअसल, महिलाओं और लड़कियों का लापता होना और मानव तस्करी एक दूसरे से जुड़े हैं और ये बहुआयामी समस्या है, जिसमें गरीबी एक महत्वपूर्ण कारक है। लापता होती महिलाओं-लड़कियों के पीछे की एक बड़ी वजह मानव तस्करी है। देश के बड़े शहरों से होकर इन महिलाओं को अन्य दूसरे देशों तक पहुंचाया जाता है। सेक्स वर्कर और जबरन शादी के लिए लड़कियों की तस्करी बड़ी तादाद में होती है। तस्करी की गई लड़कियों को देह व्यापार में धकेला जाता है, उनकी जबरन शादी कराई जाती है और एक ही लड़की को कई बार बेचा जाता है, ऐसे में उनको ट्रैक करना मुश्किल हो जाता है।

जुलाई 2022 में पश्चिम बंगाल सरकार ने महिलाओं के प्रवासन और तस्करी को रोकने के लिए महाराष्ट्र सरकार के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। तस्करी की जाने वाली महिलाओं और लड़कियों की सबसे ज्यादा आवाजाही इन दोंनो राज्यों के बीच होती है इसलिए इस ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।महाराष्ट्र में वर्ष के शुरू में तेजी से महिलाओं के लापता होने के मामलों की बढ़ती संख्या पर महिला आयोग ने यह भी कहा था कि महिलाओं की तस्करी करके पुणे से दुबई और ओमान में की जा रही है। तीन साल में 13 लाख से ज़्यादा औरतें-लड़कियां ऐसे गायब हो जाती हैं कि उनका कुछ पता ही नहीं चलता है, किसी के माथे पर कोई शिकन तक नहीं है। ये तो वो आंकड़े हैं जो पुलिस थानों में दर्ज हुए हैं, ना जाने कितनी महिलाओं-लड़कियों के परिवार वाले थाने तक पहुंचे ही नहीं होंगे, उन्हें या तो तथाकथित इज्ज़त के जाने का डर होगा या फिर वो ये सोचकर चुप बैठ गए होंगे कि उनकी बहन-बेटी अपने किसी प्रेमी के साथ चली गई होगी क्योंकि जब कोई औरत गायब होती है तो सबसे पहले यही माना जाता है कि वो भाग गई होगी। लेकिन वो कहां गई होगी, क्यों गई होगी, और उसके बाद उसका क्या हुआ होगा ये कोई नहीं जानना चाहता है। यानी कि एक बार लड़की घर से चली गई तो फिर उसका नाम लेवा कोई नहीं।

One thought on “कहां गई होगी, क्यों गई होगी, उसका क्या हुआ होगा?

  1. स्तिथियाँ बद से बदतर ही हुई हैं.

    सरकार, यू एन , तथा गैर सरकारी संस्थानों ने विगत दशक में इस मुद्दे पर बजट बढ़ाये. तमाम कार्यक्रमों तथा गतिविधिओं पर खर्च हुआ . मीडिया के लिए शानदार योजनाएं (महिलाओं व् बच्चों के लिए सुरक्छित शहर) प्रस्तुत हुए और हो रहे हैं. पुलिस , ऑटो-ड्राइवर्स , पोर्टर्स , के प्रशिक्षण हुए. आदि!

    मर्ज बढ़ता गया , ज्यों – ज्यों दवा करी हमने!

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