मुक्तेश्वर की सैर और मेरे निजी अनुभव
अनुजीत इकबाल, लखनऊ
उत्तराखंड का कुमाऊं क्षेत्र, अरण्य की शांति, छोटी छोटी जलधाराओं की मधुर ध्वनि और हिमाच्छादित चोटियों की शांति से गूंजता हुआ एक मौन…। इस शांत वातावरण के बीच स्थित है, एक सुंदर स्थान- मुक्तेश्वर। यह ऐसा स्थान है जहां प्रकृति और आध्यात्मिकता एक दूसरे से मिलते हैं और मन से थके हुए मनुष्यों को एक अनोखा आश्रय प्रदान करते हैं। मुक्तेश्वर केवल एक टूरिस्ट स्पॉट नहीं है, यह एक अनुभव है, सादगी, सुंदरता और गहरी शांति की दुनिया में एक कदम, जैसे अश्रु-सिक्त नयन लेकर विलाप से उन्मुक्त हुई बालिका के ऊपर पर एक का पुष्प आ गिरे, जिसकी सुरभि हृदय को आलोकित कर दे…जैसे रिक्त कैनवास पर बालक के निश्छल कर-क्रीड़ा से उड़ेले गए विविध वर्ण, उस रिक्तता को कला की मंद सुगंध से पूरित कर दें… जैसे खिन्न हृदय ने आस्था के दीप को प्रज्वलित किया हो और जीवनरात्रि में उज्ज्वल सुबह का अभिसरण हुआ हो।
पिछले कुछ वर्षों में जीवन और प्रकृति के रहस्यों को समझने के क्रम में एक दीर्घ काल तक यहां के वनप्रांतों में निवास किया है। यह क्षेत्र साक्षात् प्रकृति का मंदिर है, जहां हर कदम पर विविधता का आलोक दृष्टिगोचर होता है। यहां सैकड़ों झरनों की मदमस्त ध्वनियां हैं, दुर्लभ जड़ी-बूटियां हैं और अनेकों पक्षियों व तितलियों की असीमित प्रजातियां हैं। यही वह स्थल है जहां बाघ, तेंदुआ, भालू और अन्य वन्यजीवों की सघनता अपने उच्चतम रूप में दृष्टिगोचर होती है। यहां के जंगलों में ऐसे अद्भुत पुष्प खिलते हैं, जो केवल एक दिन के लिए अपनी आभा बिखेरते हैं और वहीं कुछ ऐसे पुष्प भी हैं, जो वर्ष भर अपनी रंग-बिरंगी छटा से वातावरण को रसमय बनाए रखते हैं।
यह स्थान पृथ्वी के सबसे जीवंत और सजीव स्थानों में से एक है। यहां की वायु में एक तिलिस्म सा बसा हुआ है, जो मनुष्य के हृदय में गहरे अवसाद को भी हर्षित कर देता है। यहां के सरल पहाड़ी लोग अपनी सरलता और सहजता में एक अद्वितीय शक्ति रखते हैं। यह क्षेत्र अपनी सीमित धार्मिक पहचान के कारण मेरे लिए एक गूढ़ रहस्य की तरह था, जिसे समझने और अनावृत्त करने में मुझे समय लगा। मेरा विश्वास है कि मुक्तेश्वर को जीवन में एक बार अवश्य देखना चाहिए। कवि, चित्रकार, किस्सागो, यायावर और प्रेमी इसे बारम्बार देखें क्योंकि यहां का हर कोना एक अद्भुत रचना है, जो हर कला और भावनाओं को समाहित कर जीवन के नए रंग प्रस्तुत करता है।
मुक्तेश्वर का नाम मुक्तेश्वर महादेव मंदिर से लिया गया है, जो भगवान शिव को समर्पित एक पवित्र स्थल है। समुद्र तल से 2,285 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर क्षेत्र का आध्यात्मिक और भौगोलिक शिखर है। केवल धार्मिक दृष्टि से नहीं, बल्कि प्रकृति और आत्मचिंतन से जुड़ने का माध्यम भी है। मंदिर तक की यात्रा घने ओक, बुरांश और देवदार के जंगलों से सजी हुई है। उनकी ऊंची, शांत शाखाएं जैसे आकाश को छूने की कोशिश करती हैं। पगडंडियों में जंगली फूलों की खुशबू और पक्षियों की मधुर ध्वनि गूंजती रहती है। हर मोड़ पर एक नई तस्वीर उभरती है। पहाड़ों पर प्रकाश और छाया का खेल, घाटियों में बसे दूर के गांवों की झलक, और कभी-कभी साफ दिन पर नंदा देवी, त्रिशूल, पंचाचुली के शिखर मंदिर में समय जैसे ठहर-सा जाता है। यहां की शांति केवल हवा की सरसराहट या भक्तों द्वारा बजाई गई घंटियों की मधुर ध्वनि से टूटती है। एक गहरी कनेक्टिविटी महसूस होती है, ब्रह्मांड के साथ एक ऐसा संबंध जो जीवन की विशाल चादर में हमारी जगह का विनम्र स्मरण कराता है। लेकिन टूरिस्ट यहां शांति रहने नहीं देते। सोशल मीडिया के लिए तस्वीरें लेने का स्थान बना दिया गया है इसको।
मुक्तेश्वर मंदिर के समीप स्थित चौली की जाली मानो पर्वत की शिला पर स्वर्ग का एक द्वार है, जहां से हिमालय के बर्फ से आच्छादित शिखरों का दिव्य दर्शन होता है। यह स्थान केवल दृश्यावलोकन नहीं, बल्कि लोक-विश्वास और पौराणिक गाथाओं का भी केंद्र है। कहते हैं, जो निःसंतान दंपत्ति इस ‘जाली’ की संकरी दरार से गुजरते हैं, वे संतान के आशीर्वाद से कृतार्थ हो जाते हैं। इस चट्टान के किनारे खड़े होकर, ठंडी पर्वतीय वायु का स्पर्श ऐसा प्रतीत होता है जैसे स्वयं प्रकृति अपने शीतल हाथों से मन को शांति दे रही हो। हिमालय की श्वेत भव्यता और नीचे फैली घाटियों की हरियाली एक ऐसा अनुपम दृश्य रचती हैं, जो आत्मा को नई ऊँचाइयों का आभास कराता है। चौली की जाली, अपनी आध्यात्मिक आभा और प्रकृति की महिमा में विलीन होने का एक अद्वितीय स्थल है, जो हर आगंतुक के हृदय में एक अमिट स्मृति छोड़ जाता है।
मुक्तेश्वर में इसके इलावा भालू गाड़ जलप्रपात, भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई), मुक्तेश्वर निरीक्षण बंगला आदि भी हैं। मेरा स्थाई प्रवास मधुबन कॉटेज, जहां मुक्तेश्वर अपने आगंतुकों को पहाड़ों और आध्यात्मिकता का आकर्षण प्रदान करता है, इस अनुभव में एक व्यक्तिगत स्पर्श जोड़ता है। सरगाखेत की शांत सुंदरता के बीच स्थित, यह स्थल ग्रामीण सादगी और आधुनिक आराम का एक सुंदर संगम है। पिछले चार वर्षों से यह स्थान, मेरा ठिकाना रहा है। दीपक बिष्ट द्वारा सहेजा गया यह स्थान एक घर से बढ़कर है, यह एक ऐसा आश्रय है जहां जीवन के सच्चे अर्थों को फिर से खोजा जा सकता है। जब मैंने पहली बार मधुबन कॉटेज का दौरा किया तो इसकी साधारण सुंदरता ने मुझे मोहित कर लिया था। हरियाली और ऊंचे पेड़ों से घिरे इस कॉटेज ने जैसे परिदृश्य का हिस्सा बनकर उसमें घुल-मिल गया हो। इसके पत्थर की दीवारें और लकड़ी का आंतरिक भाग एक गर्मजोशी का अहसास कराते हैं, जिससे मैं तुरंत घर जैसा महसूस करने लगी। दीपक बिष्ट, इस कॉटेज के मेजबान, अतिथि सत्कार की भावना के प्रतीक हैं। उनकी गर्मजोशी और हर छोटी बात पर ध्यान देने की आदत हर अतिथि को आगंतुक नहीं, बल्कि मधुबन परिवार का हिस्सा बना देती है। वर्षों से, इस स्थान और इसके लोगों के साथ मेरा बंधन गहरा हो गया है, जो मेरे मुक्तेश्वर के अनुभव का अभिन्न हिस्सा बन गया है। मेरे सबसे प्रिय पहलुओं में से एक है यहां का खाना। यहां के कुक कृष्णा जी किसी जादूगर से कम नहीं हैं। उनके द्वारा बनाए गए व्यंजन सरल होते हुए भी बेहद स्वादिष्ट होते हैं, जो कुमाऊं की स्थानीय परंपराओं में जड़े हुए हैं। मेरे प्रवास का सबसे खास हिस्सा हमेशा उनके हर्बल पकौड़े और अदरक-तुलसी वाली चाय रही है। क्षेत्र की प्रचुर प्राकृतिक जड़ी-बूटियों से तैयार ये व्यंजन स्वाद का अनूठा अनुभव प्रदान करते हैं। कुरकुरे पकौड़े और गर्म चाय का आनंद कॉटेज के शांत वातावरण में लेना अपने आप में एक अनोखा अनुभव है।
इस कॉटेज की एक विशेषता यह भी है कि यह परिवारों के लिए एक सुरक्षित और स्वागत योग्य वातावरण प्रदान करता है। एक बार-बार यात्रा करने वाले के रूप में, मैंने हमेशा ऐसे स्थानों की खोज की है जो बच्चों की ज़रूरतों को पूरा करें। यहां, सुरक्षा और आराम सर्वोपरि हैं। प्राकृतिक सुंदरता से घिरे विशाल कमरे उन परिवारों के लिए एक आदर्श स्थान हैं जो आराम करना चाहते हैं। बच्चे यहां सुरक्षित परिसर में खेल सकते हैं, पास की पगडंडियों की खोज कर सकते हैं या केवल पक्षियों और तितलियों की संगति का आनंद ले सकते हैं। वहां बिष्ट जी और कृष्णा जी के बच्चे भी हैं, जिनके साथ मिल कर बच्चे खूब खेलते हैं। शहरी शोर और व्याकुलता की अनुपस्थिति एक शांतिपूर्ण वातावरण बनाती है, जिससे परिवार एक-दूसरे और प्रकृति से फिर से जुड़ सकते हैं।
यह केवल ठहरने की जगह नहीं है, यह प्रकृति को उसके शुद्धतम रूप में अनुभव करने का द्वार है। यहाँ की सुबहें किसी जादू से कम नहीं होतीं। जैसे ही सुबह की पहली किरणें पहाड़ों पर फैलती हैं, पक्षियों का संगीत और चीड़ की महक वातावरण को भर देती है। कृष्णा जी की विशेष चाय का प्याला हाथ में लेकर, छत पर बैठकर पहाड़ों को जागते देखना अपने आप में एक अद्भुत अनुभव है। वनों से ढंकी ढलानों पर प्रकाश और छाया का खेल ऐसा दृश्य है जिसे शब्दों में पिरोना कठिन है। शामें भी उतनी ही मोहक होती हैं। डूबते सूरज की लालिमा आकाश को नारंगी और गुलाबी रंगों में रंग देती है और दूर की चोटियां सुनहरे प्रकाश में दमकती हैं। जैसे ही दिन रात में बदलता है, साफ आकाश में तारों की चादर बिछ जाती है। प्रकृति के इस निकटता से एक गहरी ध्यानशीलता का अनुभव होता है। चाहे वह वनों में एकांत में टहलना हो, किसी वृक्ष के नीचे ध्यान लगाना हो, या बस क्षितिज को निहारना हो। यहाँ का हर क्षण आत्मचिंतन और शांति का अवसर बन जाता है।यदि आप कभी अपनी आत्मा को पोषण देने वाले एक आश्रय की तलाश में हों, तो मधुबन कॉटेज से आगे कुछ नहीं।
‘मधुबन कॉटेज’ को गूगल पर खोजकर आप इस स्वर्ग तक पहुंच सकते हैं, जहां आप पहाड़ों की जादुई छवि, आतिथ्य की गर्मजोशी और प्रकृति की शांति का अनुभव कर सकते हैं। जब मैं यहां बिताए अपने वर्षों को देखती हूं तो मुझे अहसास होता है कि मधुबन कॉटेज केवल एक गंतव्य नहीं है; यह एक जीवनशैली है। इसने मुझे धीमा होना सिखाया है, छोटे-छोटे क्षणों का आनंद लेना सिखाया है, और सादगी में खुशी पाना सिखाया है, अपनी शाश्वत सुंदरता और शांत आकर्षण के साथ।
सरगाखेत के बीचों-बीच एक छोटा-सा चौराहा है, जो साधारण लगने के बावजूद असाधारण अनुभवों का केंद्र है। यह चौराहा सिर्फ सड़कों का मिलन बिंदु नहीं, बल्कि स्वाद, सुकून और स्थानीय परंपराओं का अद्भुत संगम है। यह छोटा-सा केंद्र जस्सी की दुकान के बिना अधूरा है। जस्सी, इस छोटी-सी जगह के मालिक और अदभुत शेफ हैं, अपनी अनोखी रचनात्मकता से साधारण व्यंजनों को भी यादगार बना देते हैं। यहां मिलने वाले चाइनीज और कॉन्टिनेंटल व्यंजन जैसे मोमोज, नूडल्स, पिज्ज़ा, सूप और पास्ता आपको किसी बड़े शहर के कैफे की याद दिला सकते हैं। लेकिन जस्सी की रसोई में बनाए गए इन व्यंजनों का स्वाद पहाड़ों के ताजे उत्पादों और उनकी आत्मीयता से और भी बढ़ जाता है। जस्सी अपने हर व्यंजन में एक कवि की तरह नए रंग और स्वाद भरते हैं। पहाड़ी व्यंजन बनाने में उनकी बराबरी कोई नहीं कर सकता। जस्सी की दुकान के ठीक सामने स्थित उमेश भट्ट की चाय की छोटी-सी दुकान हर यात्री के लिए राहत का ठिकाना है। यहां की चाय, खासतौर पर अदरक और तुलसी वाली, ठंडी पहाड़ी हवा में जैसे दिल को गर्माहट से भर देती है। बच्चों के लिए उमेश की माता जी द्वारा बनाया ‘एग पराठा’ विशेष आकर्षण है। हल्के मक्खन में लिपटा यह पराठा हर बच्चे की भूख को तुरंत शांत कर देता है। इनके साथ लगी हुई दुकान है, भोला जोशी की। उनकी दुकान पर परोसी जाने वाली गुड़ वाली चाय का स्वाद अनूठा है। इसका हर घूंट जैसे एक पहाड़ी खेत की सादगी और मिठास का अनुभव कराता है। सिर्फ चाय ही नहीं, भोले जोशी के खेतों में उगाई गई ताजी सब्जियां और मौसमी फल भी यहां खरीदे जा सकते हैं। उनकी दुकान स्थानीय संस्कृति और प्रकृति का जीवंत उदाहरण है।
सरगाखेत का यह चौराहा किसी भी उम्र के व्यक्ति के लिए खास है। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, हर कोई यहां अपनी पसंद का कुछ न कुछ पा सकता है। एक तरफ जस्सी के व्यंजनों का आनंद लें तो दूसरी तरफ उमेश भट्ट की चाय और पराठे का स्वाद। और यदि आप प्रकृति के करीब रहना चाहते हैं तो भोले जोशी के ताजे फलों और सब्जियों के साथ कुछ वक्त बिताएं। अगर आप उत्तराखंड में किसी जगह की खोज में हैं, जहां आप अपने परिवार या दोस्तों के साथ स्वाद और सुकून के अद्भुत संगम का अनुभव कर सकें, तो सरगाखेत का यह चौराहा आपकी यात्रा का अगला पड़ाव होना चाहिए। वैसे, यहां कई महंगे कैफे और बेकरी भी हैं। उनकी सजावट आकर्षक हो सकती है, लेकिन उनके दाम अक्सर स्वाद को फीका कर देते हैं। ₹300 एक कप कॉफी पर खर्च करना मुझे हमेशा एक अनावश्यक खर्च लगता है। जस्सी और उमेश भट्ट जैसे साधारण स्थान मुझे जीवन की सादगी और गहराई की सुंदरता का अहसास कराते हैं। यहां हर कप चाय, हर पराठा, और हर व्यंजन केवल भोजन नहीं है, यह एक अनुभव है, साधारण के भीतर असाधारण का उत्सव। सरगाखेत की ये छोटी दुकानें मुझे बार-बार याद दिलाती हैं कि सच्ची खुशी भव्यता में नहीं, बल्कि सादगी और स्वाद में छुपी होती है।
स्थानीय हैंडीक्राफ्ट इत्यादि के लिए आप किल्मोरा जा सकते हैं, यह NGO चिराग (Central Himalayan Rural Action Group) द्वारा बनाई गई थी। इनकी दुकानें मानो खरीदारी के रसिकों के लिए एक स्वप्निल लोक हो। यहां यात्रियों को स्मृति-चिह्न सुलभ हैं। दुकान में पारंपरिक कुमाऊनी वस्त्रों की आभा के साथ-साथ लोक-शिल्प की मर्मस्पर्शी कथा छिपी है। यहां के हस्तनिर्मित परिधान जैसे स्वेटर, दस्ताने, अलंकरण और शाल, मानो कारीगरों के हाथों से नहीं, उनके हृदय से उपजे हैं। हर धागा, हर बुनाई में पहाड़ की सर्द हवा का संगीत और धरती की ममता महसूस होती है। केवल वस्त्र ही नहीं, किल्मोरा की यह कुटिया सुगंधित मसालों और औषधीय जड़ी-बूटियों के लिए भी विख्यात है। ये मसाले जैसे किसी दिव्य उद्यान से चुने गए फूल हों, जिनमें प्रकृति के हर मौसम का सार संचित हो। यहां की हर वस्तु, हर गंध, हर बुनावट में सृजन और शांति का स्पंदन सुनाई देता है, मानो स्वयं प्रकृति इस छोटे से लोक में निवास करती हो। कीमतें कुछ ज्यादा हैं।मुक्तेश्वर मात्र एक नाम नहीं, वरन् मुक्त हृदयों की अभिव्यक्ति है, जो स्नेह और सौंदर्य की सुरभि से परिपूर्ण है। यह धरा केवल एक स्थान नहीं, अपितु वात्सल्य, आलिंगन, संरक्षण और संवर्धन की मूर्तिमान अभिव्यक्ति है। यह रमणीय स्थान ऐसा कि समस्त चिंताओं को विस्मृत कर, किसी चपल बालिका के कोमल चित्त को चंचल बना देता है।
मुक्तेश्वर की रम्यता इस आनंद की वृद्धि करती है, मानो प्रकृति स्वयं राग और विराग के ताने-बाने से इस स्थल को अनुपम बना रही हो। यह एक ऐसा स्थान है जो आत्मा पर एक अमिट छाप छोड़ता है। इसका आकर्षण व्यस्त बाज़ारों में नहीं, बल्कि इसकी सादगी और प्रामाणिकता में निहित है। यह ऐसा स्थान है जहां समय धीमा पड़ जाता है, आपको प्रकृति की लय में डूबने की अनुमति देता है। स्मृतियों के आकाश में वे सब दिवस किसी स्वर्णिम परिदृश्य-सा चमकते हैं, जब आकाश के विस्तृत वितान पर मेघों के जत्थे नृत्य में मगन हो जाते हैं और उनका मनोहारी स्वरूप मानो धरती को एक अलौकिक चादर में लपेटता जाता है। जैसे कोई बादल, कोई अनकही कथा लेकर पास आ जाता है। वहां कुछ क्षण ऐसे आते हैं, मानो सृष्टि ने अपने अनंत विस्तार को हमारी उंगलियों के स्पर्श में समेट दिया हो। हृदय के भीतर कहीं कोई मद्धम स्वर, कोई कोमल धुन बहती हो। वह धुन किसी ज्ञात रागिनी की नहीं, बल्कि आकाश की अज्ञात वीणा की होती है और हर तान नसों में घुलकर चेतना के अतल को गहराई से छू रही थी।
मैं, इस अलौकिक दृश्य में आकंठ डूबी, सुबह की चाय में मौसम को घोलकर पी रही थी। वह चाय मात्र चाय नहीं थी, उसमें हर बूंद आकाश की विशालता और धरती की कोमलता समाहित थी। लगता था, मानो समय ने अपनी गति को रोक दिया हो और क्षण-क्षण में अनादि-अनंत के अनगिनत युग पिघलकर भीतर समा रहे हों।
मुक्तेश्वर कैसे पहुंचें?
हवाई मार्ग से: यदि आप हवाई यात्रा करना चाहते हैं, तो पंतनगर हवाई अड्डा मुक्तेश्वर के सबसे निकट है, जो लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पंतनगर से मुक्तेश्वर की यात्रा में प्रकृति की अनुपम छटा का आनंद लेते हुए 3-4 घंटे का समय लगता है। आप यहां से टैक्सी या बस के माध्यम से आसानी से मुक्तेश्वर पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग से: मुक्तेश्वर का हर मोड़ और हर रास्ता आपको पर्वतीय सुंदरता के एक नए अनुभव से जोड़ता है। यह दिल्ली और नैनीताल जैसे प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग द्वारा उत्कृष्ट रूप से जुड़ा हुआ है। दिल्ली से मुक्तेश्वर तक की यात्रा राष्ट्रीय राजमार्ग 9 (NH9) के माध्यम से की जाती है, जिसकी दूरी लगभग 350 किलोमीटर है और इसे तय करने में 8-9 घंटे का समय लगता है। यदि आप सार्वजनिक परिवहन से यात्रा करना चाहते हैं, तो दिल्ली, नैनीताल और अन्य शहरों से मुक्तेश्वर के लिए नियमित बस सेवाएं भी उपलब्ध हैं।
रेल मार्ग से: रेल यात्रा के लिए काठगोदाम रेलवे स्टेशन सबसे निकट है, जो मुक्तेश्वर से लगभग 65 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां से मुक्तेश्वर तक का सफर एक सुखद अनुभव है, जिसमें हर मोड़ पर आपको पहाड़ों की अद्भुत शांति और हरियाली का सान्निध्य मिलता है। आप काठगोदाम से टैक्सी या बस द्वारा लगभग 2-3 घंटे में मुक्तेश्वर पहुंच सकते हैं।
मुक्तेश्वर की यात्रा के हर चरण में, मार्ग और प्रकृति आपको ऐसे अनुभव देते हैं, जो आपके हृदय में सदा के लिए बस जाते हैं।