संगीत सभा के बाद क्यों बजाई जाती हैं तालियां?

राघवेंद्र तेलंग, सुपरिचित कवि,लेखक,विज्ञानवेत्ता

शीर्षक पढ़ कर यदि आप तपाक से जवाब देते हैं कि संगीतकार या प्रस्‍तोता के अभिनंदन में तो एक बात जान लीजिए, यह जवाब जितनी आसानी से दे दिया गया है, प्रश्‍न उतना सरल नहीं है। असल में यह प्रश्‍न तो उस भाव से जुड़ा है जो मन में तरंगों का संसार कंपित कर देता है।  बात कुछ यूं है कि ज्ञान में छिपी विशिष्टता को अपने ध्यान में ले आना ही विज्ञान है। इस लेख का विषय दिलचस्प लग रहा हो तो आइए डुबकी मारते हैं तरंगों के संसार में। यह हम सब जानते ही आए हैं कि हम एक धड़कती हुई दुनिया में रहते हैं। यह धड़कनें अपने लिए भी हैं और अपनों के लिए भी हैं। तरंग यानी कंपन यानी जीवंतता। जीवंतता शब्द से ही पता चलता है कि हम जीवन संचालित करने वाले कंपनों की बात करने जा रहे हैं।

आगे हम बात करेंगे कि तरंगों की दुनिया कैसे हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। आज हम दो तरह की तरंगों की बात को समझेंगे क्योंकि बात संगीत के संदर्भ में होने जा रही है। ट्यूनिंग फोर्क आपने स्कूल के दिनों में देखा ही होगा। यानी धातु से बना वह एक संवेदनशील उपकरण जिस पर हल्का-सा प्रहार किया जाए तो वह अपने मूल कंपनों की आवृत्ति से आसपास को प्रभावित करता है। बस ऐसी ही प्रक्रिया सितार वादक साज़ पर कसे हुए धातु के तारों पर आघात यानी स्ट्रोक कर विभिन्न आवृत्ति के कंपनों को पैदा कर करता है। जिस साज पर यानी प्लेटफार्म पर ये कंपन पैदा किए जाते हैं उसके मटेरियल की डेंसिटी या घनत्व और उसकी दांड यानी केविटी पर यह बहुत ज़्यादा निर्भर करता है कि आवृत्ति की प्रकृति कैसी होगी और उत्पन्न आवृत्ति की रेसोनेंट यानी अनुनाद फ्रिक्वेंसी कैसी होगी। मौसम, हवा में ह्यूमिडिटी, करीबी दीवारों की ज्यामेट्री, श्रोताओं की बैठक, प्रहर-काल वगैरह अन्य ऐसे प्रभावकारी तथ्य भी हैं जो संगीत के आनंद की परिभाषा से गहरे जुड़े हैं। चलिए अब आगे बढ़ते हैं।

यहां हम संगीत और उसके वेव मेकेनिक्स से जुड़े कुछ बेसिक पहलुओं को छुएंगे और सीधे तकनीकी शब्दावली का प्रयोग करेंगे। अंग्रेजी भाषा में उल्लेखित तरंगों के नाम और उनकी प्रकृति के बारे में अधिक जानने के लिए गूगल की सहायता ले सकते हैं। चलिए, अब उन्हीं दो तरह की तरंगों की बात शुरू करते हैं। एक होती है ट्रैवलिंग वेव यानी गत्यात्मक प्रकृति की तरंग जो हमेशा यात्रा में बनी रहती है, विचरती रहती है। वातावरण में लगातार उपस्थित यह वेव्ह हमारे दाएं और बाएं कानों में लगातार गुंजायमान रहती है। सामान्य जीवन में सुनाई देती हमारी या दूसरों की आसपास गूंज रही आवाजें साइड टोन इफेक्ट के विशेषण के रूप में जानी जाती हैं। साइड टोन इफेक्ट में आवाजों की आवृत्तियां मिक्स्ड हो जाती हैं अत: वे हमारे लिए निरर्थक होती हैं क्योंकि उनको फिल्टर करने की कोई प्रणाली हमारे शरीर के पास नहीं होती। इसीलिए संगीतकार ऐसे सभागार में गायन-वादन करते हैं जहां साइलेंस हो और यह इफेक्ट शून्य यानी जीरो के निकट हो।

संगीतकार ऐसे माहौल में ट्रैवलिंग वेव पैदा करते हैं। वे अपने संगतकार के जरिए ऐसी दूसरी तरह की भी वेव लगातार पैदा करते रहते हैं जिससे उन्हें लगातार ट्रैवलिंग वेव जनरेट करने में मदद मिलती रहे। यह वेव स्टैंडिंग वेव कहलाती है जिसकी लंबाई निश्चित बनी रहती है। हां!संगीतकार की प्रस्तुति के मुताबिक स्टैंडिंग वेव की लंबाई कम या ज्‍यादा की जा सकती है, इसे मात्रा या ताल के स्वरूप के आधार का संदर्भ लेकर समझ लें। स्टैंडिंग वेव दो एक समान ट्रैवलिंग वेव के समायोजन या कपलिंग होने से बनती है। गतिमान भी मगर स्थिर।

दर्शनशास्त्री इस स्थिति को दृष्टा का साक्षी भाव में होना भी कहते हैं। यही शून्य अवस्था है,अ-मन की स्थिति। इस तरंग की शुरूआत और अंत के बिंदु जीरो-जीरो के रूप में समझे जाते हैं। इसी कारण इसका यह नाम स्टैंडिंग वेव है, यह वेव अपनी जगह बने रहकर अपने ही स्रोत में ऑसिलेट करती रहती है या कहें स्पंदित बनी रहती है। आपने देखा श्रोता दो तरह की तरंगों की दुनिया के जरिए आनंद रस में डूबता जाता है। लेकिन यह जानना दिलचस्प होगा कि वाद्य,वादक और संगतकार तीनों ही अपने-अपने को स्टैंडिंग वेव के फॉर्म में बने रहकर इस सृजन प्रक्रिया में शामिल बनाए रहते हैं। मंच या स्टेज की भी अपनी जो फ्रिक्वेंसी होती है वह स्टैन्डिंग वेव की ही एक आवृत्ति होती है। वादक स्वयं अपने को स्टैन्डिंग वेव की फ्रिक्वेंसी में बनाए रखकर, संगतकार को सुनते हुए, ट्रैवलिंग वेव्‍स जनरेट करता हुआ आगे बढ़ता है। लो फ्रिक्वेंसी-लो पिच से शुरू हुआ संगीत के सुरों का यह प्रदर्शन हाई फ्रिक्वेंसी-हाई पिच तक ले जाया जाता है और ट्रैवलिंग फ्रिक्वेंसी के उत्कर्ष या एम्पलीट्यूड या नोड और तरंग का घेरे का स्थान यानी एंटी नोड जब स्टैंडिग वेव से साम्यता बैठा लेते हैं तो पूरी संगीत सभा के समय दौरान ट्रैवलिंग वेव पर सवार सुधी श्रोता अपने आपको एकदम से अपने भीतर लगातार बनी रही स्टैंडिंग वेव से, उसी जैसी मगर ट्रैवलिंग वेव के जरिए आई, स्टैन्डिंग वेव से कपल्ड यानी जुड़ा हुआ पाता है यानी दुगुने आनंद रस से सराबोर। कपलिंग के यानी इस सम-मिलन से एक जादुई स्पर्श के अहसास की-सी निर्मिति यहां होती है,दो तरह की तरंगों के जरिए।

आइए, अब एक और पक्ष देखते हैं और वह है आवाज की ट्रांसवर्स-ट्रैवलिंग वेव की ज्यामिति को कैसे कुशलता पूर्वक आनंद के सृजन के लिए ढाला जाता है। आगे की ये बातें कुछ तकनीकी है मगर ,सरलतम शब्दों में। आपने देखा होगा कि सितार वादन के समय मंच पर तीन कलाकार अनिवार्य रूप से उपस्थित रहते हैं। स्वयं सितार वादक, ताल वाद्य के साथ संगतकार और स्थायी सुर उत्पन्न करते रहने के लिए तानपूरा वादक। यहां तानपूरे का स्थान स्वर पेटी भी ले सकती है। चलिए अब इस दूसरे पहलू की गहराई में और उतरते हैं और आगे बढ़ते हैं।

सभी आवाजों की तरंगें यूं तो ट्रैवलिंग वेव की प्रकृति की होती हैं जब तक उन्हें अपने उद्देश्य के मुताबिक न ढाला जाए। प्राकृतिक रूप से ये ट्रैवलिंग वेव्स भौगोलिक और वातावरण की परिस्थितियों में ढलकर अपना रूप और असर बदलती हैं। हां! तो हम मंच की बात पर वापस आते हैं। ट्रैवलिंग वेव की गति को मंच पर तीन तरह से ढाला जाता है। सर्कुलर मोशन,सिम्पल हार्मोनिक मोशन और ट्रांसवर्स वेव फार्म में। सितार वादक संगीत के राग में निहित विभिन्न स्वरों की आवृत्ति की तरंगें लगातार पैदा करता रहता है। अब चूंकि हर ऊंची-नीची तरंग की लंबाई की निश्चितता के लिए एक पैमाने की आवश्यकता होगी सो यह काम ताल वाद्य सर्कुलर मोशन में तरंगित आवृत्ति पैदा करने का काम करता है। सिम्पल हार्मोनिक मोशन की आवृत्ति जो स्थायी तीन स्वरों के नोड्स को वादक की स्मृति में लगातार बनाए रखती है उसकी प्रतिपूर्ति स्वर पेटी या तानपूरे के द्वारा होती है। अभी तक हमने समझा कि कैसे ट्रांसवर्स वेव को ट्रैवलिंग वेव में ढाल कर श्रोतागण को स्टैंडिंग वेव के मोड में लाया जाता है।

संगीत कला प्रदर्शन की कालावधि के दौरान तीन तरह की ज्यामिति में ढली आवाज की तरंगों का समेकित अहसास अंततः एकात्मकता की अलौकिक अनुभूति पर आ रूकता है। सिम्पल हार्मोनिक्स के बैकग्राउंड के स्थायित्व और सर्कुलर मोशन वेव की उपस्थिति में तरंगों की सौंदर्यात्मक चंचलता यानी ट्रांसवर्स वेव की बहुआयामी यानी मल्टी डायमेंशनल गतियों के दृश्य आवाज के जादू को रचते हैं। श्रोता एक ऐसे स्पंदित यानी वाइब्रेटिंग बॉडी में तब्दील हो जाता है जो अपने आसपास की बदलती फ्रिक्वेंसीज के मुताबिक अपने भौतिक आकार में बने रहकर अपने स्वरूप को बदलता महसूस करता जाता है। कभी डेंस्ड तो कभी विरल, यानी कभी घनीभूत तो कभी तरल,यानी कभी लो और कभी हाई फ्रिक्वेंसी। संगीत आपके भारीपन को हल्के में रूपांतरित करने का एकमात्र माध्यम है। यह आगे जाकर आपकी रूचियों की दशा और दिशा बदल देता है,नि:संदेह।

मंच पर घट रहा आवाज का यह कैलाइडोस्कोप इसलिए भी इतना मनोरंजक हुआ जाता है कि उसमें श्रोता की कल्पनाशीलता जुड़ी रहती है। सारा रहस्य इस बात में भी समाया है कि श्रोता अपने सुनने वाले मन को संपूर्ण रूप से शुरूआती स्तर पर खाली कर लेते हैं, इसमें कलाकार की आलाप लेने वाली प्रक्रिया एक जरिया बनती है। अंत में अगर आनंद स्वरूप श्रोता के अश्रु निकल पड़े तो समझिए वह अपने में डुबकी लगा चुका है,एकात्म घट चुका है। नाद और अंतर्नाद का मिलन यही तो है! सितार वादक और संगतकार समक्ष उपस्थित श्रोताओं का ह्रदय से आभार व्यक्त करते हैं और समस्त सुधी श्रोतागण खड़े होकर देर तक तालियों से मंचासीन कलाकारों का अभिनंदन करते हैं। संगीत के राहियों को यानी ट्रैवलर्स को स्टैंडिंग ओवेशन देते हैं। यह तरंग के भीतर की तरंग में विराजमान शून्यता के प्रति सम्मान की अभिव्यक्ति है।

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