कैंसर के इलाज पर सिद्धू की बातें कितनी सच्ची?

जे.पी.सिंह, वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के विशेषज्ञ

नींबू-पानी या नीम-हल्दी से कैंसर ठीक होने के वैज्ञानिक प्रमाण नहीं

देश के चिकित्सा क्षेत्रों में बहस छिड़ी हुई है कि क्या नींबू-पानी या नीम-हल्दी से कैंसर ठीक हो सकता है। हकीकत में चिकित्सा विज्ञान में आज तक कोई ऐसी रिसर्च नहीं है जिसमें कहा गया हो कि नींबू-पानी या नीम-हल्दी से कैंसर ठीक हो सकता है। अगर कैंसर के लक्षण दिखते हैं तो सबसे पहले कैंसर स्पेशलिस्ट के पास जाएं। कहते हैं कि नीम हकीम खतरे जान,तो यदि बिना वैज्ञानिक प्रमाण के अगर कोई नींबू-पानी या हल्दी-नीम से कैंसर को ठीक करने लगे तो यह उनके लिए बेहद हानिकारक साबित होगा।

यह पूरा विवाद पंजाब पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू द्वारा पिछले दिनों यह दावा करने के बाद उठ खड़ा हुआ है कि उनकी पत्नी, पूर्व विधायक नवजोत कौर सिद्धू कैंसर फ्री हो चुकी हैं। सिद्धू ने कहा कि उनकी पत्नी का पॉजिट्रॉन एमिशन टोमोग्राफी (पीईटी) स्कैन किया गया, जिससे पता चला कि अब वह कैंसर फ्री हैं। उन्होंने खुलासा किया कि उन्होंने स्टेज 4 कैंसर को लाइफस्टाइल और डाइट में बदलाव कर मात दे दी है। नवजोत सिंह सिद्धू ने दावा किया कि, सिर्फ डाइट में कुछ चीजों को शामिल करके उनकी पत्नी ने 40 दिन में कैंसर को मात दे दी। सिद्धू ने दावा किया है उनकी पत्नी का कैंसर नीम, हल्दी, नींबू, पानी, चुकंदर जैसी खाने की चीजों से ठीक हुई है। इन दावों को देश के बड़े-बड़े डॉक्टरों ने पहले ही खारिज कर दिया है। सिद्धू ने दावा किया कि उनकी पत्नी ब्रेस्ट कैंसर के चौथे स्टेज में थीं और अब कैंसर से पूरी तरह फ्री हो गई।

दरअसल, हमारे रुढ़िवादी समाज में तंत्र-मंत्र से असाध्य व्याधियों का सफल उपचार करने का विश्वास गहरे से बैठा हुआ है। इसलिए हमारे यहां किसी भी बीमारी में इलाज की शुरुआत दादी-नानी के नुस्खों से शुरू होता है और कई जगह झाड-फूंक का सहारा भी लिया जाता है। अधिकतर मामलों में मरीज झोलाछाप डॉक्टरों से होता हुआ काफी खराब स्थिति में विशेषज्ञ डॉक्टरों तक पहुंचता है। आज भी देश का एक बड़ा वर्ग ज्‍यादा पढ़ा-लिखा नहीं है और जो पढ़े-लिखे हैं वे भी भ्रांतियों के शिकार हैं, जिस कारण मरीज अक्सर डॉक्टर से सलाह लेने के बजाय हर्बल नुस्खों का सहारा लेते हैं। वे सोशल मीडिया पर जो देखते हैं, उस पर तुरंत विश्वास कर लेते हैं और खुद इलाज करने की कोशिश करते हैं। यह बहुत हानिकारक हो सकता है।

जहां तक रिसर्च की बात है तो कुछ लैब रिसर्च हुए हैं जिनमें नीम या हल्दी में एंटी-कैंसर गुण पाए गए हैं लेकिन अब तक इंसानों पर इसका कोई प्रमाण नहीं मिला है। किसी भी रिसर्च में लंबे समय की दरकार होती है। उसके लिए अभी हमें बहुत समय देना होगा। रिसर्च के कई चरण होते हैं। सबसे पहले लैब में रिसर्च की जाती है। मान लीजिए यह कहा जाता है कि हल्दी में कैंसररोधी गुण है तो लैब में हल्दी से मुख्य तत्व को निकालकर कैंसर कोशिकाओं पर इसका परीक्षण किया जाता है। इसे टेस्ट ट्यूब परीक्षण कहते हैं। अगर इसमें कामयाबी मिल गई तो फिर चूहे आदि जीवों पर इसका परीक्षण किया जाता है। इसमें डोज को पहचाना जाता है कि कितने डोज देने से कैंसर कोशिकाएं मर जाएंगी। इसके बाद यह भी देखा जाता है कि यह दवा सुरक्षित है या नहीं।

अगर चूहे पर भी असर बढ़िया होता है तो फिर इंसानों पर इसका लंबा प्रयोग किया जाता है। यह मुख्यतया तीन चरणों में संपन्न होता है। इंसानों पर पहले स्टेज में यह देखा जाता है कि इस दवा का कोई साइड इफेक्ट तो नहीं। यह दवा सुरक्षित है कि नहीं। अगर है तो कितना डोज दिया जाना चाहिए। अगर पहला स्टेज सफल हो जाता है तो दूसरे स्टेज में हम यह देखा जाता हैं कि हमारे पास पहले से इस बीमारी की जो दवा है वह इससे बेहतर है या नहीं। अगर है तो फाइनल स्टेज में सरकार या दवा नियामक संस्था अंतिम रूप से इस दवा को मंजूरी देती है।

दरअसल, वैकल्पिक चिकित्सा पद्धिति केवल लैब रिसर्च को पढ़कर दावा करने लगते हैं कि हल्दी या नीम से कैंसर को हराया जा सकता है। जबकि होना यह चाहिए कि उन्हें पूरी रिसर्च का इंतजार करना चाहिए और उसके बाद इसे अपनाना चाहिए। इसलिए यह कह देना कि हल्दी और नीम से कैंसर खत्म हो जाता है पूरी तरह से गलत है। न सिर्फ गलत है बल्कि हानिकारक भी है। ऐसे में अगर कैंसर के लक्षण दिखते हैं तो तुरंत उन्हें डॉक्टर के पास जाना चाहिए।

विशेषज्ञों का कहना है कि कैंसर को डिटेक्ट करने का अब तक का पूरी दुनिया में जो सबसे एडवांस टेक्नोलॉजी है, वह है पैट सीटी स्कैन। पैट सीटी स्कैन में 5 मिलीमीटर यानी आधे सेंटीमीटर से ज्यादा में कैंसर कोशिकाएं होती है, तभी यह पकड़ में आती है। अगर इससे कम है तो कैंसर कोशिकाओं की मौजूदगी को परखा नहीं जा सकता है। ऐसे में यदि किसी मरीज का पैट सीटी स्कैन नॉर्मल है तो यह नहीं कहा जा सकता है वह कैंसर से पूरी तरह क्योर हो गया है या मुक्त हो गया है। मेडिकल टर्म में यह कहा जाता है कि मरीज का रेमीशन हो गया है। यानी अभी तो कैंसर नहीं है लेकिन बाद में हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है।

आमतौर पर अगर 5 एमएम से कम एरिया में जब कैंसर कोशिकाएं जिंदा रहती है तो इस बात का रिस्क ज्यादा है कि उसे 5 साल के बाद दोबारा से कैंसर कोशिकाएं उभर जाए। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि हमारे शरीर के एक मिलीमीटर एरिया में एक करोड़ कोशिकाएं होती हैं। ऐसे में अगर 5 एमएम से कम एरिया में कैंसर की एक कोशिकाएं भी जिंदा है तो इसे 5 साल के बाद उभरने की आशंका है। ब्रेस्ट कैंसर के मामले में तो 10 साल के बाद भी कैंसर वापस आ जाती है। आज तक कोई तरीका नहीं है जिसमें यह कहा जाए कि जिसमें 5 साल से पहले यह कहा जाए कि अब यह कैंसर फ्री हो गया। इसलिए जब पैट सीटी स्कैन नॉर्मल होता है तो इसे क्योर नहीं कहा जाता है, यह रेमीशन होता है। अगर पांच साल बाद भी पैट सीटी स्कैन नॉर्मल आया तब बोलते हैं कि अब इसका कैंसर क्योर हो गया यानी अब कैंसर नहीं होगा।

इस बीच दिल्ली हाईकोर्ट ने नवजोत सिंह सिद्धू के इस दावे की व्यापक और वैज्ञानिक रूप से कठोर जांच की मांग वाली जनहित याचिका खारिज की है कि उनकी पत्नी के स्टेज 4 कैंसर का इलाज एक खास आहार योजना और आयुर्वेद के जरिए किया गया था। चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने टिप्पणी की है कि सिद्धू के बयान उनकी निजी राय है जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत आती है।

याचिका में नवजोत सिंह सिद्धू को उनकी पत्नी के कैंसर के निदान और आयुर्वेद आहार योजना के माध्यम से उनके ठीक होने के बारे में प्रासंगिक मेडिकल रिकॉर्ड, ट्रीटमेंट डिटेल और संबंधित दस्तावेज उपलब्ध कराने का निर्देश देने की मांग की गई। जनहित याचिका में केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय के साथ-साथ मेटा और एक्स को सिद्धू के दावों वाले पोस्ट और वीडियो तक पहुंच को अस्थाई रूप से हटाने या अक्षम करने का निर्देश देने की भी मांग की गई। राणा ने तर्क दिया था कि इस कदम से यह सुनिश्चित होगा कि वैज्ञानिक जांच के नतीजे आने तक जनता को गुमराह नहीं किया जाएगा या संभावित रूप से हानिकारक गलत सूचनाओं के संपर्क में नहीं लाया जाएगा। याचिका में गलत सूचना के प्रसार को रोकने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया पर असत्यापित मेडिकल या स्वास्थ्य संबंधी दावों के प्रसार को विनियमित करने के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने की भी मांग की गई। (केस टाइटल: दिव्या राणा बनाम भारत संघ और अन्य)

याचिका में कहा गया कि सिद्धू के दावे, कैंसर रोगियों को उम्मीद की किरण दिखाते हैं, लेकिन वर्तमान में असत्यापित हैं। अगर वैज्ञानिक रूप से मान्य नहीं हैं तो जनता को गुमराह करने का जोखिम है। याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि यह मामला कैंसर रोगियों और उनके परिवारों की एक बड़ी आबादी को प्रभावित करता है, जिन्हें असत्यापित दावों से गुमराह किया जा सकता है। यदि दावों को मान्य किया जाता है तो वे सस्ती और सुलभ कैंसर उपचार विकल्पों की ओर ले जा सकते हैं। इसके विपरीत यदि झूठे साबित होते हैं तो यह गलत सूचना के प्रसार को रोकेगा और जीवन की रक्षा करे।

देश के सबसे बड़े कैंसर अस्पताल में काम कर चुके या कर रहे एक, दो नहीं, पूरे 262 कैंसर स्पेशलिस्ट डॉक्टरों यानी आन्कालाजिस्ट ने सिद्धू के दावे पर सवाल उठाए दिए हैं। कह रहे हैं कि नींबू पानी, कच्ची हल्दी, सेब का सिरका, नीम की पत्तियों से कैंसर को हराने की थ्योरी गलत है। हल्दी, नीम के उपयोग से लाइलाज कैंसर को ठीक करने का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। मामला और दावा इतना गंभीर है कि टाटा मेमोरियल के 262 कैंसर स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स को जनहित में लिखित बयान जारी करके अपील करनी पड़ी कि लोग अप्रमाणित उपचारों का पालन न करें, अपने इलाज में देरी न करें। अगर किसी को अपने शरीर में कैंसर के कोई भी लक्षण महसूस होते हैं, तो उनको डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए और ये सलाह एक कैंसर विशेषज्ञ से लेनी चाहिए। छत्तीसगढ़ सिविल सोसाइटी ने नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी नवजोत कौर सिद्धू को 850 करोड़ का नोटिस भेज दिया है।इस नोटिस में नवजोत सिंह सिद्धू के कैंसर के इलाज में घरेलू नुस्खों के योगदान के दावों पर 40 दिनों के अंदर स्पष्टीकरण मांगा गया है।

गौरतलब है कि ‘भारत में स्वास्थ्य संबंधी गलत सूचना वाहक’ शीर्षक वाली एक रिपोर्ट यहां शांगरी-ला होटल में आयोजित भारत स्वास्थ्य शिखर सम्मेलन के दौरान जारी की गई। इस नई रिपोर्ट में कहा गया है कि कैंसर के बारे में ऑनलाइन गलत सूचना व्यापक है और इससे लोगों को गुमराह करने तथा नुकसान पहुंचाने की संभावना है, इसलिए विज्ञान और चिकित्सा पेशेवरों पर भरोसा करना महत्वपूर्ण है। इसने अक्टूबर 2023 और नवंबर 2024 के बीच पोस्ट की गई स्वास्थ्य संबंधी सोशल मीडिया सामग्री का विश्लेषण किया और गलत सूचना के लिए प्रवण चार प्रमुख क्षेत्रों की पहचान की: कैंसर, प्रजनन स्वास्थ्य, टीके और मधुमेह और मोटापे सहित जीवनशैली संबंधी बीमारियां। नई दिल्ली स्थित डिजिटल मीडिया और प्रौद्योगिकी कंपनी डेटालीड्स की डेटा इंटेलिजेंस इकाई स्पॉटलाइट के विशेषज्ञों ने वैश्विक स्वास्थ्य तथ्य-जांच पहल फर्स्ट चेक के डॉक्टरों के साथ मिलकर यह विश्लेषण किया।

रिपोर्ट में स्वास्थ्य संबंधी गलत सूचनाओं के प्रमुख रुझानों पर प्रकाश डाला गया है। विशेषज्ञों ने कहा कि यह प्रवृत्ति लोगों को आसानी से सुलभ और किफायती प्राकृतिक उपचारों की ओर धकेलती है जो अक्सर साक्ष्य-आधारित उपचारों की कीमत पर होता है। आस्था और स्थानीय परंपराएं भी स्वास्थ्य संबंधी व्यवहार को प्रभावित करती हैं। रिपोर्ट का उद्देश्य भारत में फैल रही खतरनाक स्वास्थ्य संबंधी गलत सूचनाओं तथा विभिन्न तरीकों से इनके जांच से बचने और फलने-फूलने के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।

साक्ष्य-आधारित चिकित्सा का उद्देश्य है कि चिकित्सा निर्णय वैज्ञानिक अनुसंधान और प्रमाणों पर आधारित हों, जिससे मरीजों को सर्वोत्तम उपचार मिल सके। भारतीय चिकित्सा ज्ञान प्रणालियां साक्ष्य-आधारित होनी चाहिए क्योंकि इससे चिकित्सा पद्धतियों की प्रभावशीलता और सुरक्षा सुनिश्चित होती है लेकिन आयुर्वेदिक उपचारों के प्रभावशीलता और सुरक्षा के लिए पर्याप्त वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं। आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों में व्यापक शोध और परीक्षण होते हैं, जो आयुर्वेद में नगण्य हैं1
दरअसल साक्ष्य-आधारित चिकित्सा से यह सुनिश्चित होता है कि उपचार विधियां वास्तव में प्रभावी और सुरक्षित हैं। इससे चिकित्सा पद्धतियों का मानकीकरण होता है, जिससे सभी मरीजों को समान और उच्च गुणवत्ता वाली चिकित्सा सेवा मिलती है।साक्ष्य-आधारित चिकित्सा से चिकित्सा पद्धतियों की विश्वसनीयता बढ़ती है, जिससे मरीजों और चिकित्सकों का विश्वास बढ़ता है। साक्ष्य-आधारित चिकित्सा से भारतीय चिकित्सा प्रणालियों को वैश्विक स्तर पर मान्यता मिल सकती है, जिससे आयुर्वेद और अन्य पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों का प्रसार हो सकता है1

हाल के अध्ययनों से भारत में कैंसर के मामलों में अप्रत्याशित वृद्धि देखने को मिली है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के अनुसार, देश में हर साल 1.3 मिलियन से अधिक नए कैंसर के मामले सामने आते हैं, और अगले दशक में यह संख्या तेजी से बढ़ने की संभावना है। 2040 तक, भारत में कैंसर की घटनाओं के दोगुना होने का अनुमान है, जो स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती है।

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