
- कविता वर्मा
लेखक साहित्यकार हैं।
नेटफ्लिक्स पर फिल्म: स्टिल एलिस
यदि कोई आपसे पूछे क्या अच्छा है, एक दिन अचानक सब कुछ भूल जाना या इससे बहुत पहले पता चल जाना कि अब आपका दिमाग भूलने लगा है। यह बीमारी धीरे-धीरे बढ़ती जाएगी और एक दिन आप सब भूल जाएंगे। सब कुछ रिश्ते नाते, अपना काम, जगह, लोग, चेहरे, यहां तक कि शब्द भी। इस सीमा तक कि अपनी बात कहने कुछ मांगने तक के लिए आपके पास शब्द नहीं होंगे।
पढ़ने पर यह शायद इतना डरावना न लगे लेकिन जब जिंदगी इस तरह ठहर जाए तब अल्जाइमर का मरीज ही नहीं उसके आसपास के लोग भी ठहर जाते हैं। फिर भी क्या कुछ बचता है? हां जरूर, और यह जानने के लिए आप देखिए नेटफ्लिक्स पर फिल्म ‘स्टिल एलिस’।
2007 में लीसा जिनोवा के उपन्यास ‘स्टिल एलिस’ पर आधारित इसी नाम की फिल्म की पटकथा लिखी है रिचर्ड ग्लेट्जर और वाश वेस्टमोरलैंड ने। यह लीसा का पहला उपन्यास है जो चालीस हफ्ते तक न्यूयार्क बेस्ट सेलर बना रहा। फिल्म में मुख्य कलाकार हैं जूलियाना मूर, क्रिस्टीन स्टीवर्ट, एलेक बाल्डवीन।
कोलंबिया यूनिवर्सिटी की एक प्रोफेसर, तीन बच्चों की माँ, एक बेहद प्यार भरे जीवनसाथी की संगिनी अचानक महसूस करती है कि वह कुछ चीजें, कुछ शब्द, कुछ जगह भूलने लगी है। वह इसके लिए एक न्यूरोलॉजिस्ट से मिलती है और पता चलता है कि एक तरह के जेनेटिक अर्ली आनसेट अल्जाइमर से पीड़ित है। यह जेनेटिक बीमारी है जिसमें मस्तिष्क के कुछ हिस्सों में ग्रे मैटर बनने लगता है। कुछ एक्सरसाइज के द्वारा इसे कुछ समय के लिए रोका जा सकता है पर फिर भी इससे बचा नहीं जा सकता।
एलिस को यह जानते डर लगता है लेकिन पति को बताने पर वह इसे बहुत हल्के में लेते हैं। डॉक्टर से मिलते हुए भी वह जिस उग्रता से इसके लक्षणों को नकारते हैं, वह वास्तव में इसे स्वीकार करने की उनकी हिचक ही है। बीमारी की शुरुआती अवस्था में वे एलिस का सहयोग करते हैं लेकिन फिर अपने कॅरियर के बारे में अहम फैसला लेते हैं। एक प्यार भरा रिश्ता जीवन के झंझावात में किस मोड़ मुड़ जाएगा कौन जानता है?
बच्चे इस स्थिति से डरते हैं लेकिन बहादुरी से इसका सामना करते हैं बल्कि खुद के टेस्ट करवाकर अपने भविष्य की संभावनाओं को तलाशते हैं। बढ़ती उम्र के बच्चे माता-पिता के साथ अंतर्द्वंद्व के चलते उनसे दूर होते हैं लेकिन बीमारी का पता चलते ही उनके संबंधों के नए समीकरण बनते हैं।

एलिस अपनी स्थिति समझ रही है वह बहादुरी से इसके लिए खुद को तैयार करती है बल्कि आने वाले समय की तैयारी भी करती है लेकिन क्या और कैसी तैयारी क्या वह किसी काम आती है? फिल्म का यह हिस्सा दर्शकों को न सिर्फ डरा देता है बल्कि ऐसी स्थिति आने पर क्या उन्हें भी ऐसा कुछ करना चाहिए यह सोचने पर मजबूर कर देता है।
मेरा दृष्टिकोण
यह फिल्म न सिर्फ अल्जाइमर की भयावहता को दिखाती है बल्कि दर्शकों को अलर्ट करती है कि रोजमर्रा के जीवन में चीजों नामों को भूलने को गंभीरता से लेते हुए समय पर इसकी जाँच करवाएं। आज अल्जाइमर बहुत आम बीमारी हो चुकी है। भूलने की जो अवस्था किसी समय साठ सत्तर पार आती थी वह जल्दी आने लगी है। शुरुआती दौर में यह सिर्फ मरीज के लिए कष्टदायक होती है लेकिन बाद में यह पूरे परिवार के लिए दर्द बन जाती है। एक ऐसे व्यक्ति के साथ रहना उसका ध्यान रखना जो आपको पहचानता तक नहीं है कितना मुश्किल है। हालाँकि फिल्म में रिश्तों के जिस उतार चढ़ाव को फिल्माया है वह दिल को छूता है। जीवन में जिससे सबसे ज्यादा उम्मीद होती है वह कभी-कभी बहुत बेगाना होता है और जिससे हमेशा मनमुटाव होता है वही आपका सच्चा साथी। या ये कहें कि मनमुटाव होता ही उससे है जो वास्तव में आपका अपना है। फिल्म बिना शोर शराबे के रिश्ते को महीन रेशों को गुंथते हुए आगे बढ़ती है। जूलियाना मूर ने अपने अभिनय से इसे जीवंत बनाया है। वह सीन जब एलिस भूल जाती है कि बाथरूम कहाँ है और अपने कपड़े गीले कर लेती है झकझोर देता है। किसी बीमारी की गंभीरता बताने के लिए शोर शराबा नाटकीयता या कानफोडू पार्श्व संगीत की आवश्यकता नहीं होती बल्कि धीमे से फिल्माए गये दृश्य सीधे दिल में उतरते हैं और दिमाग में घर बना लेते हैं। फिल्म का निर्देशन इसी बात को ध्यान में रखते हुए किया गया है कि यह दृश्य दर दृश्य मन में उतरती जाये। ये एक ऐसी फिल्म है जिसे आप कभी नहीं भूल सकते।
नेटफ्लिक्स पर 1.47 घंटे की यह फिल्म न सिर्फ अल्जाइमर की भयावहता उसके भविष्य को दिखाती है बल्कि परिवार पर उसके असर को भी बेहतर तरीके से प्रस्तुत करती है। अच्छी बात यह है कि फिल्म हिंदी में डब है। अगर एक खूबसूरत अर्थपूर्ण भावनात्मक फिल्म देखना चाहते हैं तो जरूर देखें।

