
- कविता वर्मा
लेखक साहित्यकार हैं।
नेटफ्लिक्स पर फिल्म: No One Saw Us Leave
किसी ने हमें जाते हुए नहीं देखा लेकिन दर्शक देखते हैं एक पिता लियो को उसके दो छोटे बच्चों आइजेक और तमारा को ले जाते हुए। बच्चों के दादा उनकी मदद करते हैं उनके पासपोर्ट देते हैं और ड्राइवर सहित एक कार उपलब्ध करवाते हैं। बच्चे पापा की बात मानते हैं, मम्मी के बारे में पूछते हैं और उन्हें बहलाया जाता है। एयरपोर्ट पर बेटा अपना सरनेम सुनकर चौंकता है तो उसका ध्यान दूसरी ओर कर दिया जाता है। दर्शक समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर हो क्या रहा है? धीरे-धीरे समझ आता है कि कुछ तो राज है।
बच्चों को एक दूसरे देश ले जाया जाता है वे थकान के साथ एक नये देश के माहौल मौसम और खाने से जूझते हैं। मम्मी को याद करते हैं लेकिन उनकी मम्मी वलेरिया नहीं आतीं। सीरीज सन् 64 में चलती है। तब मोबाइल नहीं थे। आधुनिक सुविधाएँ नहीं थीं लेकिन अमीर लोगों के संबंध उनकी मदद को तत्पर लोग थे। फिल्म मैक्सिको में रह रहे दो ताकतवर यहूदी परिवार के बेटे और बेटी के बिखरते संबंधों की कहानी है, जो एक सत्य कथा पर आधारित है। छह साल की छोटी सी बच्ची तमारा ट्रोटनर बड़े होकर अपने बचपन की इस याद को अपने नजरिये से इसी शीर्षक के उपन्यास में उतारती है। सीरीज के निर्देशक लुसिया पुएंजो ने उस काल खंड को बड़ी मेहनत और खूबसूरती से उतारा है।
फिल्म में मुख्य कलाकार हैं केसर टेसा ला, एमिलियानो जूरीटा, जुआन मेन्यूएल बरनाल हैं। यह वह समय था जब दुनिया में यहूदियों का कोई देश नहीं था वे इस या उस देश में अपनी छोटी सी सोसाइटी में रह रहे थे। अपनी बुद्धिमत्ता से उन्होंने पैसा और रुतबा बनाया था। यहूदी अपने मूल्यों और संस्कारों के प्रति बड़े सचेत थे और उनका उल्लंघन उसकी सजा इस सीरीज की नींव बनी। एक राजनेता की बेटी वलेरिया जिसकी शादी अठारह की उम्र में शहर के बड़े उद्योगपति के इकलौते बेटे से होती है। वह खुद नहीं जानती कि वह इस शादी से खुश है भी या नहीं। उसके दो बच्चे हैं जिन में उसकी जान बसती है। जब वह किसी और के प्यार में पड़ती है और जीवन में पहली बार दिल से प्यार महसूस करती है तो उसका यह अपराध अक्षम्य हो जाता है। बच्चों के संस्कारों को दूषित होने से बचाने के लिए उनका पिता लियो उन्हें लेकर दूसरे देश चला जाता है।वलेरिया के पिता भी कम रसूखदार नहीं हैं बेटी के लिये नातिन नाती को ढूंढने में अपनी पूरी ताकत लगा देते हैं। चूहे बिल्ली के इस खेल में बच्चे पिसते हैं।
कहानी शह मात के खेल के साथ उस समय की राजनीतिक सामाजिक परिस्थितियों को छूते हुए चलती है। इजराइल उस समय बनने की प्रक्रिया में है जहाँ यहूदी बच्चों की परवरिश उन्हें मजबूत बुद्धिमान बनाने और एक ताकतवर यहूदी देश के नागरिक बनाने के लिए होती है। इस यात्रा में बच्चों का पिता लियो जो अब तक अपने पिता के कहे अनुसार चलता है वह खुद को जानता है। वह अपने अब तक के जीवन को देखता है और कोर्ट में बच्चों की कस्टडी के लिए जाता है। अब वह वलेरिया को समझता है बच्चों के भविष्य को एक पिता की तरह देखता है।
यह पाँच एपिसोड की लिमिटेड सीरीज नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध है। हर एपिसोड 45-50 मिनट का है। सीरीज की कहानी वर्तमान और अतीत के घालमेल के साथ आगे बढ़ती है। दर्शकों के लिए कभी कभी समझना मुश्किल होता है कि कहानी इस समय कहाँ चल रही है। सीरीज हिंदी में डब है इसलिए समझना आसान है।
मेरा दृष्टिकोण
इस सीरीज को देखते हुए दर्शक एक तरफ जहाँ यहूदी समाज के पारिवारिक सामाजिक मूल्यों को समझने की कोशिश करते हैं वहीं कुछ प्रश्न भी उनके मन में उठते हैं। माना कि शादी के बाद अन्यत्र संबंध रखना किसी भी समाज में ठीक नहीं कहा जा सकता है लेकिन क्या इसकी सजा किसी स्त्री से उसके बच्चों को दूर करके दी जाना चाहिए? क्या स्त्री को दी गई सजा बच्चों को बिना अपराध दी गई सजा नहीं होती? कम उम्र में शादी में बाँध दिए गए लड़का-लड़की वास्तव में आपसी संबंधों में नहीं बल्कि एक बिजनेस डील में बांधे जाते हैं। सदियों से ये परंपरा चली आ रही है और पता नहीं कब तक चलती रहेगी।
एक विकल माँ के रूप में वलेरिया अपना प्रभाव छोड़ती हैं और उसकी सास पति के किए की समर्थक से एक माँ के दर्द का अह्सास करती महिला के रूप में दिल जीत लेती हैं। कहानी यहूदी परंपराओं सामाजिक बंधनों को दिखाती है। वर्जनाओं के प्रति लोगों की कट्टरता और मानवता के लिए उन्हें झकझोरने वाले दृश्य बैचेनी पैदा करते हैं। बिजनेस, साख, शह-मात के खेल के परे सच के साथ खड़े होने का साहस पहले स्त्री ही करती है और यह तथ्य बहुत हौले से सामने आता है।
लियो एक बहुत सामान्य इंसान है जो खुद के बारे में निर्णय लेने योग्य कभी बन ही नहीं पाया। पिता का विराट व्यक्तित्व उसे ढँके रहा जब वह उनसे दूर जाता है तब सही गलत को निष्पक्ष देख पाता है। एक छह साल की बच्ची पर इस घटना का कितना गहरा असर हुआ होगा कि पचपन साल बाद वह इसे उपन्यास के रूप में उकेरती है। भारतीय फिल्मों से इतर विदेशी फिल्में बिना चीख चिल्लाहट हौले से दर्द और भावनाओं को उकेरती हैं। डबिंग वाली हिन्दी शुद्ध होती है इसमें अन्य भाषाओं की मिलावट नहीं होती इसलिए देखना सुकून देता है।

