जैसे,पास तो होना चाहता है लेकिन जताना नहीं चाहता

बाघ झाड़ी में छिपा होगा। उसकी आँखें चमक रही होगीं। उसकी गंध इसे भी आई होगी। इसने चाहा भी होगा कि टेडी उस ओर न जाए। लेकिन टेडी तो दौड़ पड़ा होगा! और फिर जो हुआ इसने अपनी आँखों से देखा होगा।

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जो कुछ आया सम्मुख सब उपमान तुम्हारे नाम किए…

आधुनिक हिंदी कवियों ने राजनीतिक, सामाजिक मुद्दों के साथ यथार्थ को अपनी कविताओं में रेखांकित किया है। वहीं आशीष कुमार शर्मा ‘भारद’ की रचनाओं में हमें छायावाद की विशेषताओं की झलक मिलती है।

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नीलकांत जी एक व्यक्ति नहीं, एक सतत विचार थे

प्रख्यात जनवादी कथाकार-आलोचक नीलकांत का 14 जून 2025 की सुबह 90 साल की उम्र में निधन हो गया है। वे उस पीढ़ी के कथाकार और आलोचक थे जिनके लिए विचारधारा के विशेष मायने थे।

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किसी व्यक्ति को डराना आईपीसी की धारा 387 के तहत अपराध

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी व्यक्ति को भयभीत करने से आरोपी भारतीय दंड संहिता की धारा 387 के तहत अपराध का दोषी हो जाएगा; इसके लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 383 के तहत जबरन वसूली के सभी तत्वों को पूरा करना आवश्यक नहीं है।

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हास्य चूड़ामणि: हमारी उम्मीदों से भी कई कदम आगे विहान

कहने को यह हास्य नाटक था पर अपनी प्रस्तुति में ऐसी शिक्षाएँ और संकेत लिए था जिससे जनसमाज सचेत हो सके।

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ओवरथिंकिंग से आजादी: मन के पर्यावरण की फिक्र कितनी?

आज विश्व पर्यावरण दिवस है। संयुक्त राष्ट्र ने तीन पर्यावरणीय मुद्दों को समूचे विश्व के लिए चिंता का विषय बताया है। “ट्रिपल प्लेनेटरी क्राइसिस” यानी जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और जैव विविधता की हानि हम सबके फिक्र का केंद्र होना चाहिए। जहां बाहरी पर्यावरणीय अंसतुलन हमारे भीतर असर डाल रहा है वैसे ही हमारे मन का पर्यावरणीय असंतुलन हमारे पूरे जीवन को प्रभावित कर रहा है। विश्व पर्यावरण दिवस पर मन के पर्यावरण की सुध लेने को सचेत करता हुआ यह आलेख।

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साइकिल की अपनी एक तहजीब होती है

साइकिल पर चलता इंसान जीवन और अपनी खुद की गति के बीच एक अद्भुत ताल-मेल बैठा लेता है, और उनके बीच के संबंधों का संतुलन शायद ही कभी बिगड़ता होI साइकिल सवार पैदल लोगों की तुलना में तीन या चार गुना ज्यादा तेज चल लेता है।

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क्या अदृश्य शक्ति के प्रभाव में कोई अपने बच्चों की हत्या कर सकता है!

एक मां ने अपनी बेटियों की हत्या की और अदृश्य प्रभाव का दावा किया। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में सजा कम की, मानसिक अस्थिरता को ध्यान में रखते हुए, लेकिन यह विवादास्पद और जटिल है।

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हम एआई से डरते हैं क्योंकि वह मुनष्‍य न हो कर भी निर्णय ले सकता है…

जेन एआई अर्थात् जनरेटिव एआई को एक सभ्यतागत परिवर्तन के हेतु के रूप में देखना सचमुच सिर्फ एक कॉरपोरेट आकलन नहीं है।

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