शिव-पार्वती: तूफानों में स्थिर दाम्‍पत्य, भारतीय लोकमानस का आस्‍था केंद्र

यदि हमें प्रेम और पारिवारिक संबंधों को नए सिरे से समझना है, तो हमें शिव को देखना होगा- जहाँ प्रेम और आदर्श एक-दूसरे के विरोध में नहीं, बल्कि एक-दूसरे में विलीन हो जाते हैं।

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सरकारी प्रतिबंध से कितना रूक जाएगा भीख मांगना और देना?

कई राज्यों ने भीख के उन्मूलन के लिए अधिनियम पारित किए हैं, लेकिन वे पर्याप्त नहीं हैं। इस समस्या के समाधान के लिए सभी राज्यों में एकसमान अधिनियम बनाए जाने चाहिए और पुनर्वास योजनाओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

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ये अजीब बीमारी, पल भर में दे रही मौत, थोड़ी सतर्कता बचा सकती है जान

परिवारों में इस स्थिति के प्रबंधन के लिए आनुवंशिक लिंक को समझना आवश्यक है। प्रभावित व्यक्तियों की जल्दी पहचान करके, उचित निगरानी और जीवनशैली में बदलाव करके जटिलताओं के जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है।

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अपने में से गुजरकर मिलने वाली नई राह!

विचार हमारे अंदर इस कदर जमे हुए हैं कि इनसे अपने आपको खाली करने का विचार कभी हमें आता ही नहीं। इस तरह कुल मिलाकर हम विचारों के ही पूंजीपति होकर रह जाते हैं। जरा सोचिए विचार के अलावा भला हम और आप आखिर हैं ही क्या!

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इश्‍क रूहानी: क्‍यों मैंने ताजमहल नहीं देखा…

मैं अक्‍सर जिद किया करता था, मुझे आगरा जाना है। समझाइश मिलती, छुट्टियों में जाएंगे। कई छुट्टियां आईं और गईं। मैं कई जगह गया। मगर राह में आगरा आया ही नहीं।

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संवेदना, साथ और साहस: दो ट्रांस वुमन की प्रेम कथा

ट्रांसजेंडर की जिंदगी भी कुछ ऐसी ही होती है। जन्म से शुरू होने वाली चुनौतियां कभी खत्म नहीं होती। उनका जज्बा जिंदगी को जीता भी है, जहर भी पीता है लेकिन वे उस दुनिया में सब कुछ भूल जाते है जहां सिर्फ वे और उनका हम सफर होता है,

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भक्ति पर हम जीएन देवी के विचारों से मतभेद व्यक्त करते हैं …

हम समझना चाहते हैं कि यूरोप में जहां ‘रूमानियत’ और ‘आधुनिकता’ की धारणा में धर्म और धार्मिक रूढ़िवाद का कोई स्थान नहीं है, वहीं भारत में ‘रूमानियत’ और ‘आधुनिकता’ के कथित समानार्थी ‘भक्ति’ की धर्म और संप्रदाय तथा उनसे जुड़ी राजनीति में प्रमुख भूमिका क्यों और कैसे हैं ?

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मैं हौले-हौले चलती हुई जिंदगी की शैदाई हूँ!

मैं धीमी रफ्तार से चलती इस जिंदगी में ठहरकर हर शय को इत्मीनान से देखती हूँ। मेरी ये धीमी सी भीतरी दुनिया बहुत शांत है। दुनिया जिस पर बाहरी दुनिया की बेरुखी का कोई फर्क नहीं पड़ता। दुनिया जिसमें कहीं पहुँचने, कुछ होने की कोई होड़ नहीं है।

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ऐसे देखते हैं जैसे देखा ही नहीं…

आपके भीतर ही बना-बैठा एक स्पीड ब्रेकर है एवरेस्ट जितना ऊंचा, जो आपको कहीं भी न पहुंचने देने के लिए सदा से कटिबद्ध है, और वह है मन।

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संविधान जिसने भारत और पाकिस्तान में गहरा अंतर पैदा किया

भारत ने आज़ादी मिलने के बाद इसे संवैधानिक दायित्वों का आवश्यक अंग बनाया। सांवैधानिक आदर्शों और भारतीय मूल्यों का असर भारत और पाकिस्तान की नई पीढ़ी और लोगों में देखने को भी मिलता है।

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