– टॉक थ्रू टीम
कभी अपना गांव छोड़ कर बाहर नहीं जाऊंगा, जैसे मंसूबे पालने वाला युवा जब आगे पढ़ने शहर आया तो हर शुक्रवार घर भाग जाया करता था। रविवार की छुट्टी और शनिवार को मनचाहा अवकाश। दो दिन के लिए गया युवा एक हफ्ते बाद ही लौटता था। समय गुजरने के साथ यह होम सिकनेस बाधा बनने लगी तो तय किया कि इस शुक्रवार घर नहीं जाऊंगा। गया भी नहीं। फिर रविवार की सुबह साढ़े सात बजे कानों में आवाज पड़ी। पड़ोस के घर में टीवी चल रहा था। दूरदर्शन पर तब का प्रख्यात शो ‘रंगोली’ प्रसारित हो रहा था और पंकज उधास गा रहे थे- ‘चिट्ठी आई है…’।
उनींदे लड़के ने सुना, ‘कम खाते हैं, कम सोते हैं, बहुत ज़्यादा हम रोते हैं…’। लड़के को अपना घर याद आया। याद आए वे बूढ़े जिन्हें वह छोड़ आया है। वे यूं तो दो हैं लेकिन वह जानता है आंखों में आंसू लिए उसकी याद के साथ वे अकेले हैं।
पंकज उधास गा रहे थे, ‘आजा उमर बहुत है छोटी…’।
वह भागा। जब तब अंतिम लाइन गाते पंकज उधास, वह दरवाजे पर ताला लगा रहा था। कांधे पर बैग लटकाए वह घर की ओर निकल पड़ा था। ताला जानता था, वह जो जा रहा था, वह एक सप्ताह से कम समय में नहीं लौटेगा।
यह इस गाने के बोल और गायक पंकज उधास की आवाज का जादू था कि जब-जब यह गाना बजा, पैर घर की ओर भाग चले। और जो पैरों पर पाबंदियां लगीं तब मन को कोई रोक नहीं पाया। उधर मन घर-आंगन में पहुंचा, इधर आंखों से विवशता पानी बन बह निकली।
इस एक गाने और कई गजलों को गा कर अमर हुए पंकज उधास अब हमारे बीच में नहीं हैं। 72 वर्ष की उम्र में लंबी बीमारी के बाद उन्होंने अंतिम सांस ली। करीब चार दशक तक अपनी मनमोहक आवाज से संगीतप्रेमियों के दिलों पर राज करने वाले पंकज उधास का जन्म 17 मई 1951 को गुजरात के जेतपुर के एक जमींदार परिवार में हुआ था। तीन भाइयों में सबसे छोटे पंकज उधास के बड़े भाई मनहर उधास और निर्मल उधास भी गजल गायक थे। जब मनहर एक स्टेज परफॉर्मर हुआ करते थे, तब पंकज सिर्फ पांच साल के थे। बड़े भाई मनहर की लोकप्रियता के कारण पंकज उधास को गायिकी का शौक हुआ। वे फिल्मों में किस्मत आजमाने आ तो गए लेकिन धुरंधरों गायकों के चलते उनकी जगह बनना मुश्किल थी। निराश हो कर उन्होंने गजल गायन में हाथ आजमाया लेकिन वहां भी चमकीली सफलता नहीं मिली। हार कर वे कनाडा चले गए। वहां स्टेज परफॉर्मेंस में कामयाबी मिली तो फिर भारत आ गए। यह 80 का दशक था।
फिर आया 1986 जब ‘नाम’ फिल्म ने उन्हें खास पहचान दी। ‘चिट्ठी आई है’ गाने से पंकज उधास घर-घर में मशहूर हो गए थे।
उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि 1984 में उनका एक कॉन्सर्ट लंदन के रॉयल एल्बर्ट हॉल में हुआ था। उसी कार्यक्रम में उन्होंने पहली बार गाया था- ‘चांदी जैसा रंग है तेरा सोने जैसे बाल’। इसके बाद उनकी प्रसिद्धि शीर्ष पर थी। इसी दौरान मशहूर लेखक सलीम-जावेद की जोड़ी अलग हुई। जुबली कुमार नाम से मशहूर अभिनेता राजेंद्र कुमार अपने बेटे कुमार गौरव को फिर से ‘रीलॉंच’ करने की योजना बना रहे थे। जावेद से अलग हुए सलीम खान खुद को साबित करना चाहते थे। उन्हें ‘नाम’ के रूप में पहली फिल्म मिली।
पंकज उधास ने ही बताया था कि सलीम साहब ने ही आइडिया दिया था कि इस फिल्म में दिखाया गया लाइव प्रोग्राम किसी बहुत ही ‘पॉपुलर’ कलाकार का होना चाहिए। सलीम साहब ने ही जोर देकर पंकज उधास का चयन करवाया। आनंद बक्षी ने गाना लिखा।
ऐसा भी नहीं है कि पंकज उधास एक बार में ही इस गाने के लिए राजी हो गए थे। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि जब उन्हें गाने का प्रस्ताव मिला तो वे फिल्म में एक्टिंग के नाम से घबरा गए थे। उन्होंने गाने के लिए सहमति पर राजेंद्र कुमार को कोई जवाब ही नहीं दिया। इससे राजेंद्र कुमार खफा हो गए थे। नाराज राजेंद्र कुमार ने पंकज उधास के भाई को शिकायत करते हुए कहा था कि पंकज उधास में तमीज नहीं है। भाई की समझाइश पर जब पंकज उधास ने बात कि तो माजरा साफ हुआ कि फिल्म में उन्हें एक्टिंग नहीं करनी है बल्कि वे पंकज उधास के रूप में ही दिखाई देंगे।
फिल्म सुपरहिट हुई। गाना सुपरहिट हुआ। पंकज उधास की अलग पहचान ही बन गई।
साढ़े तीन दशक हो गए हैं और यह गाना आज भी वैसा ही मारक है। सीधे दिल को छूता है। उस कॉलेज के फर्स्ट इयर स्टूडेंट की तरह कई लोगों को घर जाने पर मजबूर कर देता है। आलम यह है कि कमजोर दिल के लोग आज भी इस गाने को पूरा नहीं सुन पाते हैं, वे कुछ ही पल में चैनल बदल कर भाग जाते हैं।
ऐसा ही कुछ खुद पंकज उधास के साथ भी हुआ था। उन्होंने बताया था कि एक बार वे अमेरिका के दौरे पर थे। लगातार कॉन्सर्ट चल रहे थे। 1 आखिरी कार्यक्रम वॉशिंगटन में था। कार्यक्रम शुरू हुआ। ‘चिट्ठी आई…’ है की फरमाइश हुई। पंकज उधास ने गाना शुरू किया। अभी गाना शुरू ही हुआ था कि सामने की ‘रो’ में बैठे हर इक शख्स को पंकज उधास ने आंसू पोंछते देखा। उन्होंने जब अपने दाएं-बाएं देखा तो तबलावादक और वॉयलिन संगतकार भी रो रहे थे। यह देख पंकज उधास की भी हालत और खराब होने लगी। उनसे भी रहा नहीं गया। उनकी भी आंखें भर आई। सभी को घर याद आ गया। पंकज उधास को गाना रोकना पड़ा। उन्होंने श्रोताओं से माफी मांगी। कुछ देर ठहर कर खुद को संभाला, पानी पीया। और फिर जाकर वो गाना खत्म किया।
पंकज उधास इस गाने के साथ ही ‘जिएं तो जिएं कैसे बिन आपके’, ‘निकलो ना बेनकाब जमाना खराब है’, ‘चांदी जैसा रंग है तेरा सोने जैसे बाल’, ‘मोहे आई ना जग से लाज’, ‘दीवारों से मिलकर रोना अच्छा लगता है’, ‘हुई महंगी बहुत ही शराब कि थोड़ी थोड़ी पिया करो’, ‘मैं कहां जाऊं होता नहीं फैसला, इक तरफ उसका घर एक तरफ मयकदा’ जैसी गजलों के कारण याद किए जाएंगे।
वे अब उस देश गए चले गए हैं जहां कोई संदेश नहीं जाता, जहां से कोई चिट्ठी नहीं आती लेकिन जब जब उनकी आवाज गूंजेंगी, चिट्ठी आई है…शब्दों को सुन कर मन घर की ओर ही भागेगा।