… और कई बार तो वे कहीं बेहतर इंसान होते हैं

अनुजीत इकबाल, लखनऊ

बीते दिनों अमेरिका के टेक्सास में डेंटन काउंटी शेरिफ कार्यालय ने वेश्यावृत्ति मामले में दो दिनों का स्टिंग ऑपरेशन चलाया। इस अभियान में वेश्‍यावृत्ति को बढ़ावा दे रहे 21 लोगों को गिरफ्तार किया गया। इन गिरफ्तार 21 लोगों में भारतीय मूल के सात लोग भी शामिल हैं। इस ऑपरेशन का मकसद सेक्सुअल सर्विसेज खरीदने का प्रयास करने वाले लोगों को लक्षित करके समुदाय में वेश्यावृत्ति पर प्रहार करना था। भारतीयों की गिरफ्तारी से बनी सुर्खियों ने भारत में वेश्‍यावृत्ति और इस मुद्दे को समझने का एक मौका दिया है।

विवाह की संस्था के उदय से पूर्व भी वेश्यावृत्ति मानव समाज का अभिन्न अंग रही है, किंतु वर्तमान में यह शोषण और हिंसा का पर्याय बन चुकी है। भारतीय समाज में वेश्यावृत्ति एक वर्जित विषय है, और वेश्याएँ समाज के हाशिए पर खड़ा एक अनचाहा वर्ग मानी जाती हैं। यह एक गंभीर सामाजिक समस्या है, जिसका समाधान सरल नहीं है। पुरुषों द्वारा महिलाओं के विरुद्ध की जाने वाली हिंसा के अन्य रूपों की भांति, वेश्यावृत्ति भी एक लिंग-विशिष्ट कृत्य है, जिसमें अधिकांश महिलाएँ ही शिकार होती हैं जबकि अपराधी प्रायः पुरुष ही होते हैं।

भारत में वेश्यावृत्ति कोई नवीन घटना नहीं है। यह वेदों के काल से लेकर ब्रिटिश शासन तक हर युग में विद्यमान रही है। ऋग्वेद में उल्लेखित वाक्य इंगित करते हैं कि वेश्यावृत्ति उस समय भी प्रचलित थी। मुस्लिम युग में भी वेश्यावृत्ति को सामाजिक स्वीकृति प्राप्त थी, तथा अकबर के शासनकाल में वेश्याओं के लिए ‘शैतानपुरा’ नामक एक पृथक क्षेत्र का निर्माण किया गया था। इस काल में वेश्यावृत्ति शाही संरक्षण में पनपी। जब यूरोपीय भारत में आए, तो देह व्यापार के केंद्र तटीय क्षेत्रों में स्थानांतरित हो गए, जिससे वहां वेश्याओं की संख्या में वृद्धि हुई और बड़े पैमाने पर वेश्यालय स्थापित हुए। ब्रिटिश सैनिकों के अस्थायी सैन्य आवासों में रेड-लाइट क्षेत्रों का निर्माण किया गया।

वेश्यावृत्ति महिलाओं के लिए एक अत्याचारी व्यवसाय है, जिसमें वे या तो सक्रिय रूप से या निष्क्रिय रूप से बाध्य की जाती हैं। इसका कारण है कि उन्हें उनके परिवारों द्वारा या तो बेच दिया जाता है अथवा बाल वेश्याओं के रूप में तस्करी की जाती है। इस प्रकार, निर्धन महिलाओं का शोषण किया जाता है और उन्हें सेक्स वर्क के लिए विवश किया जाता है। विवाह या रोजगार की संभावना के बहाने इन वंचित महिलाओं को या तो बलात् इस कार्य में धकेला जाता है या उन्हें छल से फुसलाया जाता है। आज के भारत में सेक्स उद्योग का वार्षिक मूल्य 40,000 करोड़ रुपये है, जिसमें लगभग 30 प्रतिशत यौनकर्मी नाबालिग होते हैं, और शोषणकर्ताओं द्वारा 11,000 करोड़ रुपये अर्जित किए जाते हैं।

भारत में संगठित वेश्यावृत्ति को अवैध माना जाता है, किंतु यह गुप्त रूप से संचालित होती है। सेक्स वर्कर को अकेले काम करना पड़ता है, क्योंकि अगर उनमें से दो भी साथ में काम करते हैं, तो उसे एक वेश्यालय माना जाएगा, जो भारत में अवैध है। यद्यपि भारत में वेश्यालय का संचालन अवैध है, सरकार ने उन्हें बंद करने के लिए अधिक प्रयास नहीं किए हैं।

संविधान, भारतीय दंड संहिता, 1860 और अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम, 1956 के अंतर्गत वेश्यावृत्ति के विषय में कई कानून हैं। संविधान समानता संरक्षण और स्वतंत्रता जैसे जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अतिरिक्त मानव तस्करी और जबरन श्रम के निषेध की रक्षा करता है। साथ ही, संविधान के भाग IV में उल्लेखित राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों के अनुसार, राज्य को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रत्येक व्यक्ति को लिंग भेद के बिना निर्वाह के पर्याप्त साधनों का समान अधिकार प्राप्त हो। भारतीय दंड संहिता की धारा 366 खंड (A) अवैध यौन संबंध के लिए एक नाबालिग लड़की की खरीद से संबंधित है, और खंड (बी) किसी भी प्रकार के यौन कार्य के लिए किसी अन्य देश की लड़की को लाने से संबंधित है। फतेह चंद बनाम हरियाणा राज्य में एक व्यक्ति पर धारा 366 के अंतर्गत वेश्यावृत्ति के लिए एक नाबालिग लड़की को खरीदने का आरोप लगाया गया था। भारतीय दंड संहिता की धारा 372 और 373 एक नाबालिग लड़की को बेचने के अपराधीकरण करती है।

किंतु कानून इस पर मौन है कि वेश्याओं को शारीरिक चोट पहुंचाने के लिए वेश्यालय मालिकों या ग्राहकों को दंडित किया जाना चाहिए या नहीं। इसमें कंडोम के उपयोग की अनिवार्यता और यौनकर्मियों की स्वास्थ्य देखभाल के प्रावधान शामिल नहीं हैं, जिसके परिणामस्वरूप अनेक घातक बीमारियाँ या अवांछित गर्भधारण उत्पन्न होते हैं।

हाल के दिनों में रेड-लाइट क्षेत्रों की संख्या में वृद्धि हुई है, किंतु वेश्यालय आधारित वेश्यावृत्ति में कमी आई है। दस प्रकार की वेश्याओं की पहचान की गई है, जैसे सड़क पर चलने वाली, धार्मिक वेश्याएँ, वेश्यालय में वेश्याएँ, गायन और नृत्य करने वाली बालाएँ, बार, मसाज पार्लर और कुछ कॉल गर्ल्स। वेश्यावृत्ति के कारण यह प्रमाण बढ़ते जा रहे हैं कि अधिकांश वेश्याएँ या तो स्वेच्छा से अथवा संगठित गिरोहों द्वारा सुखद भविष्य का झांसा देकर और पुलिस की मिलीभगत से इस कार्य में धकेली जाती हैं।
जो लोग वेश्यावृत्ति में बने रहना चाहते हैं, उन्होंने अपने जीवन में आय के अभाव, सामाजिक अस्वीकृति, पारिवारिक परंपराओं, गरीबी, और अस्वस्थता को इसका कारण बताया है। इस प्रकार, वे इसे ही अपने जीवन का अंतिम विकल्प मानते हैं। लेकिन यदि उन्हें विकल्प उपलब्ध कराए जाएं और समाज उन्हें स्वीकारने के लिए इच्छुक हो, तो वे अपने अतीत को त्यागकर नए जीवन की शुरुआत करने के लिए तैयार हो सकते हैं।

न्यूजीलैंड जैसे देशों ने इस कार्य को गैर-अपराधीकरण के रूप में अपनाया है, और भले ही तस्करी में वृद्धि की आशंका थी, फिर भी यौनकर्मियों की संख्या स्थिर रही। बल्कि गैर-अपराधीकरण के कारण यौनकर्मियों में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ी है, जिससे उनकी भलाई में वृद्धि हुई है। एम्सटरडम जैसे उन्नत शहरों में यह कानूनी है और इतना सामान्य है कि पर्यटक अपने परिवारों के साथ भी सहजता से सेक्स संग्रहालयों के सामने तस्वीरें खिंचवाते हैं। किंतु एक तथ्य सर्वस्वीकृत होना चाहिए कि सेक्स वर्कर भी समाज के समतुल्य नागरिक हैं, और कई बार तो वे कहीं बेहतर इंसान होते हैं।

वेश्यावृत्ति संसार के प्राचीनतम व्यवसायों में से एक है। यह विद्रूप सच है कि नारी को इस कार्य में अपमान का प्रतीक माना जाता है, परंतु जो युगों से उसे इस गहनतम पथ पर धकेलते रहे, उनके लिए कोई विशेष संबोधन नहीं है। इस वासनामय व्यापार का अस्तित्व मानव की उस जटिल प्रवृत्ति का परिचायक है, जिसे युगों से समझने का सामर्थ्य न तो विद्वानों में रहा है, और न ही आम जनमानस में।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *