सभी चित्र: बंसीलाल परमार, प्रख्यात फोटोग्राफर
मैं इस से कीमती शय कोई खो नहीं सकता
‘अदील’ मांं की जगह कोई हो नहीं सकता।
– अदील ज़ैदी
शहर के रस्ते हों चाहे गाँव की पगडंडियां
मां की उंगली थाम कर चलना बहुत अच्छा लगा
– मुनव्वर राना
किताबों से निकल कर तितलियां ग़ज़लें सुनाती हैं
टिफिन रखती है मेरी मां तो बस्ता मुस्कुराता है।
– सिराज फैसल खान