बंसीलाल परमार, प्रख्यात फोटोग्राफर
आपाधानी से भरे जीवन के बीच एक दिन में एक पेड़ से मिलने गया था। चित्र में जो पेड़ दिख रहा है उससे मेरा परिचय तकरीबन 25 साल पुराना है। सन् 2000 से पहले की बात है जब मैंने पहली बार इस पेड़ को देखा था। उस समय मेरे पास कैमरा भी नहीं रहता था। बड़ी खुशी हुई थी कि ऐसे समय में जब हर पुरानी चीज को तोड़, मिटा कर नया रूप दिया जा रहा है तब गृहस्वामी ने इस दरख्त को बचाया है।
दूसरी बार में तब गया जब रतलाम-इंदौर रोड़ फोरलेन बन रहा था। सड़क बनाने के लिए कई विशाल वृक्षों को राह से हटा देना हमारे लिए आम बात हो गई। मैं इस भय के साथ जा रहा था कि यह वृक्ष भी शायद हटा दिया गया हो। मन को समझाना ही पड़ता है कि इंसानों को ज्यादा जगह चाहिए तो पेड़, तालाब, कुंए, खेत, वन्य प्राणी कहां बचेंगे? उन्हें तो हटना ही होगा। मेरे अचरज की सीमा नहीं रही जब देखा कि पेड़ को अपनी पूरी शान के साथ खड़ा है। हर कीमत पर पेड़ बचा रहा या उसे बचाया रखा गया। मैंने उस समय इसका फोटो व विवरण ख्यात अखबार नईदुनिया में भेजा था।
फिर 2023 में 27 जनवरी को वैवाहिक कार्यक्रम में धार जिले नागदा में जाना हुआ। तब भी घर से यही सोचकर गया कि वृक्ष शायद नहीं मिलेगा। वैवाहिक कार्यक्रमों में उपस्थिति देकर मैं फिर इस नीम से मुलाकात करने चला गया। मुझे वृक्ष दूर से ही दिखाई दे गया। मानो मेरे आने के स्वागत में बाहें फैलाए खड़ा है। मेरी आंखें खुशी से भर आई। इस मकान के मालिकों के प्रति आभार से मन भर गया कि उन्होंने इस जीते जागते इतिहास को कायम रखा है।
जब मैं इसके फोटो क्लिक कर रहा था तो तब बातचीत में एक बुजुर्ग ने कहा कि साहब ये 150 साल से पुराना वृक्ष है। मानवीय रिश्तों साथ-साथ वृक्षों से भी अटूट रिश्ता बनाना चाहिए। समय-समय पर इनका आशीष लें ये देवस्थानों से बढ़कर है।