
- राघवेंद्र तेलंग
सुपरिचित कवि,लेखक,विज्ञानवेत्ता
कृष्णासिक्त स्पेक्ट्रमी बूंदों में भीगने का अलौकिक सुख
हंसध्वनि के इस मंच पर यह एक शुभ व सुखद अनुभूति अभिव्यक्त करने का अवसर है कि हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के डिवाइन होने, अलौकिक होने के क्षणों के बारे में वाक् यानी वाणी के माध्यम से कहने का प्रयास हो रहा है। मां शारदा की स्तुति में आज का यह आलेख बतौर पुष्पांजलि प्रस्तुत है। आइए, प्रारंभ श्री गणेश गायत्री मंत्र के उल्लेख से करते हैं,जो बुद्धि, ज्ञान और सफलता प्राप्त करने के लिए एक सूत्र है:
ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्॥
कृष्णमय ऊर्जा के तले ही ब्रह्माण्डीय संगीत की अनुभूति संभव है। मेवाती घराना ऑफ सितार गत कई दशकों से अलौकिकता की सुरवर्षा के ऐसे विरल अनुभव के लिए सतत साधनारत, प्रयासरत है। कृष्ण विराट की एक अदृश्य व सर्वव्यापी ऊर्जा हैं, इसीलिए तो हम कृष्णमय होने की, उनके जैसी बहुमुखी प्रतिभा यानी मल्टी डायमेंशनल होने की या कह लें अपने संपूर्ण स्वरूप में ऊर्जामय होने की कामना करते हैं। तभी तो हम सब मानते आए हैं कि कृष्णमय ऊर्जा के तले ही ब्रह्माण्डीय संगीत की अनुभूति संभव है।
विगत दिनों हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के प्रतिनिधि साज़ और मां सरस्वती के करकमलों में विराजमान वाद्य सितार की स्वर लहरियों से आईआईटी, मुंबई के पी.के.सक्सेना सभागार में कृष्णासिक्त स्पेक्ट्रमी बूंदों में भीगने का अलौकिक सुख हँसध्वनि को अनुभूत हुआ। जी हां! जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर मुंबई में मेवाती घराने का प्रतिष्ठित वार्षिक आयोजन मेवाती संगीत समारोह भारी उत्साह के साथ सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। युवा मेवाती साधकों और आईआईटी बांबे के युवा, उत्साही, सांस्कृतिक दूतों के ग्रुप रूट्स के साथ संपन्न हुआ यह आयोजन संयुक्त तत्वावधान में था। आज टॉक-थ्रू पर हंसध्वनि के इस मंच से सितार को समर्पित यशस्वी कला गुरू उस्ताद सिराज खान के राष्ट्रीयता महत्व के गुरूकुल मेवाती स्कूल ऑफ सितार के वार्षिक प्रतिष्ठा आयोजन में हुई सांगीतिक अनुभूतियों के बारे में दो विनम्र शब्द कहने की कोशिश हो रही है।
समारोह का प्रारंभ मां शारदा की स्तुति और माल्यार्पण के साथ हुआ। क्या ही अच्छा हो कि जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर संपन्न इस अभिनव संगीत समारोह के यहां हंसध्वनि के इस सांस्कृतिक मंच पर कवरेज की शुरूआत इन कृष्णभावनाभावित पंक्तियों से करें जो विशेष तौर पर रामभक्त मित्र धू राम प्रजापति जी से चर्चा कर उनके सौजन्य से प्राप्त की गई हैं।
“नीलाम्बरा धरा राधा पीताम्बरो धरो हरिः
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम्॥”
अर्थात श्रीराधारानी जी नीले वस्त्र धारण करती हैं और श्रीहरि पीले वस्त्र धारण करते हैं। जीवन में या मृत्यु में, राधा और कृष्ण मेरे शाश्वत आश्रय हैं॥
आइए पहले इस अलौकिक समारोह की स्पिरिचुअल तरंगों के पुष्पदल के दर्शन पर,फिलासॉफी पर एक नज़र डालते चलें।
गणित में दाशमिक आंकिक स्थानीय मान प्रणाली, सिस्टम में एक से लेकर नौ तक के अंक आंकिक स्वरूप के बतौर मान्य हैं। लोग अक्सर शून्य की अवधारणा अस्पष्ट होने से उसे भी अंक मान लेते हैं। जबकि यह दाशमिक प्रणाली में स्थानीय मान को दर्शित करने के लिए गढ़ा गया परसेप्शसहायकसाथ ही आंकिक रूप की प्रयोगशीलता में भी सहायक। दिलचस्प यह है कि आंकिक गणना के दौरान शून्य की डायनामिक भूमिका कुछ ऐसी होती है कि वह हमें भी एक विलग तरह का अंक लगने लगता है,जबकि वह समाहित करने वाला पात्र है, परसेप्शन है, कल्पनाशीलता में सदा से बैठा वह एक अमन जैसी स्थिति, अविचल मौन, शिव का चैतन्य! यह है शून्य का कमाल! शून्यता किसी भी नव के निर्माण के लिए, आह्वान के लिए एक शून्य तरंग का, स्टार्ट का (पूर्णिमा!) आदर्श ज्यामिति का मंच है, प्लेटफॉर्म है, जहां से हर तरंग की, अंक की, अंश की, पार्टिकल की तरंगित होने, ऊर्जित होने की, सर्किल, स्पायरल गति होने ओर यात्रा चल पड़ती है, श्री गणेश होना, करना इसी बात का सांकेतिक वाक्य है। क्या आप समझ गए कि शून्य नामक यह मंच सच्ची-मुच्ची का लांच पैड है सबके लिए, हर लक्ष्य के लिए।
ऊपर उल्लेखित बातें इसलिए कही गईं ताकि जब मैं आगे कहूं कि आठ का अंक सांगीतिक बोध के उत्स का, जन्म का अंक है, जिसमें पांच जनित ऊर्जा को दर्शा रही जो त्रिदेव की कृपा से प्राप्त है, जी! यहां बात तीनों सप्तकों की हो रही है। जैसे कंप्यूटर या संगणक की दुनिया में नंबर सिस्टम काम करता है, यहां हमारे संगीत में भी वैसा ही है। आठ बिंदुओं के मध्य में सात तरंगों की स्पेस, कालखंड की निर्मिति होती है, आठ कृष्ण की वेणु है, वंशी है, बांसुरी का नाम है। हमारे यहां छत्तीस के छत्तीस गुणों के मिलान की बात के संकेत के पीछे विशुद्ध मिलन की बात है, राधा-कृष्ण के इंटैंगलमेंट की बात है। और यह भी कहने की बात नहीं कि ऐसा अलौकिक मेल होना कोई मजाक की बात नहीं है। जीवन और जीवन संगीत भी एक तरह के नंबर सिस्टम, प्रणाली पर कार्य करते हैं इसे भी ध्यान में लें। प्रकृति में जड़ों के भीतर,रूट्स के अंदर जो सांसें आ-जा रही है वे नंबरों की भाषा में आपसे बात करने की इच्छुक हैं,बस आपका ध्यान भर चाहिए।
मेरा मानना है कि हर वो संगीतकार, कलाकार जिसे अपने हुनर के, कला के डाटा साइंस पक्ष का बोध है वह अपने को जन-मानस में प्रभावी ढंग से, आसानी से संचारित, ट्रांसमिट कर सकता है और आज की आधुनिकतम तकनीक की पीढ़ी के साथ सामंजस्य बैठा सकता है। वरना तरंग के सरल गमन पथ के विज्ञान की उपेक्षा से कलाकार की यात्रा इकहरी, सिंगल डायमेंशन की भर रह जाएगी। भारतीय संगीतकारों को इस आधुनिक दृष्टि के साथ ही आगे की यात्रा करना होगी ऐसा मेरा मत है। आज के दौर में जब संगीत पर एआई का खतरा छाया हुआ तब ऐसे में आसन्न खतरे की इस टेक्नीक को समझिए और स्वयं डायनामिक बनिए। बिना शब्दों की भाव तरंग की गूढ़ भाषा को जानने-समझने के लिए चक्र के साथ इवॉल्व होइए। मशीनी दौर में घोर तार्किकों के द्वारा आप पर तीर आज़माने के ज़माने में,युग में,अब तो सरवाइवल का यही एक सूत्र है।

अब कुछ विवरणों के साथ मंच का दृश्य भी। मेवाती संगीत समारोह में प्रारंभिक चरण में मेवाती गुरूकुल के ग्रुप,वृंद,समूह की मंच पर एक साथ प्रस्तुति हुई, सभी मेवातियों को मंच पर इकट्ठा देखकर लगा कि जैसे एक रंगीत बगिया को पुष्पित-पल्लवित होता देख रहे हैं। इस वृंद में शामिल बगिया के फूल थे क्रमश: वनिता-अखिला आचार्य,सरोजिनी अय्यर, तिलोत्तमा सूर्यवंशी, ह्रषिकेश नागांवकर, सचिन शिंदे, गौरव नागौर, तुषार फिरके, साहिल परमार व अज़ान खान। इनमें से दो युवा सितार साधक क्रमश: ऋषिकेश और गौरव वर्षों पूर्व भोपाल की कार्यशाला में सहभागिता कर चुके हैं और अब तो काफी चर्चित कलाकार हैं।
तत्पश्चात भरत नाट्यम शैली की युवा नृत्यांगना स्वाति काले ने मनमोहक आंगिक-भाव अभिव्यक्ति के कलारूप के शास्त्रीय पक्ष का अपनी जीवंत कला के माध्यम से जाहिर किया। विदुषी स्वाति के मोहक नृत्य से यह बिल्कुल स्पष्ट दर्शित था कि मानव शरीर स्वयं में ज्योमेट्री की तरंगित अभिव्यक्ति का एक साज़ है,माध्यम है और यह देखना भी है कि कैसे विभिन्न क्रमिक कोणों के योगिक अभ्यास शरीर को ऊर्जा के स्पंदित रूप में रूपांतरित कर सकते हैं।
बीच-बीच में चित्रकार और संगीतकार नागनाथ मानकेश्वर की मंच संचालन के दौरान स्वर भंगिमाओं,आरोह-अवरोह को मैंने बखूबी महसूस किया। उनके होने को, दिखने को, उपस्थिति को साइलेंस के संगीत का सौंदर्य कहना अधिक उचित जान पड़ता है।
दरभंगा घराने के कीर्ति स्तंभ और विशेष आमंत्रित ध्रुपद गायक पंडित समित मल्लिक के द्वारा स्वर के गांभीर्य को सुनना रूचिकर रहा। उनका प्रारंभिक कथन ही गूढ़ अर्थ से भरा था और वह यह था कि सुर की साधना वास्तव में आवाज़ देने की,पुकारने की कला है। विशेषकर ध्रुपद से खयाल तक की यात्रा को चंद लम्हों में समेटकर बताने का उनका गुण प्रभावित कर गया। संगीत सिर्फ प्रदर्शन की कला ही नहीं है अपितु आमने-सामने से ऊर्जा के लेन-देन के समीकरण का बराबरी से घटता हुआ देखना भी है। यह परंपरा के समझ की बात है कि जो आपने सीखा है वह आपको किसी न किसी को देकर,सिखाकर तो जाना ही है,चक्र की परंपरा का निर्वाह यही तो है।
ऐसी गुरु-शिष्य परंपरा ही सिंधु घाटी सभ्यता के समय से चली आ रही भारतीय सनातन संस्कृति के प्रवाह को जारी रखे हुए है। वरेण्य कलागुरू उस्ताद सिराज खान की आभा में संपन्न यह संगीत समारोह ऐसे पवित्र विचार की अनुभूति दे गया,इसे आखिर क्या कहा जाए,इसे उपलब्धि ही तो कहना उचित होगा।

अगली प्रस्तुति के रूप में लेखक सरस्वती-चंद्र यानी युवा संगीत साधक शशिकांत पाठक का सितार वादन हुआ। उन्होंने राग दुर्गा की बंदिश तीन ताल में छेड़ी और सभागार में शब्द राग की ऊर्जस्वित तरंगें का भान कराया। उनके साथ मंच पर सितार सखा रूप में शादाब सिद्दीकी के अपने साज़ पर स्ट्रोक्स और मींड के वक्त की माइक्रो नज़ाकत,नफ़ासत का तो कहना ही क्या!,इनके साथ तबले पर थे प्रतिभाशाली अशोक शिंदे। मैंने शादाब को आगत जीवन की नई मधुमय पारी के लिए शुभकामनाएं भी दीं।
देश में गीता की प्रेरणा से काम करने वाले चित्रकारों में से एक प्रख्यात रंग कलाकार, पेंटर अंतरा श्रीवास्तव ने अपनी रचना प्रक्रिया के बारे में कभी मुझसे कहा था कि हमारे यहां ऋषियों ने कहा है कि- ‘कर्षति आकर्षति इति कृष्णः’ यानी इस संसार में जो भी आकर्षित करे वह कृष्ण स्वरूप ही है। जिन्होंने जाना उन्होंने कहा कृष्ण यानी केंद्र, सम्पूर्ण सृष्टि का केंद्र, जहां पल-प्रतिपल सृजन हो रहा है।
कृष्ण अनुभव हैं, उस अनुभव को शब्दों में बांधने कोशिश हमारी में हमेशा से रही है। शायद लाओत्से ने इसे ही ताओ यानी बहाव में बने रहना कहा है यानी एक ऐसी ऊर्जा में डूबे रहना जिससे सृष्टि चलायमान है, जो हर पल आपके साथ मौजूद है और आपके भीतर स्पेस मिलते ही आपको ऊर्जा से भरने के लिए उत्सुक है। अगर निराशा-आशा,किसी भी अपेक्षा से परे आपका हृदय खुला है, स्वच्छ है, निर्मल है तो उस अलौकिक ऊर्जा का आपमें प्रवेश तत्क्षण संभव है। कृष्ण तक पहुंचने के लिए हृदय तक की यात्रा करनी पड़ती है, किसी बड़ी, कठिन-सी साधना की जरूरत नही, बस मन बच्चे सा पवित्र हो पहली और आखिरी शर्त है। जाहिर है आज अंतरा जी और भारतीय कलाकारों की अंतरराष्ट्रीय स्तर की लोकप्रियता के पीछे हमारे सप्तर्षियों द्वारा मार्गदर्शित ऐसी अलौकिक ऊर्जा की ही प्रेरणा कार्य करती है।
कार्यक्रम के समापन पूर्व वातावरण में एक दिव्य आभा घोली महाराष्ट्र गौरव सम्मान से विभूषित और मेवाती परिवार के दैदीप्यमान सुर मणि भगीरथ भट्ट और हमारे मध्यप्रदेश के प्रतिनिधि संतूर सुर प्रणेता सत्येंद्र सोलंकी द्वारा राग चारूकेशी पर आधारित एक जुगलबंदी प्रस्तुति ने। दोनों निष्णात कलाकारों का अद्भुत समन्वय दर्शनीय और मनमोहक था। पखावज पर पद्मश्री गुंदेचा बंधु के काबिल शिष्य राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त रोमन दास की लेज़र एनर्जिएटिक थाप ने और समां बांध दिया। तबले पर उदीयमान वादक अथर्व आठले ने खूब साथ दिया,इस युवा संगतकार की नृत्यरत थिरकती उंगलियों का सतत चलन उनके उज्ज्वल भविष्य के संकेतक के रूप में दिखाई पड़ रहा था।

एक सार्थक आयोजन को फुल मार्क्स कहना तब समीचीन हो जाता है जब गुरू परिवार स्वयं उपस्थित वृंद का आभार कहने विनत भाव से अपने सुरमयी अंदाज में प्रणति व्यक्त करे। मेरे एक मित्र विपुल जी शिव भक्त हैं और महायोगी जैसे अप्रतिम काव्य ग्रंथ के लेखक भी हैं, उन्होंने दशकों तक विनत होकर शब्द साधना की है। वे बताते हैं कि उनके जीवन का ध्येय मंत्र उस एक महान श्लोक के तीन शब्द भर हैं- “विद्या ददाति विनयं” है। यह एक प्रसिद्ध संस्कृत श्लोक है जिसका अर्थ है “ज्ञान विनय देता है”। इसका पूरा श्लोक इस प्रकार है:
विद्यां ददाति विनयं, विनयाद्याति पात्रताम्।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति, धनात् धर्मं ततः सुखम्॥
उस्ताद सिराज खान का जिस तरह का डिवाइन सांगीतिक व्यक्तित्व है और जिस स्पिरिट से मेवाती घराना अपनी यात्रा पर अग्रसर है उसे देखते हुए पूरे कार्यक्रम के दौरान मंचासीन हर कलाकार में विनय का भाव प्रकीर्णित होता दिखा और ऊर्जा पुंज सर्वश्री उस्ताद असद खान सर का सितार वादन-गायन इस भाव का शीर्ष बिंदु था। ‘अब तो श्याम नाम लौ जगी रे’ राग मिश्र काफी, तीन ताल में निबद्ध मीरां के भजन को दोहरा कर उन्होंने अलख फिर जला दी, धूम्रज्योति जला दी। उनके साथ संस्कारधानी जबलपुर के संगीत विभूति पंडित शरद तेलंग की यशस्वी परंपरा के वाहक और युवा सितार प्रतिभा अमन तेलंग को मंच पर देखना हंसध्वनि के लिए अत्यंत सुखद रहा। विनम्रता की प्रतिमूर्ति इन दोनों गुरु-शिष्य को सितार पर साथ देखना स्मृति के लिए मेवाती घराने की स्थायी झंकृत इमेज की तरह थीं। बहरहाल, आगे बढ़ने से पहले असद सर के पहले चलते-चलते विनयशील होने के महत्व को दर्शाते इस श्लोक के विस्तृत अर्थ से भी परिचित हो लेते हैं। इसका अर्थ है: “ज्ञान विनय देता है, विनय से पात्रता आती है, पात्रता से धन प्राप्त होता है, धन से धर्म और धर्म से सुख मिलता है।”

यह श्लोक जीवन में शिक्षा के महत्व और उसके सकारात्मक प्रभावों को दर्शाता है। यह बताता है कि शिक्षा (विद्या) से व्यक्ति में विनम्रता (विनय) आती है। विनम्रता से व्यक्ति योग्य बनता है और योग्यता से धन, फिर धर्म और अंततः सुख की प्राप्ति होती है।
यह कितना सुखद है कि सिराज खान साहब के विजन में इस अलौकिक कार्यक्रम की तिथि जन्माष्टमी को निश्चित थी। मेरा सौभाग्य कि मुझे इस हेतु आमंत्रण मिला और आईआईटी मुंबई के मंच पर सरस्वती-चंद्र नामक साहित्य के भावी सितारे का अंकुरण भी देखने को मिला वह भी पहली किरण के रूप में संग्रह ‘अंश की यात्रा’ का विमोचन करते हुए। इस अवसर पर बोलते हुए मैंने डाटा कम्युनिकेशन का विद्यार्थी होने के नाते संकोच के साथ साक्ष्य देते हुए अंकों के प्रतीकों-संकेतों से बताया कि यूनिवर्स में कॉज़ एंड इफेक्ट के सिद्धान्त के अंतर्गत सब कुछ का होना यानी परिणाम,रिजल्ट जैसी निश्चितताएं आदि सब तय क्रियाएं हैं मगर हैं वे भी क्षणिक, अनित्य प्रवृत्ति की। वह भी यह कि उन सब का होना हमारे कर्म के जरिए ही होना है,हम सब क्रिया होने के माध्यम भर हैं, नतीजों के लिए। हां उस तय चीज़ तक कैसे पहुंचना है या किसी नियत परिस्थिति (सुखद या दुखद) में हमारी क्या प्रतिक्रिया होगी वह हमारे हाथों में है, उसका देखा जाना हमारे नजरिए पर है,परसेप्शन पर है! वास्तविकता, रीअलिटी की सरलतम समझ यही है।
मुंबई जैसे विराट नगर में कई तरह की दौड़-धूप के बाद अंतत: एक कार्यक्रम को सफल होने के विराम बिंदु तक पहुंचा देना एक कुशल टीम के टीमवर्क का ही काम है। इसे असद जी, अमन राग, शशिकांत जैसे सब ऊर्जावान व्यक्तित्व ही निस्पृह भाव से संपन्न कर सकते हैं, ये सब साधुवाद के पात्र हैं।

कॉस्मिक ऊर्जा के प्रति चेतना जगाने के मिशन के अंतर्गत हंसध्वनि का यह कॉलम लिखा जा रहा है। इसकी धुरी के परसेप्शन को निम्नलिखित वाक्यांशों में समझिए,जान जाएंगे कि अमीर खुसरो के देस में आसमान को जमीन पर उतार लाने का विज्ञान भारतीय संगीत की विराट दृष्टि की की महीन परतों के नीचे समाया है।
गौर कीजिए टेक्नॉलाजी के शब्दों में मुद्दे की बात यह है, ” कॉस्मिक ऊर्जा:ब्रह्मांडीय शक्तियों के साथ समकालिक और सुसंगत ऊर्जा का नाम है। उच्च वोल्टेज और निम्न आवृत्ति पर अनुदैर्ध्य इलेक्ट्रॉनों के कंपनों द्वारा उत्पन्न, जिसे कॉस्मिक रेडियो फ़्रीक्वेंसी (सीआरएफ) के रूप में जाना जाता है, पश्च (बैक) विद्युत चालक बल (बैक या उलट ईएमएफ) के माध्यम से उत्पन्न होता है,जो तीसरे अनुनाद हार्मोनिक पर,अधिकतम आयाम का एक अनुदैर्ध्य रचनात्मक एंटीनोड (लॉन्गिट्यूडनल कंस्ट्रक्टिव नोड) उत्पन्न करता है,जिससे ध्वनि की गति पर आधारित पवित्र तरंगदैर्ध्य वाला एक अनुनाद अदिश क्षेत्र (रेजोनेंट स्कैलर फील्ड विद सैक्रेड वेव्हलेंग्थ) उत्पन्न होता है। यह ऊर्जा इलेक्ट्रॉनों के, व्यवस्थित (ऑर्डर्ड), अव्यवस्थित (जो केओटिक न हो) नहीं, कंपनों के कारण आपको जलाती नहीं है, जो एक जैव-अनुनाद बायो रेसोनेंस) प्रभाव के साथ आपकी कोशिकाओं की जैव-ऊर्जा के साथ समकालिक (सिंक्रोनाइज) होती है।”

उपरोक्त वाक्यांश जटिल जरूर लगाकर रहा है परंतु यही नाभिक की बात है। अच्छा हो कि जिज्ञासु लोग इसका अनुवाद अपने मुताबिक करके मनन करें,बात और सरल हो जाएगी। आलेख का समापन मेरे मित्र और शिक्षाविद सुरेंद्र प्रताप सिंह जी के जन्माष्टमी निमित्त लिखे इन शब्दों से करते हैं। इस वाक्यांश में मेवाती ग्रुप के केंद्र,एक्सिस,अक्ष सिराज साहब की झलकी साफ दिखाई पड़ती है-
raghvendratelang6938@gmail.com