हमारे अनिल यादव जी …
मेरे जीवन अब बारी थी चलन के मुताबिक ‘गंगा नहाने’ की। लेकिन कौन सी गंगा में,कैसे नहाना है यह मुझे ही तय करना था। मैं एक खास काम करना चाहता था और यही मेरा गंगा स्नान था।
मेरे जीवन अब बारी थी चलन के मुताबिक ‘गंगा नहाने’ की। लेकिन कौन सी गंगा में,कैसे नहाना है यह मुझे ही तय करना था। मैं एक खास काम करना चाहता था और यही मेरा गंगा स्नान था।
प्रख्यात पत्रकार और वन्य जीवन विशेषज्ञ स्व.अनिल यादव की फिल्म ‘सफेद बाघ: अनंत कैद, बीज नाश या आजादी?’ याद दिलाती है कि सफेद बाघ का सही स्थान, अन्य सभी वन्य जीवों की तरह चिड़ियाघर नहीं वन हैं।