मां… कुछ फिक्र अपनी भी कर लें
क्या मां की ममता, करुणा, त्याग का मोल मात्र एक दिवसीय शुभकामनाएं हो सकती हैं? क्या हमें साल में एक दिन के महिमा-मंडन से खुश-संतुष्ट हो सालभर उस यशगान की धुन गाते-गुनगुनाते अपनी सभी परेशानियां ताक पर रख देनी चाहिए?
क्या मां की ममता, करुणा, त्याग का मोल मात्र एक दिवसीय शुभकामनाएं हो सकती हैं? क्या हमें साल में एक दिन के महिमा-मंडन से खुश-संतुष्ट हो सालभर उस यशगान की धुन गाते-गुनगुनाते अपनी सभी परेशानियां ताक पर रख देनी चाहिए?
मानव संबंध तो जटिल होते ही हैं पर जितनी जटिलता मां, बेटे और बहू के संबंध में अभिव्यक्त होती है, वह तो अद्भुत और असाधारण होती है! उसकी कोई तुलना ही नहीं!