आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी…
दुष्यंत कुमार की यह रचना बहुत प्रभावित करती है क्योंकि यह उस युग में भी सामयिक थी और आज भी सामयिक है। यह कविता संघर्ष करते रहने की प्रेरणा देती है।
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी… जारी >
दुष्यंत कुमार की यह रचना बहुत प्रभावित करती है क्योंकि यह उस युग में भी सामयिक थी और आज भी सामयिक है। यह कविता संघर्ष करते रहने की प्रेरणा देती है।
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी… जारी >