जम गए, जाम हुए, फंस गए; अपने ही कीचड़ में धंस गए
अपने समय में साहित्य जगत में गंभीर दस्तक के बावजूद मुक्तिबोध सही मायनों में वह पहचान हासिल नहीं कर सके थे जिसके वह हकदार थे। उनके निधन के तत्काल बाद उनकी ख्याति का ऐसा बवंडर उठा जिसने सारे हिंदी साहित्याकाश को ढंक लिया।