2025 में यूं अपने आप तो कुछ भी नहीं बदलेगा
उम्मीद करें कि नए वर्ष में आप भवानी प्रसाद मिश्र की कविता ‘कुछ लिखकर सो, कुछ पढ़कर सो, जिस जगह सवेरे जागा तू, उससे कुछ आगे बढ़कर सो’ के अंदाज में हर दिन जीते रहें।
2025 में यूं अपने आप तो कुछ भी नहीं बदलेगा जारी >