life

शब्दों के ऑर्केस्ट्रा में साइंस एक म्यूजिकल स्ट्रिंग

इस पुस्तक को पढ़कर महसूस होता है कि इंसानी भावनाओं और बातचीत का डायनामिक्स हमारी ज़िंदगी में बहुत कुछ मायने रखता है।

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मां की याद हरी है,पेड़ सूख गया है…

पहली बार जब उसको गले लगाया था तो उसकी और से मुझे उत्‍तर मिला था। लेकिन अब नहीं। पेड़ का शरीर तो खड़ा था लेकिन उसके प्राण निकल गए थे।

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जिन्‍हें सुन अभंग याद आता है, जोहार माय बाप,जोहार माय बाप

यह कहा जा सकता है कि सांगीतिक डोमेन में राग की छवि का रूपांतरण का कीमिया एक गणितीय प्रक्रिया है जो एक जटिल सिग्नल को उसके मूल आवृत्ति घटकों में विभाजित करता है।

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भेद मिटाता श्‍मशान! दोगले समाज की तस्‍वीर

काश कि मरघट में हिलौर मारने वाले श्‍मशान वैराग्‍य की तरह यह चिंतन भी तात्‍कालिक न हो, जरा अधिक देर हमारे भीतर उथल-पुथल मचाए। काश!

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पं‍. छन्‍नूलाल मिश्र: गुरु ने कहा था, भीतर-बाहर एक जैसा दिखना…

पंडित छन्नूलाल मिश्र ने जीवन के अंतिम पड़ाव तक न गुरु को विस्‍मृत किया न उनकी शिक्षाओं को। करीब 10 साल पहले कला समीक्षक-पत्रकार विनय उपाध्‍याय ने पंडित छन्‍नूलाल मिश्र से लंबी बात की थी। पुनर्पाठ में उसी साक्षात्‍कार के प्रमुख अंश:

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अंश की यात्रा: एक अनूठे कवि की सांगीतिक दस्तक

आज के समय में एक युवा कवि द्वारा अंतर्मन के गंभीर संकेतों की ये अभिव्यक्तियां चौंकाती हैं और भविष्य के प्रति आश्वस्त भी करती हैं।

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कॉस्मिक ऑर्केस्ट्रा और मेवाती घराने का संगीत

सितार को समर्पित यशस्वी कला गुरू उस्ताद सिराज खान के मेवाती स्कूल ऑफ सितार के वार्षिक प्रतिष्ठा आयोजन पर हंसध्‍वनि। यह संगीत समारोह ऐसे पवित्र विचार की अनुभूति दे गया,जिसे उपलब्धि ही कहना उचित होगा।

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ताकि संगीत-संस्कृति से हमारा रिश्ता पहले जैसा जरूर हो

‘कुछ दस्तकें, कुछ दस्तख़त’ के केनवस पर उड़ान के पंख की कलम से लिखे गए चमकीले सुवर्ण हर्फ-हर्फ इस तरह महसूस किए जा सकते हैं जैसे ब्रेल लिपि के पाठक करते हैं।

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जैसे,पास तो होना चाहता है लेकिन जताना नहीं चाहता

बाघ झाड़ी में छिपा होगा। उसकी आँखें चमक रही होगीं। उसकी गंध इसे भी आई होगी। इसने चाहा भी होगा कि टेडी उस ओर न जाए। लेकिन टेडी तो दौड़ पड़ा होगा! और फिर जो हुआ इसने अपनी आँखों से देखा होगा।

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