डाकुओं के कब्‍जे वाली जगह पर एक साथ सौ मंदिर

एक-दो नहीं, लगभग आधा सैकड़ा से अधिक शिव मंदिर, जिन्हें आठवीं शताब्दी की कारीगरी का उत्कृष्ट नमूना कहेंगे। यह ‘बटेसर मंदिर समूह’ ख़जुराहो मंदिर से भी तीन सौ वर्ष पूर्व के बने हैं। हर दीवार व पत्थर को बारीकी से तराश कर बनाई गई बेशकीमती वास्तुशिल्प अपने होने पर इतराती, इठलाती खड़ी हो जैसे।

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मंदिर जहां चप्‍पल-कपड़े फेंक जाते हैं भक्‍त

किसी भी शहर को देखने का, उसे याद रखने का सबका एक अलग नजरिया होता है। यायावरी के जुनून को पंख देकर आज उड़ चली हूं मध्यप्रदेश के मुरैना जिले में स्थिति दो प्रसिद्ध मंदिरों के प्रांगण में।

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