supreme court of india

अभिव्यक्ति की आजादी सबसे कीमती, इसे दबाया नहीं जा सकता

यह मामला दिखाता है कि हमारे संविधान के अस्तित्व में आने के 75 साल बाद भी राज्य की कानून प्रवर्तन मशीनरी नागरिकों को दिए गए मौलिक अधिकार के बारे में या तो अनभिज्ञ है या इस मौलिक अधिकार की परवाह नहीं करती है।

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उसे जिंदा रहने दें या मार दें … ?

सुप्रीम कोर्ट ने एक बुजुर्ग दंपति की याचिका खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने अपने कोमा में पड़े 30 साल के बेटे के लिए इच्छामृत्यु की मांग की थी, जो 11 साल पहले गिरने के बाद से बिस्तर पर है।

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अभिशाप है रफ एंड रेडी न्याय अर्थात बुलडोजर जस्टिस

बुलडोजर न्याय का पैटर्न अब कानून के शासन और न्याय प्रणाली के लिए एक गंभीर खतरा बन गया है। यदि यह प्रथा अनियंत्रित जारी रहती है तो यह न्यायपालिका में जनता के विश्वास को खत्म कर देगी।

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आपका मौलिक अधिकार है सम्मान के साथ मरना

हर किसी को गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार है। मरने की प्रक्रिया में गरिमा अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का हिस्सा है। इस प्रकार, स्वतंत्र और सक्षम मानसिक स्थिति वाला व्यक्ति यह तय करने का हकदार है कि उसे चिकित्सा उपचार स्वीकार करना है या नहीं।

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