हमने यह कैसा समाज रच डाला है…क्‍यों रच डाला?

आज शिक्षक दिवस है और हमारी बात भी बिना शिक्षा के संदर्भों के पूरी नहीं हो सकती है कि बढ़ती आधुनिकता और भौतिक सुविधाओं के बीच एक मनुष्य के रूप में हम आखिर विकृत क्यों होते जा रहे हैं?

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तुम पकौड़े तलना सीखो के दौर में श्रद्धा निधि

ये सारी बातें एक खीझे हुए क्षुब्ध मन का शिकायती एकालाप सी लग सकती हैं। परंतु कहना पड़ रहा है क्योंकि इतने सब के बाद जब सिस्टम के साथ-साथ समाज भी सवालिया निगाहों से देखता है तो एक शिक्षक का मन आहत होता है।

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