
शैलेंद्र: तेरी चाहत का दिलबर बयां क्या करूं?
आज गीतकार शैलेंद्र की जयंती है। आज का दिन शैलेंद्र और रेणु की दोस्ती को याद करने का भी दिन है। शैलेंद्र के गीत को गुनगुनाते हुए अपने दोस्तों को याद करने का दिन।
आज गीतकार शैलेंद्र की जयंती है। आज का दिन शैलेंद्र और रेणु की दोस्ती को याद करने का भी दिन है। शैलेंद्र के गीत को गुनगुनाते हुए अपने दोस्तों को याद करने का दिन।
जिसे माया कहा गया है उसे उसके द्वैत से दूरी हासिल कर ही अद्वैत के करीब जाकर फिर उसे जो द्वैत और अद्वैत से परे है, को जाना जा सकता है। अद्वैत से उतरकर फिर द्वैत की दुनिया में आया हुआ व्यक्ति ही सिद्ध है या साइंटिफिक भाषा में एलियन है।
आज़ादी कोई एक बार मिलकर अनंतकाल तक चलने वाली चीज नहीं है। एक नागरिक के रूप में यह हमारी निरंतर यात्रा है।
जब हम कुछ सोचते ही नहीं तो जो जैसा घट रहा है वह स्वीकार है। वही मनमुताबिक है एक तरह से क्योंकि यहां मन नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस स्थिति को अ-मन रहकर जो पाया है। द्वैत की सुरंग में से होकर बाहर खुले में अब उन्मुक्त अद्वैत अपनी बाहें फैलाता है।
सर्वज्ञानी हो जाते ही आसक्ति की व्यर्थता का रहस्य मालूम पड़ जाता है। आसक्ति विराट तक पहुंचने के ठीक पहले आ खड़ी होने वाली पहली और आखिरी दीवार है।
कैसा हतभाग है कि उम्र बढ़ रही दिन प्रतिदिन, मगर अब तक कोई विपदा में हाथ बढ़ाने वाला न मिला, न फरिश्ता ही आया कोई। न हेठी दिखाता बाल सखा है, न बुद्धिमान का विवेक बढ़ाता मित्र।
महानदी से निकली हुई एक मुख्य नहर माना कैंप को दो भांगों में बांटती थी। उसके किनारे ऊंचे थे और उस पर लाल मुरम बिछी थी। उस पर साइकिल के टायरों की आवाज एक संगीत की तरह सुनाई देती।
घर पहुंचते ही एक हम सब की एक मीटिंग हुई। प्रश्न था, अब इन्हें कैसे संभालें? एक गाय श्यामा, उसकी बछिया, हमारे घर के आलरेडी सदस्य थे, इसलिए दो और नन्हे सदस्यों का जुड़ना कोई मुश्किल काम भी नहीं था।
सामाजिकता के फेर में हमारा संबंध प्रकृति की शक्ति से टूट गया। एक तरह से जैसे विराट से संबंध विच्छेद हो गया। आज यहां हम विराट से जुड़ी बातें करेंगे। यह क्रममाला तीन कड़ियों में है।