हर बादल में इंद्रधनुष खोजना चाहिए…
तथाकथित नैतिक, सामाजिक व्यवहार या जीवन-संस्कार, आडंबर-प्रियता व्यक्ति की स्वतंत्रता और स्वाधीनता को प्रतिबंधित रखना चाहते हैं। इसलिए एक सहज और सरल प्राकृतिक मुद्दे को अप्राकृतिक बना दिया जाता है।
तथाकथित नैतिक, सामाजिक व्यवहार या जीवन-संस्कार, आडंबर-प्रियता व्यक्ति की स्वतंत्रता और स्वाधीनता को प्रतिबंधित रखना चाहते हैं। इसलिए एक सहज और सरल प्राकृतिक मुद्दे को अप्राकृतिक बना दिया जाता है।
आज जब दुनिया में लाखों बल्कि करोड़ों रुपये मूल्य के कलम उपलब्ध हैं तब नरकट के कलम की याद वैसी ही है जैसे पीएनजी के दौर में दुनिया की पहली आग की याद या फिर सुपर कारों के इस दौर में दुनिया के पहले पहिए की याद।
जो स्मृति में बस न सके, टिक न सके, फिर वह चाहे व्यक्ति, लोग, चीज, संकल्पना या विचार ही क्यों न हो, भरोसा मत करो। स्पष्ट है कि न वह तुम्हारे लिए और न ही तुम उसके लिए हो। जो टिके नहीं उसकी गति तेज है, वह आवारा है,उच्छृंखल-चंचल है,क्षुद्र है,कोई तय ऑर्बिट नहीं है उसका। इसीलिए वह अनप्रेडिक्टेबल है।
हम जिस दौर में बड़े हुए उस दौर में साइकिल स्टेटस सिंबल नहीं बल्कि जरूरत हुआ करती थी। साइकिल उन कुछ चीजों में शामिल है जिन्हें इस दुनिया में हो सके तो न्यूनतम बदलावों के साथ अपने पुराने रूप में बचे रहना चाहिए।
यह प्रकृति का आश्चर्य ही है कि विशाल वृक्ष में नीम की निबोली से दिखाई देने वाले छोटे पीले फल लगते हैं। दूर से देखने पर लगता है जैसे ‘बूंदी’ (एक मिठाई) बेची जा रही है। स्थानीय बोली में बूंदी को ‘सिन्नी’ भी कहते हैं। सो बेचने वाले ‘सिन्नी जैसी मीठी खिन्नी’ ले लो की आवाज लगाकर इसे बेचते हैं।
मैं उस चिल्ला-चोट के बीच अचानक मुस्करा उठी। सामने वाला पक्ष हतप्रभ था। उसे वह रिएक्शन नहीं मिल पा रहा था जिसके लिए मुझे तलब करवाया गया था। आप समझे मैं क्यों मुस्करा रही थी…
शुक्र है, जागृत पेड़ों ने भारत भूमि पर ऐसी विभूतियों को पैदा किया है जिनकी वजह से जड़ों की बात स्मृति में हमेशा बनी रहती है। इस बुद्ध पूर्णिमा पर हंसध्वनि की कामना है कि जड़ें हमेशा आंखों के सामने बनीं रहें और वे हमेशा स्मृति में सिंचित बनी रहें।
दाम के हिसाब से महंगी चाय दुनिया के किसी भी कोने में मिले, हमारे लिए तो सबसे खास, सबसे कीमती चाय वह है जिसे पीने के अरमान बने रहें और मौका मिलते ही हम कह उठें, चलो चाय पीते हैं।
जीवन में मुझे अपने भाई का स्थान देने वाली वह बहन, अस्पताल में पड़ा वह नौजवान, जिसके मन में मृत्युशय्या पर भी मेरी पुस्तक पढ़ने की याद जगती है; बस में मिलने वाला वह किसान, जिसे इस बात पर हँसी आ जाती है कि मैं इतनी अच्छी किताब, लिख कैसे लेता हूं, जिसे पढ़कर उसकी स्त्री और लड़की दोनों खुश हों तथा किराये की साइकिल की दुकान चलाने वाला वह गरीब लड़का, जो मुझसे इसलिए अपनी साइकिल का किराया नहीं लेना चाहता कि मैं उसका प्रिय लेखक हूं- क्या इन सबका यह असीम स्नेह; मेरी पुस्तक की पर्याप्त रायल्टी नहीं है?
मैं ‘बुरी’ मां हूं क्योंकि मैं रोबोट की तरह व्यवहार नहीं कर सकती। मुझे भी गुस्सा आता है, मुझे भी रोना आता है, मैं फिल्मों और टीवी और फिल्मों में नजर आने वाली मां की तरह मां नहीं हूं।