पंछी बनूं उड़ती फिर नील गगन में… यह एक गाने की पंक्ति भर नहीं है बल्कि लगभग हर इंसान ने अपने जीवन में एक बार तो ऐसा सोचा ही होगा। शायद यही कारण है कि पंछियों की दुनिया हमें बहुत लुभाती हैं। उनका आसमान हमें ललचाता है। उनके रंग हमें हैरान करते हैं। उनकी चहचहाहट हमें संगीत से भर देती है। परिदें हमारी दुनिया की खींची लकीरों को नहीं मानते हैं। वे हर साल मीलों दूर से एक देश से दूसरे देश चले आते हैं। ये प्रवासी समय पूरा होने पर अपना डेरा उठा कर चल भी देते हैं। बिना किसी कम्पास, बिना किसी नक्शे के।
परिंदों की इस दुनिया पर कई तरह के कहर भी हैं, जिनके कारण पक्षियों की कई प्रजातियां खतरे से घिर गई हैं। जलवायु परिवर्तन व ग्लोबल वार्मिंग ने पक्षियों का उतना ही नुकसान किया है जितना उनके शिकार ने। पक्षी हमारी दुनिया को खूबसूरत ही नहीं बनाते हैं बल्कि वे पारिस्थितिकी तंत्र का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इसलिए पक्षियों की रक्षा करना हमारे खुद के अस्तित्व के लिए आवश्यक है। यह तब संभव होगा जब हम परिंदों के बारे में जानेंगे, उन्हें जरा और पहचानेंगे। इसी कोशिश का नाम है, रंग आसमानी। रंग आसमानी में हम जानेंगे परिंदों की दुनिया और उसके विविध आयाम। -संपादक
फोटो और विवरण: देवेंद्र दुबे
सीनियर फोटो जर्नलिस्ट एवं पक्षी गाथा फेसबुक पेज के संचालक
ये है लाल चोंच वाली टिटहरी के अंडे। टिटहरी मार्च से जून तक अंडे देती है। इसके अंडों को लेकर ग्रामीण क्षेत्रों मे कई मान्यताऐं हैं। कहा जाता है कि टिटहरी के अंडे देखना शुभ होता है। ये जितने अंडे देती है उतने ही महीने बारिश होती है। अगर ये गर्मी मे जल्दी अंडे देती है तो मानसून जल्दी आता है। अगर टिटहरी के अंडे सीधे रखे हों तो ज्यादा बारिश होती है और आड़े रखे हों तो कम। कई जगह मान्यता है कि टिटहरी अपने अंडे पारस पत्थर से तोड़ती है। इसलिये लोग इसके अंडों के आसपास पत्थर ढूंढते हैं। हालांकि इन मान्यताओं का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।
टिटहरी खुले मैदान मे अपने अंडे देती है। ये अंडे स्लेटी भूरे होते हैं जिनपर बैंगनी या काले धब्बे होते हैं। इस कारण ये शिकारियों को आसानी से दिखाई नहीं देते। हालांकि मवेशियों के पैरों से कुचलने का डर रहता है। इसीलिये किसी के पास आने पर टिटहरी हवा मे उड़ते हुए तेज आवाज मे चिल्लाते हुए उसे अंडों से दूर रखती है। कभी कभी हमला भी कर देती है। टिटहरी चिल्लाते हुए “टिटि-टू-टिट ” आवाज निकालती है जो “Did you do it” जैसा सुनाई देता है। इसीलिये इसे Did you do it bird भी कहते हैं। अपने अंडों को गर्मी से बचाने के लिये ये पंखों को गीला करके उऩ पर बैठती है।
अपने अंडों को बचाने के लिये आसमान में उड़ते हुए शोर मचाती टिटहरी।
टिटहरी दिन रात जाग कर अपने अंडों और बच्चों की देखभाल करते हैं और आसन्न संकट के वक्त शोर मचा कर सबको सजग करते हैं। टिटहरी के अंडों और चूजों का रंग मिटटी के रंग जैसा होता है। इस कारण लोगों की नजर इनके अंडों पर नहीं पड़ती है।
हमारे देश में स्लेटी टिटहरी (सोशिएब लैप विंग) की प्रजाति पर लुप्त होने का खतरा आ गया है । भारत के सूखी घास एवं सूखे मैदानी इलाकों में लंबी टांगों वाला यह पक्षी अपना भोजन तलाश करते हुए यात्राएं करता है । इसकी टांगे मोर की टांगों की तरह बीच से मुड़ी हुई होती है। इसी कारण अचरज होता है कि इतनी पतली टांगे इसका भार कैसे सहती होगी? टिटहरी के पंजे में तीन अंगुली होती है, जो आगे की तरफ होती है, पीछे अंगुली नहीं होने के कारण यह पेड़ या तार पर नहीं बैठ सकती है। इन कमजोर टांगों के कारण इसे दुर्बल पक्षी माना जाता है। इसलिए किसी दुर्बल व्यक्ति की कहावत में तुलना टिटहरी से कर दी जाती है।
पैरों को रखने के ढंग के कारण ही कहा जाता है कि टिटहरी आकाश की तरफ टांग उठा कर सोती है और सोचती है कि आकाश उसी के कारण टिका है। असल में, अपने पैरों की बनावट के कारण ही टिटहरी की उड़ने में ज्यादा रूचि नहीं रहती है। वह अपना अधिकांश समय तालाब और झीलों के पास ही व्यतीत करती है ताकि उसे खुले स्थान पर कीड़े मकोड़े खाने को मिलते रहें।
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के कई क्षेत्रों मे पीली चोंच वाली टिटहरी भी दिखाई देती है जो आकार मे थोड़ी छोटी होती है।