
- आशीष दशोत्तर
साहित्यकार एवं स्तंभकार
जिंदगी के फलसफे को समझने की दरकार
जब से पतवारों ने मेरी नाव को धोखा दिया
मैं भंवर में तैरने का हौसला रखने लगा।
मैं भंवर में तैरने का हौसला रखने लगा।शायरे-यक़जहती और शब्द एवं सियासत की ज़मीन को अपनी शाइस्तगी से शादाब करने वाले शाइर उदय प्रताप सिंह का यह शेर बहुत सीधा सा शेर है। इसमें कहीं कोई पेचीदगी नहीं है। कोई दबी छुपी बात भी नहीं। फिर भी यह शेर इसके हर्फ़ों से परे जाकर कुछ अलग सोचने पर विवश करता है। शेर बहुत सादगी से यह बात कह रहा है कि जब पतवारें नाव का साथ छोड़ती हैं , तभी उसमें बैठने वाला तैरने के लिए मजबूर होता है।
बात बहुत साधारण है मगर इसके पीछे कई आयाम नज़र आते हैं। कश्ती और पतवार का साथ बहुत जरूरी होता है। बिना पतवार के कश्ती किसी काम की नहीं और बिना कश्ती के पतवार भी कोई मतलब नहीं रखती है । कश्ती में बैठने वाला हर वक्त इन दोनों की एक दूसरे पर निर्भरता को देखते हुए और उस पर यकीन करते हुए कश्ती में बैठने का साहस कर पाता है। वह कभी यह नहीं सोचता कि कश्ती और पतवार के बीच जो संबंध है, वह कभी टूट भी सकते हैं। लेकिन जब कभी ऐसा होता है तो उसे जिंदगी की हक़ीक़त समझ में आती है और तब वह खुद तैरने का साहस कर पता है।
यहां यह भी इशारा मिल रहा है कि जीवन किसी के सहारे नहीं गुज़ारा जाता। जीवन हमेशा अपने भीतर के हौसलों और इच्छाशक्ति के बल पर ही जिया जाता है। जो लोग किसी के सहारे जिंदगी गुज़ारते हैं वे कभी अपने पैरों पर खड़े नहीं हो पाते। मुसाफ़िर कश्तियों के भरोसे रहते हैं। कश्तियां मल्लाहों के भरोसे। मल्लाह पतवारों के भरोसे अपनी राह पर आगे बढ़ते हैं । ऐसे में कोई भी अपने भीतर के हौसले को बाहर नहीं निकाल पाता है। जब सहारे टूटते हैं, तब हक़ीक़त समझ में आती है। पतवारें , मल्लाहों का साथ छोड़ देती हैं । मल्लाह कश्ती का साथ छोड़ देते हैं । कश्ती मुसाफ़िर का साथ छोड़ देती है। ऐसे में हर किसी को अपने भीतर की इच्छाशक्ति को जगाना होता है और उसी के दम पर वह जीवन के भंवर से पार निकल सकता है।
शाइर यहां ऐसा हौसला अपने भीतर रखने की बात कर रहा है । हर किसी को अपने भीतर के हौसले को ज़िंदा रखना चाहिए ताकि सहारे जब साथ छोड़ दें तो मुश्किलों से पार पानी में कोई तकलीफ़ न हो।शेर प्रतीकों और बिम्बों के ज़रिए भी बहुत कुछ कह रहा है। यहां कश्ती , कश्ती न हो कर जिंदगी है। पतवारें , पतवारें न हो कर ख़्वाहिशें हैं । भंवर , भंवर न हो कर जिंदगी को समझने का एक रास्ता है। इस लिहाज़ से शेर यह बतला रहा है कि जिंदगी एक कश्ती की तरह ही है । जिसे हम अपनी ज़रूरतों की पतवारों से चला रहे हैं । जब ज़रूरतें कश्ती का साथ छोड़ देती हैं , तब इंसान को जिंदगी की हक़ीक़त समझ में आती है और वह उस दिशा में जाने का हौसला करता है, जिस दिशा में उसे जाना चाहिए था।
इंसान की ख़्वाहिशें कभी ख़त्म नहीं होतीं, लेकिन जब ख्वाहिशें ख़त्म हो जाती हैं तभी उसे सही रास्ता दिखाई देता है। जिंदगी के भंवर में तैरना कोई आसान नहीं होता लेकिन जब इंसान की ख़्वाहिशें ख़त्म हो जाती हैं तो वह किसी के भरोसे अपनी जिंदगी गुज़ारने के बारे में नहीं सोचता। फिर वह सोचता है कि जिंदगी में जब कोई ख़्वाहिशें नहीं रहीं तो जिंदगी के उस मूल स्वरूप को खोजा जाए, जिसके लिए मुझे जिंदगी मिली है। शेर इस अर्थ के ज़रिए बहुत व्यापक फ़लक पर अपनी बात को पहुंचा रहा है। यह जिंदगी के फलसफे से बहुत गहराई से हर मुसाफ़िर को जोड़ रहा है।
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