सिर्फ सौ ग्राम!

संजीव शर्मा, स्‍वतंत्र लेखक

आज पूरे भारत को पता चल रहा है कि ‘100 ग्राम’ वजन का क्या महत्व है। इसके पीछे किसकी गलती है, किसकी नहीं है; इस सब में न पड़ते हुए आइए शरीर के वजन के बारे में कुछ रोचक तथ्य जानते हैं।

हमारा वजन कभी भी स्थिर नहीं होता और वह थोड़ा-बहुत हमेशा बदलता रहता। हमारे शरीर में वजन के हिसाब से लगभग 60 प्रतिशत पानी होता है। शरीर का कोई भी अंग ऐसा नहीं होता है जिसमें पानी नहीं हो। शरीर में पानी के घटने-बढ़ने से वजन भी घटता-बढ़ता रहता है। शरीर में पानी कम होने के कारण सुबह हमारा वजन कुछ कम होता है। यदि हम ज्यादा सोडियम का ज्यादा सेवन करें तो उससे भी शरीर में वॉटर रिटेंशन होता और वजन बढ़ जाता। इसके अलावा, खाना और उत्सर्जन करना भी हमारे शरीर के वजन को घटाता-बढ़ाता रहता है।

हमारे शरीर का सबसे ठोस हिस्सा हड्डियां होती लेकिन वह हमारे शरीर के कुल भार का सिर्फ 14 प्रतिशत होती हैं। इस कारण से हड्डियां कमजोर हो जाने और ऑस्टियोपोरोसिस हो जाने पर भी वजन में कुछ खास फर्क नहीं पड़ता। इनमें सबसे भारी हड्डी जांघ की फीमर और सबसे हल्की कान की हड्डी ऑसिकल होती है। हड्डियों से ज्यादा वजन तो हमारे शरीर से सबसे मुलायम हिस्से त्वचा का होता है, जो पूरे शरीर के भार का लगभग 15 फीसदी होता है।

त्वचा हमारे शरीर का सबसे भारी अंग है और उसके बाद आते हैं लिवर और मस्तिष्क। यह दोनों ही हमारे शरीर के कुल भार का अलग-अलग लगभग 2 प्रतिशत होते हैं। इन दोनो अंगों पर ही हमारे शरीर का पूरा खेल टिका और इनमें कुछ भी समस्या होते ही हमारा जीवन ही संकट में पड़ जाता है। फेफड़े बहुत बड़ा अंग होने के बावजूद हमारे शरीर का सबसे हल्का अंग होते हैं, और शरीर के कुल वजन का सिर्फ 0.64 प्रतिशत से 0.86 प्रतिशत ही होते हैं।

हमारे शरीर का सबसे भारी हिस्सा यानी कुल 40 प्रतिशत वजन मांसपेशियों से आता है (महिलाओं में यह अनुपात कम होता है) और इनका वजन कम होना शरीर के लिए हानिकारक होता है।

सुनीता विलियम्स को अंतरिक्ष में लंबा समय बिताना पड़ रहा है और इस कारण से उनका मसल्‍स मास कम हो रहा है। अंतरिक्ष में मांसपेशियों पर जोर नहीं पड़ता इस कारण से वह कमजोर होती जाती हैं। मांसपेशियां उतनी ही मजबूत होती जाती हैं जितना उनसे काम लिया जाता है।

जहां तक शरीर में फैट या वसा का सवाल है, एक स्वस्थ शरीर में महिलाओं के लिए 25 प्रतिशत से 31 प्रतिशत और पुरुषों के लिए 18 प्रतिशत से 24 प्रतिशत फैट मास अच्छा माना जाता है। इससे ज्यादा फैट मास होना नुकसानदेह माना जाता है और वह अनेक तरह की बीमारियों को आमंत्रण को देता है।

कई बार हम देखते हैं कि किसी फिट और स्लिम दिखने वाले व्यक्ति को कम उम्र में कार्डियक अरेस्ट हो गया और थोड़े मोटे और अनफिट दिखने वाले लोग लंबी उम्र जीते हैं। वास्तव में ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम सभी लोग एपिजेनेटिक रूप से अलग होते हैं और इस कारण से हर चीज का प्रभाव हम पर अलग-अलग होता है। हमारे हृदय की रक्त वाहिनियों में कितनी ब्लॉकेज है इसका अंदाजा हमको देख कर लगाना हमेशा सटीक नहीं होता। इसके अलावा, एक कारण यह भी होता है कि यदि फैट का जमाव आपकी त्वचा के नीचे ज्यादा है लेकिन आंतरिक अंगों के आसपास नहीं है तो आप रोगों से कुछ हद तक बचे रहते हैं। यदि एक्टिविटी का स्तर अच्छा है तो भी फैट का स्तर थोड़ा ज्यादा होने के बावजूद बीमारियों से कुछ हद तक बचाव होता रहता है।

जापान के सूमो पहलवानों का वजन ज्यादा होता है और बॉडी फैट भी ज्यादा होती है लेकिन उनकी ओवरऑल हेल्थ ठीक होती है। इसका कारण यह होता है कि भरपूर व्यायाम करने के कारण उनके आंतरिक अंगों के आसपास फैट जमा नहीं होती और प्रोसेस्ड और हानिकारक केमिकल से भरा भोजन नहीं करने के कारण उनके शरीर में इंफ़्लमेशन का स्तर बहुत कम होता है। लेकिन जब वह रिटायर होते हैं और अपना व्यायाम का रिजीम नहीं बनाए रख पाते तो वह बीमार होने लगते हैं; इस कारण आम जापानी की तुलना में उनकी जीवन प्रत्याशा या लाइफ एक्सपेंटेंसी 15 साल कम होती है।

कुल मिलाकर हमें अपने शरीर में फैट की मात्रा सही रखना और मांसपेशियों का वजन बनाए रखना स्वस्थ रखता है लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि यह सेहत की गारंटी है। संतुलित भोजन, सही जीवनशैली और स्वस्थ मन ही सेहत की कुंजी है, लेकिन फिर भी शरीर के बारे में बहुत कुछ ऐसा है जो हमें आज भी समझ नहीं आया है।

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