राघवेंद्र तेलंग, सुपरिचित कवि,लेखक,विज्ञानवेत्ता
क्या आपने ध्यान दिया है कि हमारी देखी-सुनी बात को अर्थ हमें हमारे विचारों से विचार करने की क्रिया से मिलता है। मगर असल बात तो तब है कि जब बिना विचार किए एफर्टलेस्सली हर देखे-सुने में अर्थ मालूम पड़े तो ही उस घटना का वास्तविक अर्थ है जो कि आपके लिए है। यह अस्तित्व का होना है,जो कि आपके लिए है। यही प्राकृतिक क्रिया है। यह अस्तित्व की कार्य प्रणाली है बिना पूर्वाग्रह-दुराग्रह के निर्विकल्प सत्य का परावर्तन। प्रकृति के साथ इसी भाव से जुड़ना फिर जुड़े रहना अपने वास्तविक स्वरूप में होना है। यही नेचुरल होना है।
सभ्यता के विकास क्रम में सबसे बडी एक गड़बड़ यह हुई है कि सामाजिकता के फेर में हमारा संबंध प्रकृति की शक्ति से टूट गया। एक तरह से जैसे विराट से संबंध विच्छेद हो गया। आज यहां हम विराट से जुड़ी बातें करेंगे। यह क्रममाला तीन कड़ियों में है।
जैसे ही विराट आपको छू लेता है आपकी इंडिविजुअल आइडेंटिटी की तरंग कलेक्टिव कांशसनेस की तरंग में कोलेप्स होकर विराट की तरंग से एकाकार हो जाती है। फिर आप कोई एक अलग नामधारी मनुष्य या विशिष्ट जीव नहीं रह जाते हैं। अब आप सभी कबूतरों के बीच एक कबूतर जैसे हैं। हर कबूतर की तरह कबूतर नाम का वैसा ही एक और कबूतर। फिर आप विराट के द्वारा पल्लवित,पोषित और सबसे प्यारे जीव हो जाते हैं। अब आपका अस्तित्व में रहना या ना रहना विराट की मर्जी पर है। यानी जब तक आप उसके मुताबिक उसके हैं, काम के हैं। अब आप एक विराट सर्वव्यापी आत्मा के अंदर हैं। ऊर्जा के अंदर की ऊर्जा का एक पैकेट रूप हैं। यहाँ यह ध्यान रहे कि एक नदी के प्रवाह में बहकर शिवलिंग बनना और एक गुरु यानी संगतराश के यहां स्थिर अवस्था में रहकर शिवलिंग बनने में बारीक फर्क है।
विराट को छूने,विराट को पाने,विराट की गोद में जा बैठने के लिए पूरी तरह शुद्ध ईंधन और बहुत शक्तिशाली इंजन चाहिए होगा। फिर उसके लिए ढ़ेर सारा ईंधन चाहिए होगा वह भी शुद्धतम। और फिर ऐसे इंजन से चलित यान में बैठने के लिए अपार साहस,ऊपर की यात्रा प्रारम्भ होने के पूर्व वह सबसे जबर्दस्त थ्रस्ट/धक्का,सब कुछ दांव पर लगा देने का ज़ज़्बा, वह भी अपनी जान से हाथ धो बैठने के खतरे के बावजूद । संकटों की अति से निर्भीकता, किसी भी गड़बड़ होने की अवस्था के प्रति स्वीकार्यता। यानी सिस्टम के सैकड़ो पैरामीटर्स के एक साथ सफल होने का प्रतीक है विराट में प्रवेश द्वार के खुलने की यह आवाज़ यानी अनहद नाद की ध्वनि। विराट में प्रवेश होते ही आप बादल हो जाते हैं,हवा हो जाते हैं ,दृश्य हो जाते हैं। इस तरह आप सबकी कामना के विराट जैसा हो जाने में प्रवेश करते हैं।
जब आप ऊर्जा पैदा करने वाले इंजन बन जाते हैं तब आपको अपने लिए हरदम शुद्ध ईंधन की ही तलाश होती है। आप हमेशा फुल टैंक रहना पसंद करते हैं और यह आपकी पहली और सर्वोच्च प्राथमिकता होती है।
आप जानते हैं कि कोई भी इंजन आसमानी ताकत,यानी ऊर्जा जो कि अदृश्य होती है, से चलता है। जब तक आसमान और जमीन के बीच खड़े,इस आप के अंदर, उस आसमानी बिजली के आसान प्रवाह के लिए एक सर्किट तैयार नहीं हो जाता तब तक ऊपर से नीचे तक शरीर में कुचालक आधारित वातावरण ही बना हुआ रहता है,अवरोध की स्थिति बनी रहती है। यह बात स्टैंडिंग वेव्ह के बारे में है। ये बातें एक ट्यूब वेल जैसी संरचना के बारे में है,जिसमें नीचे से ऊपर की ओर खुदाई करने की बात हो रही है,ताकि बाद में उसी राह से,रूट से ऊपर से आती ऊर्जा के लिए भी पथ बने। फिर ऐसा हो जाने पर ऊपर मौजूद एक्स्ट्रा हाई टेंशन लाईन जैसी अति उच्च उर्जा पर तार डालकर हमें अपने घर को जगमग करना है। सभी खतरों से बचते हुए। यानी जब तक आप सुपर कंडक्टर नहीं होते तब तक आप से होकर ऊर्जा नहीं गुजरेगी और तब तक आपका फिलामेंट नहीं जलेगा। हाईली इनफ्लेमेबल होकर ही यानी अति संवेदनशील होकर ही उस सर्वोच्च ऊंचाई को छुआ जा सकता है। हाईली इनफ्लेमेबल होने से तत्क्षण आग के संपर्क आते ही अपनी ऊर्जा स्थूल वृत्त के कोन के अंदर यानी पृथ्वी पर ही खर्च नहीं कर देनी है। बस अचल बिंदु रूप में स्टैंडिंग वेव में रहकर परम ताप स्थिति में बने रहकर विराट स्थूल वृत्त के उत्प्लावन बल का उपयोग कर विराट सूक्ष्म वृत्त के उस बिंदु को छूना है,जो कॉस्मास का केंद्र है,अक्ष है।
यहां आप पाते हैं कोस्मिक ऊर्जा से पृथ्वी पूर्ववत, हमेशा की तरह एलाइंड है संरेखित है बस आप ही नहीं हैं। सहस्र्रार से आज्ञा चक्र तक (अब बाकी चक्र मूलाधार तक संरेखित हैं) अपने रिसीवर और ट्रांसमिटर को आपस में ट्यूंड रखते हुए विराट के प्रवेश द्वार में स्थित ट्रांसपोंडर रूप भी अपना बनाए रखना है कि आपका संदेश सब डाउनलोड कर पाएं और आप तक सबकी भौतिक पहुंच भी आसान हो।
स्थूल विराट के विशाल वृत्त के ठीक केंद्र में आना सौभाग्य का क्षण होता है। और एक चहुं ओर व्याप्त ओम्नी नेचर के वृत्त में आप सदा केंद्र में होते हैं। फिर एक दिन शुभ संयोग से जब पाथ ऑफ टोटलिटी पर शाश्वत कॉस्मिक प्रकाश की टार्च आप पर पडती है तब मिलकर इड़ा और पिंगला श्वास के रेशे यानी करंट को एंटी क्लोक वाईज़ दिशा में घुमाते हुए स्टेंडिंग वेव्ह के शीर्ष प्वाइंट की सीध में ला खडा कर देते हैं और कालांतर में धीरे-धीरे आत्मबोध की चिंगारी से दीप जल उठता है। इस कोशिश का अर्थ विराट स्थूल वृत्त के केंद्र पर रहने और वहां बने रहकर फिर वर्टिकली अपलिफ्ट करते हुए,स्थूल संसार की क्षणिक खुशी और शाश्वत उदासी के बीच ओसिलेट करते हुए,अंतत: वोर्टेक्स पर जो कि वर्म होल का मध्य बिंदु है पर पहुंच जाना विराट सूक्ष्म की पहली सतह यानी विराट सूक्ष्म के केंद्र पर पहुंच जाना है। चूंकि इस खुली सीमाओं वाले वृत्त के सारे बिंदु एक हैं,एक ही बिंदु में समाए हैं और इसका एक ही आयाम बिंदु रूप में है,परंतु बबल रूप होने से यह अनेकों स्वरूपों में प्रकट होता है, गोल मेटा सरफेस होने के कारण। अत: यहां सब स्थिर है,कोई स्पंदन नहीं है, हलचल नहीं है,सब अचल है। तो जो ऊपरी टिका हुआ कोन शंकु आम तौर पर चित्रों में दर्शित होता है वह आगे की समझ पैदा करने के लिए है कि वहां शीर्ष पर एक अचल बिंदु है जो इस शंकु/कोन प्रकृत्ति से ही उपजा है,बाल पेन की तरह। इस बिंदु तक पहुंचाने वाली शून्य की स्टेंडिंग वेव्ह सृष्टि की केपिलरी ट्यूब सिद्धांत का ही प्रतिरूप होती है।
पाथ ऑफ टोटलिटी के गुजरने से यह कॉस्मिक ऊर्जा लाइटर का काम कर जाती है और बाती को तेल से भिगो जाती है। फिर कंठ से आज्ञा चक्र तक अनहद नाद पैदा होता है। और इस नाद की आवृत्ति सम्पूर्ण हेमिसिंक्ड ब्रेन में फैलती है। निर्णायक तंत्र अब वाईब्रेटेड है जीवंत है, अब मेमोरी की ज़रूरत नहीं। अब बाहर के विशाल ब्रेन से कनेक्ट हो जाने से इंफो तरंगे स्वयं
सूचनाएं डाल जाती हैं। जैसे हंस लंबे पाईपनुमां गर्दन के वाइब्स से काम लेता है, सतह के नीचे मौजूद पानी से मेट्रोनोम कारक आवृत्ति लेने का कार्य करता है। अब यही हंस बिना कहे दूध का दूध और पानी का पानी कर देता है।
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