World Smile Day: किसी हारे हुए शख्स में जीत का भरोसा भर सकती है Smile
– पूजा सिंह
स्वतंत्र पत्रकार
क्या मुस्कराने का कोई एक दिन हो सकता है? क्या इसके लिए कोई एक दिन मुकर्रर किया जा सकता है? क्या इसके लिए किसी वजह की जरूरत है? बेवजह मुस्करा पड़ना अच्छा है या बुरा?
इन तमाम सवालों के जवाब अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग हो सकते हैं लेकिन एक बात जिससे कतई इनकार नहीं किया जा सकता है वह यह है कि मुस्कान संक्रामक होती है…एक मुस्कान थके-उदास चेहरे पर हंसी ला सकती है, किसी सताए हुए हताश व्यक्ति में आत्मविश्वास की चमक भर सकती है, किसी हारे हुए शख्स में जीत का भरोसा भर सकती है। मुस्कराइए क्योंकि मुस्कराहट सिर्फ अपने साथ की जाने वाली कार्रवाई नहीं है, यह उससे कहीं अधिक एक सामाजिक दायित्व भी है। कविराज शैलेंद्र का राज कपूर पर फिल्माया गया कालजयी गीत भला किसने नहीं सुना होगा-
किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार
किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार
किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार
जीना इसी का नाम है…
ये तमाम बातें इसलिए क्योंकि आज ‘वर्ल्ड स्माइल डे’ है यानी विश्व मुस्कान दिवस। हर वर्ष अक्टूबर महीने के पहले शुक्रवार को मनाया जाने वाला मुस्कान दिवस यह याद करने का भी दिन है कि एक अच्छी मुस्कान में वह ताकत और खिंचाव मौजूद है जिसकी मदद से वह बड़े बदलावों को अंजाम दे सकती है।
विश्व मुस्कान दिवस
हम सबने होश संभालने के बाद से ही इंटरनेट पर, किताबों में, कार्टूंस में, बॉल्स पर और यहां तक कि स्टिकर्स के रूप में स्माइली का पीला आइकॉनिक सिंबल जरूर देखा है- चौड़ी मुस्कान वाली पीली गोल स्माइली। यत्र-तत्र-सर्वत्र अपनी जगह बना चुकी इस मामूली सी नजर आने वाली स्माइली की कहानी गैर मामूली है।
यह स्माइली दरअसल अमेरिकी कलाकार हार्वी रॉस बाल द्वारा बनाई गई है। दरअसल सन 1963 में एक अमेरिकी बीमा कंपनी ने उनसे एक ऐसा आइकन बनाने को कहा जो कंपनी के कर्मचारियों को थोड़ा अच्छा अहसास कराए, उनके दबाव को कम करके उनके चेहरे पर हंसी लाए। हार्वी ने पीले बैकग्राउंड पर काली स्माइल वाला वह चित्र बनाया जो तब से अब तक अनगिनत शक्लों में और अनगिनत तरीकों से हमारे सामने आ चुका है और हमें खुशी का अहसास कराता आ रहा है। इसका सबसे लोकप्रिय स्वरूप हमें इंटरनेट इमोजी के रूप में देखने को मिलता है।
दिलचस्प बात है कि हार्वी ने इसकी परिकल्पना करने और इसे बनाने में बमुश्किल 10 मिनट का समय लगाया था, हालांकि यह मुस्कान अनमोल हो चुकी है लेकिन फिर भी एक तथ्य के रूप में हम आपको बताते चलें कि इसे बनाने के लिए हार्वी को 45 डॉलर का भुगतान किया गया था।
समय बीतने के साथ इस स्माइली के अत्यधिक इस्तेमाल से हार्वी को लगा कि यह अपना मूल अर्थ गंवा रहा है। यही वजह है कि उन्होंने दुनिया भर में खुशहाली के अहसास को बढ़ावा देने के लिए वर्ल्ड स्माइल डे मनाने का विचार किया और इसके लिए अक्टूबर माह के पहले शुक्रवार का दिन तय किया। सन 1999 में पहली बार आधिकारिक तौर पर विश्व मुस्कान दिवस मनाया गया। 2001 में हार्वी के निधन के बाद से यह सिलसिला हर वर्ष लगातार चला आ रहा है।
खुशहाली की बात चली है तो यह याद कर लेना उचित रहेगा कि गत 20 मार्च को जारी विश्व खुशहाली रिपोर्ट में भारत को 143 देशों में 126वां स्थान मिला है। इस सूची में फिनलैंड शीर्ष पर है जबकि अमेरिका टॉप 20 देशों से बाहर है। यह रिपोर्ट गैलप, ऑक्सफोर्ड वेलबीइंग रिसर्च सेंटर और यूनाइटेड नेशंस सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्युशंस द्वारा तैयार की जाती है।
खुशहाली रिपोर्ट में भारत की स्थिति बहुत निराशाजनक है लेकिन रिपोर्ट के कुछ निष्कर्ष समाज को लेकर हमारी समझ को बढ़ाने वाले हैं।
रिपोर्ट कहती है कि भारत में वृद्ध पुरुष, वृद्ध महिलाओं की तुलना में जीवन से अधिक संतुष्ट हैं लेकिन जब सभी मापदंडों को ध्यान में रखकर प्रसन्नता आंकी जाती है तो वृद्ध महिलाएं अधिक प्रसन्न नजर आती हैं।
रिपोर्ट एक और तथ्य बताती है जिससे हम शायद पहले से ही अवगत हैं। वह यह कि देश में पढ़े लिखे लोग और कथित ऊंची जातियों में जन्में लोग, कम पढ़ेलिखे या अनुसूचित जाति अथवा जनजाति के लोगों की तुलना में अधिक प्रसन्न पाए गए। इसकी वजह हम सभी जानते हैं। नौकरियों, संपत्ति और संसाधनों पर जिनका अधिकार अधिक है वे कम से कम इस रिपोर्ट के तय मानकों के आधार पर तो अधिक प्रसन्न ही पाए गए।
यह बात अलग है कि यह रिपोर्ट कोयल की कूक, बाघ की दहाड़, बकरी के मिमियाने और गाय के रंभाने से किसी किसान या आदिवासी को होने वाली खुशियों को नहीं आंकती है क्योंकि इसके मानक अलग हैं।
बताते चलें कि यह रिपोर्ट लोगों की खुशहाली को आंकने के लिए उनकी जीवन संतुष्टि, उनके जीवन में भेदभाव की मौजूदगी या अनुपस्थिति तथा स्वास्थ्य को लेकर लोगों के खुद के आकलन को मानक मानती है।
मुस्कान की तरह खुशी कोई ऐसी चीज नहीं है जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में यूं ही स्थानांतरित होती चली जाए क्योंकि वह एक आंतरिक भाव है जिसके लिए कई परिस्थितियां जिम्मेदार होती हैं। इसकी गहराई में जाएं तो पाएंगे कि खुश होने या न होने के गहरे सामाजिक-आर्थिक कारण होते हैं। परंतु इसके बावजूद हम कम से कम यह कोशिश तो कर ही सकते हैं कि हमारे चेहरे पर हर वक्त एक मुस्कान नजर आए। यह मुस्कान न केवल हमें अच्छा महसूस कराएगी बल्कि हमारे आसपास के तमाम लोगों के सोच पर सकारात्मक असर डालेगी।
केवल एक मुस्कान से आपका मूड बेहतर हो सकता है, आपका आत्मविश्वास बढ़ सकता है। यह मुस्कान लोगों के साथ संपर्क बनाने और पुराने संपर्कों को बेहतर बनाने में आपकी मदद कर सकती है। मुस्कान एक फीलिंग को दर्शाती है इसलिए उसे किसी भाषा की जरूरत नहीं होती। तमाम शोध यह भी बताते हैं कि मुस्कान से हमारा मानसिक स्वास्थ्य मजबूत होता है और इंसानों के बीच भाईचारे और बहनापे की भावना मजबूत होती है।
मुस्कान से जुड़ी इन तमाम बातों के बीच जब-जब आप किसी को मुस्कराते देखें तो हार्वी बाल को जरूर याद करें जिन्होंने मुस्कान को एक नया चेहरा दिया।