
- जे.पी.सिंह
वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के विशेषज्ञ
मरीज को हिंसक भी बनाता है स्किट्ज़ोफ़्रीनिया
स्किट्ज़ोफ्रीनिया के इलाज में लापरवाही और सही इलाज न होने से इससे ग्रसित लोगों का व्यवहार दिनों दिन आक्रामक होता जाता है और यह गंभीर हिंसक घटनाओं का कारण बन जाता है। इसपर विदेशों में हए अध्ययन से पता चला है कि स्किट्ज़ोफ्रीनिया से पीड़ित 13806 स्किट्ज़ोफ्रीनिया मरीजों में से 23% मरीज ही हिंसक प्रवृति के पाए गये। ऐसे ही एक हाई प्रोफाइल मर्डर की घटना हाल ही में प्रकाश में आई है। 1981 बैच के आईपीएस अधिकारी ओम प्रकाश (68 साल) 2015 से 2017 तक कर्नाटक के पुलिस महानिदेशक रहे थे। पूर्व डीजीपी की हत्या के मामले में उनकी पत्नी पल्लवी को गिरफ्तार किया गया है। बताया जा रहा है कि पूर्व डीजीपी की पत्नी पल्लवी स्किट्ज़ोफ्रीनिया से ग्रसित थी।
स्किट्ज़ोफ्रीनिया बीमारी में इंसान वास्तविकता से अलग दुनिया में रहने लगता है और उसकी सोचने समझने की क्षमता खत्म हो जाती है। क्लेवेंडर क्लीनिक के मुताबिक, दुनिया भर में हर 1 लाख लोगों में से 221 लोग इससे पीड़ित हैं। स्किट्ज़ोफ्रीनिया एक गंभीर मानसिक स्वास्थ्य स्थिति है जो लोगों के सोचने, महसूस करने और व्यवहार करने के तरीके को प्रभावित करती है। इसमें हेलूसिनेशन, कन्फ्यूजन और अव्यवस्थित बातें और अजीबो-गरीब बिहेवियर शामिल हो सकते हैं। स्किट्ज़ोफ्रीनिया से पीड़ित लोगों को वास्तविकता और कल्पना के बीच अंतर करने में कठिनाई हो सकती है। हेलूसिनेशन में ऐसी चीजें देखना या सुनना शामिल है जो दूसरों द्वारा नहीं देखी जाती या सुनी जाती हैं। भ्रम यानी ऐसी चीजों पर विश्वास करना शामिल है जो वास्तविक नहीं होती हैं। वहीं अव्यवस्थित बातें यानी इंसान खुद नहीं समझ पाता कि वह बोल क्या रहा है।
स्किट्ज़ोफ्रीनिया अक्सर आपके प्रोफेशनल, पर्सनल या अन्य रिलेशन को भी प्रभावित करती है। पुरुषों में स्किट्ज़ोफ्रीनिया 15 से 25 वर्ष की उम्र के बीच और महिलाओं में 25 से 35 वर्ष की उम्र के बीच शुरू हो सकता है। स्किट्ज़ोफ्रीनिया के लगभग 20 प्रतिशत नए मामले 45 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में होते हैं। ये मामले पुरुषों में अधिक होते हैं।बच्चों में स्किट्ज़ोफ्रीनिया दुर्लभ है लेकिन संभव है। जब स्किट्ज़ोफ्रीनिया बचपन में शुरू होता है तो यह आमतौर पर अधिक गंभीर होता है और इसका इलाज करना कठिन होता है। स्किट्ज़ोफ्रीनिया के अलग-अलग लोगों में बहुत अलग-अलग लक्षण हो सकते हैं। किसी व्यक्ति में बीमारी किस तरह से सामने आती है और आगे बढ़ती है, यह लक्षणों की शुरुआत, गंभीरता और समय पर निर्भर करती है। स्किट्ज़ोफ्रीनिया से पीड़ित बहुत से लोग यह नहीं पहचान पाते कि उनमें स्किट्ज़ोफ्रीनिया के लक्षण हैं।
स्किट्ज़ोफ्रीनिया के ये 5 मुख्य लक्षण हैं-
भ्रम: ये इंसान की ऐसी गलत धारणाएं होती हैं जिन्हें आप तब भी मानते हैं जब कि वो पूरी तरह से गलत होते हैं। उदाहरण के लिए स्किट्ज़ोफ्रीनिया से पीड़ित इंसान को लग सकता है कि आप उसके सोचने या करने की क्षमता को कंट्रोल कर रहे हैं जबकि ऐसा पॉसिबल नहीं होता।
हेलूसिनेशन: ये वो स्थिति होती है जिसमें इसान को लगता है कि वह ऐसी चीजें देख, सुन, सूंघ, छू या चख सकता है जो अस्तित्व में नहीं हैं, जैसे किसी परछाई को देखना या आवाजें सुनना।
अव्यवस्थित बोलना: बोलते समय पीड़ितों को अपने विचारों को व्यवस्थित करने में परेशानी हो सकती है। ऐसा लग सकता है कि उन्हें उस टॉपिक पर बात करने में परेशानी हो रही है या उनके विचार इतने उलझे हुए हो सकते हैं कि लोग उनको समझ नहीं पाएं।
अव्यवस्थित या असामान्य हरकतें: पीड़ित अपने आस-पास के लोगों की अपेक्षा से अलग तरीके से चल सकते हैं। उदाहरण के लिए, पीड़ित बिना किसी स्पष्ट कारण के बहुत ज्यादा घूम सकते हैं, दिन भर चल सकते हैं या फिर दिन भर नहा सकते हैं।
नकारात्मक लक्षण: ये पीड़ितों की अपेक्षा के अनुसार काम करने की क्षमता में कमी या हानि को दर्शाते हैं। उदाहरण के लिए, पीड़ित चेहरे के भाव बनाना बंद कर सकते हैं या उनके अंदर फीलिंग्स खत्म हो सकती हैं।
स्किट्ज़ोफ्रीनिया का कोई एक कारण नहीं है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि स्किट्ज़ोफ्रीनिया अलग-अलग कारणों से होता है जिसके 3 मुख्य कारण हो सकते हैं:
पहला, दिमाग के सेल का सेल से कम्यूनिकेशन के लिए मस्तिष्क द्वारा जो कैमिकल यूज होता है, उसका असंतुलन। दूसरा, जन्म से पहले ब्रेन सही से डेवलप न होना और तीसरा, दिमाग के विभिन्न एरिया का एक दूसरे से कनेक्शन टूटना।
मेयो क्लिनिक का कहना है, “स्किट्ज़ोफ्रीनिया से पीड़ित लोगों को आजीवन उपचार की आवश्यकता होती है। प्रारंभिक उपचार गंभीर जटिलताओं के विकसित होने से पहले लक्षणों को नियंत्रण में लाने में मदद कर सकता है और दीर्घकालिक दृष्टिकोण को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है।”
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि स्किट्ज़ोफ्रीनिया दुनिया भर में लगभग 24 मिलियन लोगों या 300 लोगों में से 1 (0.32%) को प्रभावित करता है। हालांकि स्किट्ज़ोफ्रीनिया का सटीक कारण ज्ञात नहीं है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि आनुवंशिक, पर्यावरणीय और न्यूरोबायोलॉजिकल कारकों का संयोजन इस स्थिति के विकास में योगदान देता है। मेयो क्लिनिक के अनुसार है कि डोपामाइन और ग्लूटामेट नामक न्यूरोट्रांसमीटर सहित कुछ स्वाभाविक रूप से होने वाले मस्तिष्क रसायनों की समस्याएँ स्किट्ज़ोफ्रीनिया में योगदान दे सकती हैं। न्यूरोइमेजिंग अध्ययनों से स्किट्ज़ोफ्रीनिया वाले लोगों के मस्तिष्क की संरचना और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में अंतर दिखाई देता है।
स्किट्ज़ोफ्रीनिया के पाँच अलग-अलग प्रकार हैं:
पैरानॉयड स्किट्ज़ोफ्रीनिया- यह स्किट्ज़ोफ्रीनिया का सबसे आम रूप है। इस स्थिति में, व्यक्ति में भ्रम, मतिभ्रम, अव्यवस्थित भाषण, ध्यान केंद्रित करने में परेशानी, व्यवहार संबंधी हानि और सपाट प्रभाव जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। पैरानॉयड स्किट्ज़ोफ्रीनिया में पीड़ित व्यक्ति को संदेह, जुनून या भ्रम की स्थिति बहुत ज्यादा होती है और ऐसी स्थिति में वह वैसा ही करने लगता है, जो उसे सही लगता है। इस स्थिति से पीड़ित व्यक्ति का व्यवहार अजीब तरह से हो सकता है और उसकी भावनात्मक प्रतिक्रियाएं भी ठीक नहीं होती है और सामान्य जीवन से उसका जुड़ाव बहुत कम दिखाई देता है।
हेबेफ्रेनिक स्किट्ज़ोफ्रीनिया- यह स्किट्ज़ोफ्रीनिया का एक प्रकार है जिसमें व्यक्ति को मतिभ्रम या भ्रम नहीं होता है, हालाँकि, उनका व्यवहार और भाषण अव्यवस्थित होता है। इस स्थिति के लक्षणों में सपाट प्रभाव, भाषण की गड़बड़ी, अव्यवस्थित सोच, अनुचित भावनाएँ या चेहरे की प्रतिक्रियाएँ और दैनिक गतिविधियों में परेशानी शामिल हैं। यह स्किट्ज़ोफ्रीनिया का वह रूप है जिसमें रोगी के भीतर भावनात्मक परिवर्तन, भ्रम और व्यवहार में बदलाव, गैर-जिम्मेदार और अप्रत्याशित व्यवहार जैसे लक्षण बिल्कुल सामान्य होते हैं। इन रोगियों का मन हमेशा उदास रहता है और कभी भी मौजूदा स्थिति से मेल नहीं खाता है। हालांकि रोगी कभी-कभी गर्व, मुस्कराहट, शरारत और आपकी होली गई बातों को दोहरा सकता है।
अविभेदित स्किट्ज़ोफ्रीनिया- यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति ऐसे व्यवहार प्रदर्शित करता है जो एक से अधिक प्रकार के स्किट्ज़ोफ्रीनिया पर लागू होते हैं। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति जिसका व्यवहार कैटेटोनिक है और उसे भ्रम या मतिभ्रम भी है, उस व्यक्ति को अविभेदित स्किट्ज़ोफ्रीनिया का निदान किया जाएगा।
अवशिष्ट स्किट्ज़ोफ्रीनिया- यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति को स्किट्ज़ोफ्रीनिया का पहले से ही निदान किया गया है, लेकिन अब उसमें विकार के कोई प्रमुख लक्षण नहीं हैं। इस स्थिति के लक्षणों में सपाट प्रभाव, मनोप्रेरक कठिनाइयाँ, धीमी गति से बोलना और खराब स्वच्छता शामिल हैं।
कैटेटोनिक स्किट्ज़ोफ्रीनिया- यह स्थिति खुद को विभिन्न प्रकार की मानसिक स्थितियों और सामान्य चिकित्सा स्थितियों में प्रस्तुत करती है। इस स्थिति के लक्षणों में नकल करने वाला व्यवहार, गूंगापन और स्तब्धता जैसी स्थिति शामिल है। कैटेटोनिक स्किट्ज़ोफ्रीनिया से पीड़ित व्यक्ति मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से बिल्कुल कुंद हो जाता है, इतना ही नहीं उसके चेहरे पर बहुत कम या फिर कोई चेहरे पर कोई भाव ही नहीं होता है। उदाहरण के तौर पर वे लंबे समय तक नहीं चल सकता। उसमें खाने, पीने या पेशाब जाने तक की भावना नहीं पैदा होती है। कभी-कभी कैटेटोनिया कई घंटों तक रहता है, जिसके कारण उनके अस्पताल जाने की नौबत तक आ जाती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के आंकड़ों के अनुसार, दुनिया में 20 लाख लोग स्किट्ज़ोफ्रीनिया से ग्रस्त हैं। और रोगों से तुलना की जाए तो भले ही इसके मामले कम हो लेकिन सिजोफ्रेनिका की व्यापकता अधिक है। चूंकि यह एक क्रॉनिक मानसिक बीमारी है इसलिए इसके प्रति वर्ष मामलों की संख्या बहुत कम होती है, लेकिन बहुत सारे लोग वर्तमान में इस स्थिति से पीड़ित हैं। स्किट्ज़ोफ्रीनिया के बारे में समाज के भीतर बहुत सारी गलत धारणाएं मौजूद हैं। बता दें कि स्किट्ज़ोफ्रीनिया का मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि पीड़ित की स्प्लिट पर्सनैलिटी है या फिर उसे मल्टीपल पर्सनैलिटी डिसऑर्डर है। स्किट्ज़ोफ्रीनिया से पीड़ित लोग न तो खतरनाक होते हैं और न ही हिंसक होते हैं, इनका बर्ताव सामान्य आबादी की ही तरह समान होता है। हालांकि कई बार ऐसे लोग सामाजिक मनोवृत्ति का शिकार हो जाते हैं। सही उपचार या रोगी की देखभाल में कमी रोग को बढ़ाने का काम करती है।
स्किट्ज़ोफ्रीनिया एक गंभीर मानसिक बीमारी है, जिसमें व्यक्ति को निरंतर अंतराल पर दौरे पड़ते हैं। स्किट्ज़ोफ्रीनिया से पीड़ित लोगो को बेहतर जीवन देने के लिए विभिन्न जैव-मनोवैज्ञानिक-सामाजिक रणनीतियों का उपयोग किया जा सकता है। अच्छा समर्थन, थेरेपी और उपचार से लोग के व्यवहार में बहुत सुधार दिखाई दे सकता है और वे हेल्दी जीवन जी सकते हैं।स्किट्ज़ोफ्रीनिया का कोई एक कारण नहीं है। ऐसा माना जाता है कि इस स्थिति के पीछे पर्यावरण और आनुवंशिक जैसे कुछ कारक योगदान देते हैं। स्किट्ज़ोफ्रीनिया के पीछे मुख्य कारण आनुवांशिक होता है और इस स्थिति के लिए मानसिक बीमारी से पीड़ित रोगी के रिश्तेदार भी इसी बीमारी से पीड़ित देखे जाते हैं। हालांकि, अन्य न्यूरोलॉजिक्ल कारक भी हैं जो इस स्थिति में योगदान देते हैं। स्किट्ज़ोफ्रीनिया की शुरुआत और रिकवरी में मनोवैज्ञानिक और परिवार का माहौल भी भूमिका निभा सकता है।
पूरे जीवनकाल में स्किट्ज़ोफ्रीनिया जैसी समस्या होने की संभावना लगभग 1% होती है। इसलिए ये कहा जा सकता है कि सौ में से सिर्फ एक व्यक्ति को ही अपने जीवनकाल में स्किट्ज़ोफ्रीनिया जैसी स्थिति का सामना करना पड़ता है। यह स्थिति पुरुषों और महिलाओं दोनों में समान रूप से प्रचलित है। पुरुषों में ये रोग आमतौर पर 10 से 25 वर्ष की आयु के बीच पाया जाता है जबकि महिलाओं में यह स्थिति 25 से 35 वर्ष की आयु के बीच अधिक आमतौर पर देखने को मिलती है।मादक पदार्थों का सेवन भी स्किट्ज़ोफ्रीनिया का एक महत्वपूर्ण कारण हो सकता है। वे लोग, जो नशा करते हैं उनमें नशा नहीं करने वालों की तुलना में स्किट्ज़ोफ्रीनिया का जोखिम छह गुना अधिक होने की संभावना रहती है।
स्किट्ज़ोफ्रीनिया जैसी स्थिति को रोका नहीं जा सकता है हालांकि इसके जोखिम को कम करने के लिए कुछ उपाय जरूर किए जा सकते हैं। नशे का प्रयोग और तनाव जैसे जोखिम कारक भी स्किट्ज़ोफ्रीनिया में योगदान कर सकते हैं, इसलिए इनसे बचना भी स्किट्ज़ोफ्रीनिया जैसी स्थिति के जोखिम को कम करता है। रोग का शुरुआत में ही पता लगाने और उचित देखभाल से इसे बढ़ने से रोका जा सकता है।इस स्थिति का पता लगाने का कोई निश्चित मेडिकल टेस्ट नहीं है। स्किट्ज़ोफ्रीनिया का पता रोगी की केस हिस्ट्री और उसके मानसिक हालात को देखकर ही लगाया जाता है। इस रोग का पता लगाने के लिए फुल साइकेट्रिक इवैल्युशेन, मेडिकल हिस्ट्री का मूल्यांकन और फिजिकल टेस्ट किए जाते हैं।
मरीज में किसी प्रकार के लक्षणों का पता लगाने के लिए लैब परीक्षणों का उपयोग भी किया जाता है। जरा भी असामान्य व्यवहार दिखने पर मनोचिकित्सकों से सम्पर्क करना चाहिए। भूत प्रेत, जादू टोना, तन्त्र प्रयोग के नाम पर तांत्रिकों, मांत्रिकों, ओझा, सोखा, झाड फूंक, के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए। अगर शुरुआत में ही इस रोग की पहचान और उसे कंट्रोल किया जाए तो स्किट्ज़ोफ्रीनिया का उपचार काम आ सकता है। मरीजों को अस्पताल या फिर मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों में भेजने से इस रोग को बढ़ने से रोकने में मदद मिल सकती है। अगर इस स्थिति को बिना उपचार के छोड़ दिया जाए या फिर सही मदद न मिले तो रोग के निम्नलिखित परिणाम हो सकते हैंः
1- सोच, तर्क और याददाश्त में कमी
2- आत्मघाती विचार
3- डिप्रेशन
4- काम करने में असमर्थता के कारण वित्तीय समस्याएं
5- रिश्ते-नाते खत्म हो जाना कनेक्शन खोना
5- एकांत में रहना
6- आक्रामक व्यवहार
हाल के आंकड़ों के अनुसार हर 1000 भारतीय में से लगभग तीन लोग स्किज़ोफ्रेनिया से पीड़ित हैं। वहीं साल 2010 में भारतीय मनोचिकित्सकों द्वारा किये एक सर्वे के अनुसार देश की पूरी जनसंख्या के लगभग 20% आबादी किसी न किसी मेंटल डिसऑर्डर से पीड़ित थे। सबसे ख़ास बात यह है कि इनमें से अधिकतर मरीज को यह एहसास ही नहीं है कि वे किसी बीमारी के शिकार हैं। इन सबके अलावा सबसे बुरी बात यह है कि मेंटल डिसीज को लेकर अपने देश में कई तरह की भ्रांतियां और मिथक हैं जिन्हें लोग सच मानते हैं।