जे.पी.सिंह, वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के विशेषज्ञ
फोटो: गिरीश शर्मा
बचपन में दादी नानी के मुंह से सुना था
“लईकन से त बोलब नाहीं ,जवान लगिहें भाई
बुठवन के हम खुबे सताइब केतनों ओठिहें रजाई”
उत्तर भारत में इस वक्त ठंड कहर ढा रही है। बच्चे हों जवान हों या बूढ़े हों बिना जैकेट और मोटे स्वेटर के घर से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं। हालांकि इस ठंड में भी कुछ लोग कम कपड़ों, केवल टी शर्ट, में ही घूम रहे होते दिखते हैं। इसके सबसे बड़े उदाहरण कांग्रेस नेता राहुल गांधी हैं। जिनकी दिल्ली में दिसंबर-जनवरी की ठंड में सिर्फ हाफ टी शर्ट और नंगे पांव घूमते हुए तस्वीरें वायरल हो ही हैं। इसके अलावा भारत जोड़ो यात्रा के दौरान पूरे देश ने राहुल गांधी को केवल टी शर्ट में देखा गया था। प्रयागराज में मेरे एक मित्र एलआईसी अधिकारी हैं जिन्हें वर्षों से मैं कड़ाके की ठंढ में गर्मियों के कपडे में देखता रहा हूं। ऐसे में सवाल ये उठता है कि भला इन्हें ठंड लगती ही नहीं है या फिर वो इसे सहने की क्षमता रखते हैं। दुनिया में ऐसे लोगों की संख्या कुल जनसंख्या की 18 से 20 प्रतिशत के बीच है।
अब सवाल यह है कि इन्हें ठंड क्यों नहीं लगती? इस अजीबोगरीब सवाल पर वैज्ञानिकों ने काफी वक्त तक रिसर्च की है, तब जाकर ये पता चल सका है कि हममें से ही कुछ लोग ऐसे क्यों होते हैं, जिन्हें सर्दी के मौसम में भी ठंड क्यों नहीं लगती।
वैज्ञानिकों के अनुसार शरीर में गहरे कुछ तंत्रिका कोशिका रिसेप्टर्स तापमान के अलावा अन्य संकेतों से उत्तेजित होते हैं। ये कोशिकाएँ कभी भी त्वचा के पास के पर्यावरणीय संकेतों के संपर्क में नहीं आती हैं, लेकिन रिसेप्टर्स से जड़ी होती हैं जो शरीर के भीतर हार्मोन, प्रोटीन और अन्य जैव रासायनिक यौगिकों से संवेदी इनपुट प्राप्त करती हैं।
यूं तो हमारे शरीर के नर्वस सिस्टम में नर्व सेल रिसेप्टर्स का एक खास सेट होता है, जो पर्यावरण के बदलाव के आधार पर ही अपने शरीर को काम करने का निर्देश देता है, लेकिन इन रिसेप्टर्स के काम को कुछ जेनेटिक म्यूटेशन प्रभावित कर सकते हैं। साल 2021 में एक शोध में पता चला कि रिसेप्टर्स को प्रभावित करने वाले जेनेटिक म्यूटेशन गर्म और ठंड के प्रति हद दर्जे तक की सहनशीलता पैदा कर सकते हैं। अमेरिकन जर्नल ऑफ ह्यूमन जेनेटिक्स में प्रकाशित रिसर्च बताती है कि ऐसा इंसान के फास्ट-ट्विच स्केलेटल मसल फाइबर में ए-एक्टिनिन-3 नाम के प्रोटीन के अभाव की वजह से होता है।
ए-एक्टिनिन-3 प्रोटीन को स्पीड जीन के तौर पर भी जाना जाता है।ये प्रोटीन अल्फा-एक्टिनिन-3 को एनकोड करता है, जो शक्तिशाली मांसपेशियों के संकुचन को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाता है। ये सिर्फ फास्ट ट्विच मसल फाइबर में पाया जाता है। इस प्रोटीन की कमी से मांसपेशियों की बीमारी नहीं होती हैं।. करोलिंस्का इंस्टीट्यूट के फिजियोलॉजी और फार्माकोलॉजी डिपार्टमेंट के रिसर्चर्स का मानना है कि कुछ लोगों में ACTN-3 की कमी उनके कंकाल के मसल थर्मोजेनेसिस में बदलाव कर देती है और ये लोग ठंड के दौरान अपने शरीर के तापमान को बनाए रखते हैं। हालांकि ऐसा दुनिया की 800 करोड़ की आबादी में से सिर्फ 150 करोड़ लोगों में ही होता है।
सबसे पहले यह समझना जरुरी है कि ठंड क्यों लगती है। दरअसल, सर्दी के मौसम में तापमान लगातार गिरता जाता है। एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर का तापमान लगभग 98.7 डिग्री फ़ारेनहाइट होता है। यानी तापमान 37.05 डिग्री सेल्सियस रहा. लेकिन सर्दी के मौसम में बाहर का तापमान लगातार ऊपर-नीचे होता रहता है। कभी 10 डिग्री, कभी 15 डिग्री तो कभी 5-6 डिग्री. यानी शरीर के बाहर का तापमान शरीर के तापमान से कम होता है।
हाइपोथैलेमस हमारे शरीर के तापमान को नियंत्रित करता है। यह हमारे मस्तिष्क का एक छोटा सा हिस्सा है, जो तंत्रिका तंत्र और हार्मोन के बीच संचार बनाए रखता है। शरीर की धड़कन, तापमान, भूख-प्यास, हमारा मूड सब यहीं से तय होता है। हाइपोथैलेमस आपके वर्तमान तापमान की जाँच करता है और इसकी तुलना बाहरी तापमान से करता है। अब जब ऐसा होता है तो हमारे शरीर से गर्मी निकल जाती है और हमें ठंड लगती है।
अब सवाल है कि हर किसी को एक जैसी ठंड क्यों नहीं लगती? इसके 5 प्रमुख वैज्ञानिक कारण हैं कि क्यों कुछ लोगों को कम ठंड लगती है और दूसरों को अधिक।
आधारीय चयापचयी दर: इसका मतलब यह है कि अगर कोई व्यक्ति शारीरिक रूप से सक्रिय है यानी योग या व्यायाम करता है, तो उसे ठंड कम लगती है। लेकिन दूसरी ओर, जो व्यक्ति शारीरिक रूप से निष्क्रिय है उसे व्यायाम करने वाले व्यक्ति की तुलना में अधिक ठंड लगती है।ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शारीरिक रूप से सक्रिय व्यक्ति की मांसपेशियां सक्रिय रहती हैं और ऊर्जा का सही उपयोग कर पाती हैं। जिससे शरीर में गर्मी बनी रहती है।
शरीर में वसा का वितरण: शरीर में कम वसा वितरण वाले लोगों को ठंड लगती है क्योंकि वसा एक इन्सुलेटर की तरह काम करता है, इसलिए अधिक वसा वाले लोगों में ठंडे तापमान से बेहतर प्राकृतिक इन्सुलेशन होता है।
आनुवंशिकता: आपको ठंड कैसे लगती है, इसमें आपके जीन भी भूमिका निभाते हैं। कुछ लोगों का शरीर स्वाभाविक रूप से गर्मी को बेहतर ढंग से झेलता है, जबकि अन्य को सर्दी आसानी से लग जाती है।
हार्मोनल बदलाव और उम्र का असर: मासिक धर्म या रजोनिवृत्ति के दौरान, हार्मोनल परिवर्तन के कारण महिलाओं को अधिक ठंड महसूस हो सकती है। बढ़ती उम्र के साथ शरीर की तापमान नियंत्रित करने की क्षमता कमजोर हो जाती है, इसलिए बुजुर्गों को ठंड अधिक लगती है।
बीमारी: किसी भी बीमारी से पीड़ित लोगों को सर्दियों में बहुत ठंड लगती है। उदाहरण के लिए, हाइपोथायरायडिज्म और एनीमिया से पीड़ित लोगों को ठंड लगने की संभावना अधिक होती है।कमजोर थायरॉयड ग्रंथि चयापचय को धीमा कर देती है, जिससे अधिक ठंड महसूस होती है।खून में आयरन की कमी होने पर ऑक्सीजन की आपूर्ति कम हो जाती है, जिससे शरीर को ठंड लगने लगती है।रेनॉड की बीमारी की स्थिति में, ठंड के संपर्क में आने पर उंगलियों और पैर की उंगलियों की नसें सिकुड़ जाती हैं, जिससे सुन्नता और ठंडक महसूस होती है।
हमारा शरीर बहुत सारे जीन से मिलकर बना है। अपने जीन के हिसाब से हम अलग-अलग तरह से व्यवहार करते हैं। वहीं खानपान और परिवेश बहुत हद तक हमारे व्यवहार का नियंत्रित करता है। इसके बावजूद कुछ ऐसी चीजें होती हैं, जो बिल्कुल कॉमन हैं। यानी जनवरी के इस ठिठुरते दिन में आपको भी ठंड लगेगी ही। फिर चाहें आप बादाम उबाल कर खाएं या हर रोज चिकन सूप पिएं। दिसंबर अंत से ही पूरे उत्तर भारत में शीत लहर चलने लगी है और लोग ठंड से सिकुड़ रहे हैं,सर्दी जुखाम खांसी गला बैठने और फ्लू का शकर बन रहे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है हमारे तंत्रिका तंत्र में मौजूद गर्म और ठंडे रिसेप्टर्स के माध्यम से तापमान को महसूस किया जाता है। शरीर में वसा प्रतिशत, मांसपेशियों के प्रकार के फाइबर, समग्र शारीरिक स्वास्थ्य और कंडीशनिंग यह निर्धारित करते हैं कि एक व्यक्ति को बहुत कम या ज्यादा ठंड लग सकती है। कभी-कभी कुछ लोगों को बिल्कुल ठंड नहीं लगती।”
दरअसल, ठंड सहिष्णुता एक बहु-तथ्यात्मक घटना है, जिसके कई पहलुओं को हम अभी तक अच्छी तरह से नहीं समझ पाए हैं। एक व्यक्ति को ठंड या गर्मी महसूस होना निश्चित रूप से परिवेश के वातावरण पर निर्भर करता है, लेकिन आनुवंशिकी और जीव विज्ञान इसमें बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
विभिन्न शोध अब तक इस बारे में ठीक से कुछ भी समझ नहीं पाए हैं कि क्यों एक ही कमरे में बैठे दो व्यक्तियों में से एक को गर्मी या सर्दी ज्यादा लगती है, जबकि दूसरा वहां पूरी तरह आराम से बैठा होता है। इसे समझने के लिए वर्ष 2004 में फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन किया, जिसे जर्नल ऑफ न्यूरोसाइंस में प्रकाशित किया गया।
शोधकर्ताओं ने पाया कि त्वचा के नीचे स्थित परिधीय तंत्रिका तंत्र में मौजूद गर्म और ठंडे तंत्रिका कोशिका रिसेप्टर्स आपको अपने आसपास के तापमान को पहचानने में मदद करते हैं। यही वे रिसेप्टर्स हैं, जो आपको किसी गर्म चीज से टच होने पर हाथ वापस खींचने के लिए प्रेरित करते हैं, वहीं ठंंड के मौसम में यही रिसेप्टर्स आपको हथेलियां रगड़कर गर्मी पैदा करने के लिए प्रेरित करते हैं। वास्तव में ये इतने तीव्र होते हैं कि ठंड महसूस होने पर आपकी रीढ़ की हड्डी को भी ठंडा कर देते हैं।
2021 के अध्ययन से पता चला है कि जिन लोगों की मांसपेशियों में अल्फा-एक्टिनिन-3 नामक प्रोटीन की कमी होती है, वे बर्फीले वातावरण में कम कांपते हैं और उनके शरीर का आंतरिक तापमान अधिक बना रहता है।50,000 वर्ष से भी अधिक पहले जब मानव ने अफ्रीका से यूरोप के ठंडे क्षेत्रों की ओर प्रवास करना शुरू किया, तो जीन उत्परिवर्तन अधिक आम हो गया।कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट के अध्ययन लेखकों में से एक हाकन वेस्टरब्लैड ने कहा, “हमारे अध्ययन से पता चलता है कि अल्फा-एक्टिनिन-3 की कमी वाले लोगों में ठंड के प्रति सहनशीलता बढ़ जाती है, जो ठंडे मौसम में जिस कारण विकासवादी उत्तरजीविता का लाभ होता है।”