
- जे.पी.सिंह
वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के विशेषज्ञ
सपिण्डी विवाह निषिद्ध, पर दक्षिण में तेजी से बढ़ रहा चचेरे-ममेरे भाई-बहनों में शादी का चलन
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत, सपिण्डी विवाह को स्पष्ट रूप से निषिद्ध किया गया है। धारा 5(व) के अनुसार, यदि दो हिंदू सपिण्डी संबंध में हैं, तो उनकी शादी शून्य मानी जाती है, जब तक कि स्थापित रीति-रिवाज इसे अनुमति न दें। सपिण्डी संबंध की परिभाषा धारा 3(एफ) में दी गई है, जिसमें कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति पिता की ओर से पांच पीढ़ियों (समावेशी) या माता की ओर से तीन पीढ़ियों (समावेशी) के भीतर किसी अन्य व्यक्ति का रेखीय वंशज है, तो वे सपिण्डी माने जाते हैं। उदाहरण के लिए, यदि दुल्हन दूल्हे के पिता की ओर से पांच पीढ़ियों के भीतर की वंशज है, तो यह संबंध सपिण्डी माना जाएगा और विवाह निषिद्ध है।
देश में संविधान बनने के बाद लोगों को कुछ मौलिक अधिकार दिए गए। विवाह भी मौलिक अधिकारों के तहत ही कर सकते हैं। कोई भी लड़का-लड़की अपने पसंद से एक दूसरे से विवाह कर सकते हैं। इसमें जात-धर्म या क्षेत्र बाधा नहीं बन सकते। लेकिन देश में कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जिनमें शादी नहीं हो सकती। इन्हें ‘सपिण्ड विवाह’ कहते हैं। मौलिक अधिकार होने के बावजूद भी कोई इन रिश्तों में शादी नहीं कर सकता। इस कानूनी ढांचे को पूरे भारत में लागू किया गया है, जिसमें दक्षिण भारत भी शामिल है। उत्तर भारत में इस तरह के विवाह नहीं हो रहे हैं जबकि दक्षिण भारत में हिंदू, मुस्लिम, ईसाई हर समुदाय में इस तरह के विवाह का चलन जोर पकड़ रहा है।
अभी तक आम धारणा है कि मुस्लिम समुदाय में केवल सगे भाई-बहन को छोड़कर किसी से भी शादी की जा सकती है, यानी दूध के रिश्ते के अलावा आप किसी भी शख्स जैसे मामा का लड़का, चाचा का लड़का, मौसी का लड़का, किसी से भी निकाह यानि विवाह कर सकते हैं। लेकिन ऐसा केवल मुस्लिमों में ही नहीं हो रहा बल्कि दक्षिण भारत में ममेरे-चचेरे भाई बहनों में आपस में शादी करने का ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है। यहां केवल बात केवल मुस्लिमों की नहीं है दक्षिण भारत के लगभग हर धर्म और मजहब के लोग ऐसा कर रहे हैं।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की एक रिपोर्ट सामने आई है जिसमें बताया गया है कि पिछले कुछ सालों में दक्षिण भारत में हिंदू और बौद्ध समुदाय में अपने चचेरे भाई बहनों से शादी करने का चलन यानी सपिण्डी विवाह काफी तेजी से बढ़ा है। रिपोर्ट के अनुसार जहां पूरे भारत में परिवार के अंदर कजिन या दूसरे खून के रिश्ते में शादी के आंकड़े लगभग 11% हैं जबकि दक्षिण भारत के राज्यों में से केवल चार बढ़े राज्यों में यह आंकड़ा इस आंकड़े का ढाई गुना है ।नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-5) की रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण भारत के राज्य तमिलनाडु में सबसे ज्यादा 28% कजिन मैरिज हुए हैं। वहीं कर्नाटक में 27%, आंध्र में 26%, पुडुचेरी में 19% और तेलंगाना में 18% शादियां अपने ही परिवार के अंदर हुई हैं। वहीं दक्षिण भारत का केरल ऐसा राज्य है जहां कजिन मैरिज का राष्ट्रीय औसत काफी कम महज 4.4% है।
दरअसल, उत्तर भारत और दक्षिण भारत की संस्कृति में बहुत ज्यादा भिन्नता है। दोनों जगह के लोगों की सोच और जीवन यापन का तौर तरीका एक-दूसरे से बिल्कुल उलट है। उत्तर भारत में एक ही परिवार में कम शादियां होने का एक कारण गोत्र है। यहां एक जाति में तो शादी हो सकती है लेकिन एक गोत्र में नहीं। यहां के लोग मानते हैं कि एक गोत्र वाले लोगों के पूर्वज भी एक ही होते हैं, लेकिन दक्षिण भारत में गोत्र के आधार पर शादी का ट्रेड नहीं है।
अधिक जन्म दर के कारण भारत एक विशाल जनसंख्या वाला देश है। देश के कुछ हिस्सों में पारिवारिक संबंधों या एक ही समुदाय में विवाह की प्रथा प्रचलित है। इन्हीं कारणों से हमारे देश में आनुवांशिक (जेनेटिक) विकार अत्यधिक प्रचलित हैं। डाउन सिंड्रोम, थैलेसीमिया और मस्कुलर डिस्ट्रॉफी आदि आमतौर पर देखे जाने वाले आनुवंशिक विकार हैं। यह आम धारणा है कि आनुवंशिक विकार केवल उसी बच्चे में देखे जा सकते हैं, जिसके परिवार में किसी को आनुवांशिक विकार हो, लेकिन यह एक गलत धारणा है। क्योंकि किसी अन्य के प्रभावित हुए बिना भी जन्म से पूर्व प्रत्येक बच्चे को आनुवांशिक विकार का खतरा हो सकता है। इसके कारणों में मां की आयु 35 वर्ष या उससे अधिक, एक या अधिक गर्भपात, जन्म के बाद या गर्भाशय में शिशुओं की अस्पष्टीकृत मृत्यु, बिना किसी कारण के मानसिक व शारीरिक विकास में विलंब आदि शामिल हैं।
यही नहीं सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी के वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पता लगाया है कि सगोत्रीय विवाह से ऐसे लड़के के जन्म की आशंका बढ़ जाती है, जो पैदाइशी नपुंसक हो। धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि सगोत्रीय विवाह होने पर नपुंसक संतान पैदा होने की आशंका कई गुना बढ़ जाती है। हिंदू धर्मशास्त्रों में सगोत्रीय विवाह या सपिण्ड विवाह को वर्जित माना गया है। ऋग्वेद के 10 वें मंडल के 10 वें सूक्त में जुड़वां भाई बहन यम और यमी की बातचीत का जिक्र आता है।यमी अपने सगे भाई यम से विवाह कर संतान पैदा करने की इच्छा जाहिर करती है। लेकिन यम यह कहते हुए इनकार कर देते हैं कि ऐसा विवाह प्राकृतिक नियमों के खिलाफ है, और ऐसा करना पाप की श्रेणी में आता है। पाणिनी ने अष्टाध्यायी में बताया है कि एक व्यक्ति के पोते पड़पोते समेत जितनी भी संतान होगी, वो एक ही गोत्र की कही जाएंगी। धर्मग्रंथों के मुताबिक सगोत्र विवाह से शारीरिक व्याधि, अल्पायु, कम बुद्धि, रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी और विकलांगता जैसी समस्याओं की आशंका बढ़ जाती है। सपिण्ड विवाह उन दो लोगों के बीच होता है जो आपस में खून के बहुत करीबी रिश्तेदार होते हैं।
हिंदू मैरिज एक्ट में, ऐसे रिश्तों को सपिण्ड कहा जाता है। इनको तय करने के लिए एक्ट की धारा 3 में नियम दिए गए हैं। धारा 3(f)(ii) के मुताबिक, ‘अगर दो लोगों में से एक दूसरे का सीधा पूर्वज हो और वो रिश्ता सपिण्ड रिश्ते की सीमा के अंदर आए, या फिर दोनों का कोई एक ऐसा पूर्वज हो जो दोनों के लिए सपिण्ड रिश्ते की सीमा के अंदर आए, तो दो लोगों के ऐसे विवाह को सपिण्ड विवाह कहा जाएगा। हिंदू मैरिज एक्ट के हिसाब से, एक लड़का या लड़की अपनी मां की तरफ से तीन पीढ़ियों तक किसी से शादी नहीं कर सकता/सकती। मतलब, अपने भाई-बहन, मां-बाप, दादा-दादी और इन रिश्तेदारों के रिश्तेदार जो मां की तरफ से तीन पीढ़ियों के अंदर आते हैं, उनसे शादी करना पाप और कानून दोनों के खिलाफ है। बाप की तरफ से ये पाबंदी पांच पीढ़ियों तक लागू होती है। यानी आप अपने दादा-परदादा आदि जैसे दूर के पूर्वजों के रिश्तेदारों से भी शादी नहीं कर सकते/सकतीं। यह सब इसलिए है कि बहुत करीबी रिश्तेदारों के बीच शादी से शारीरिक और मानसिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
हालांकि, कुछ खास समुदायों में अपने मामा-मौसी या चाचा-चाची से शादी करने का रिवाज होता है, ऐसे में एक्ट के तहत उस शादी को मान्यता दी जा सकती है। पिता की तरफ से ये शादी को रोकने वाली पाबंदी परदादा-परनाना की पीढ़ी तक या उससे पांच पीढ़ी पहले तक के पूर्वजों के रिश्तेदारों तक जाती है। मतलब, अगर आप ऐसे किसी रिश्तेदार से शादी करते हैं जिनके साथ आपके पूर्वज पांच पीढ़ी पहले तक एक ही थे, तो ये शादी हिंदू मैरिज एक्ट के तहत मानी नहीं जाएगी। ऐसी शादी को “सपिण्ड विवाह” कहते हैं और अगर ये पाई जाती है और इस तरह की शादी का कोई रिवाज नहीं है, तो उसे कानूनी तौर पर अमान्य घोषित कर दिया जाएगा। इसका मतलब है कि ये शादी शुरू से ही गलत थी और इसे कभी नहीं हुआ माना जाएगा।
सपिण्ड शादी पर रोक में एक ही छूट है और वो भी इसी नियम के तहत ही मिलती है। जैसा कि ऊपर बताया गया है, अगर लड़के और लड़की दोनों के समुदाय में सपिण्ड शादी का रिवाज है, तो वो ऐसी शादी कर सकते हैं। हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 3(a) में रिवाज का जिक्र करते हुए बताया गया है कि एक रिवाज को बहुत लंबे समय से, लगातार और बिना किसी बदलाव के मान्यता मिलनी चाहिए। साथ ही, वो रिवाज इतना प्रचलित होना चाहिए कि उस क्षेत्र, कबीले, समूह या परिवार के हिंदू मानने वाले उसका पालन कानून की तरह करते हों। दिल्ली उच्च न्यायालय ने नीतू ग्रोवर बनाम भारत संघ और अन्य, 2024 के मामले में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 5 (v) की संवैधानिकता की चुनौती खारिज कर दी है, जो दो हिंदू लोगों के एक दूसरे के “सपिण्ड” होने की स्थिति में उनके विवाह पर रोक लगाती है। अदालत ने ये माना कि सपिंडा विवाह को रोकने वाला हिंदू मैरिज एक्ट का नियम सही है।
कई यूरोपीय देशों में ऐसे रिश्तों के लिए कानून भारत की तुलना में कम सख्त हैं जिन्हें भारत में गैर-कानूनी संबंध या सपिण्ड विवाह माना जाता है। जैसे कि फ्रांस में, साल 1810 के पीनल कोड के तहत व्यस्कों के बीच आपसी सहमति से होने वाले इन रिश्तों को गैर-अपराध बना दिया गया था। यह कोड नेपोलियन बोनापार्ट के शासन में लागू किया गया था और बेल्जियम में भी लागू था। हालांकि, साल 1867 में बेल्जियम ने अपना खुद का पीनल कोड बना लिया, लेकिन वहां आज भी इस तरह के रिश्ते कानूनी रूप से मान्य हैं। पुर्तगाल में भी इन रिश्तों को अपराध नहीं माना जाता। आयरलैंड गणराज्य में 2015 में समलैंगिक विवाह को मान्यता तो दी गई, लेकिन इसमें ऐसे रिश्ते शामिल नहीं किए गए। इटली में ही ये रिश्ते सिर्फ तभी अपराध माने जाते हैं जब ये समाज में हंगामा मचाए। अमेरिका में बात थोड़ी अलग है। वहां के सभी 50 राज्यों में सपिंडा जैसी शादियां अवैध हैं। हालांकि, न्यू जर्सी और रोड आइलैंड नाम के दो राज्यों में अगर व्यस्क लोग आपसी सहमति से ऐसे रिश्ते में हैं तो इसे अपराध नहीं माना जाता।
दक्षिण भारत में, विशेष रूप से तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में, कुछ समुदायों में क्रॉस-कजिन विवाह की लंबे समय से परंपरा रही है। इन विवाहों को स्थानीय रीति-रिवाजों के तहत सपिण्डी संबंध नहीं माना जाता, भले ही कानूनी रूप से वे सपिण्डी श्रेणी में आ सकते हैं। यह अप्रत्याशित हो सकता है कि कानून और रीति-रिवाज के बीच इस तरह का अंतर दक्षिण भारत में मौजूद है, जहां पारिवारिक संबंधों को अक्सर सामाजिक रूप से स्वीकार्य माना जाता है।कई समुदायों, विशेष रूप से तमिलनाडु, केरल, और आंध्र प्रदेश में, क्रॉस-कजिन विवाह की लंबे समय से परंपरा रही है। क्रॉस-कजिन विवाह का मतलब है कि एक पुरुष अपनी पिता की बहन की बेटी (पिता की भांजी) या माता के भाई की बेटी (मामा की बेटी) से विवाह कर सकता है। इन समुदायों में, इस तरह के विवाह को सामाजिक रूप से स्वीकार्य और वांछनीय माना जाता है, और इसे स्थानीय रीति-रिवाजों के तहत सपिण्डी संबंध नहीं माना जाता। तमिलनाडु में, यह प्रथा विशेष रूप से प्रचलित है, और इसे परिवार के भीतर मजबूत बंधन बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
इसी तरह, केरल में भी कुछ समुदायों में इस तरह के विवाह सामान्य हैं। इन प्रथाओं को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 3(ए) के तहत “रीति-रिवाज” के रूप में मान्यता दी जा सकती है, जो कहती है कि यदि कोई नियम लंबे समय से किसी स्थानीय क्षेत्र में हिंदुओं द्वारा लगातार और एकसमान रूप से पालन किया जाता है और विवाह के मामलों में इसे शासक माना जाता है, तो इसे रीति-रिवाज माना जाएगा।
धार्मिक, वैज्ञानिक और परम्पराओं को आधार बनाकर किया गया विश्लेषण बेहद शानदार है।