घटिया रील्स से नजरें हटाकर बाहर देखिए तो…

आलेख एवं फोटो- पूजा सिंह

स्‍वतंत्र पत्रकार

महिलाओं को लेकर समाज में कई मिथ हैं। मसलन, औरतें मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर होती हैं, भावुक होती हैं, उनको रोना-धोना अधिक पसंद है, वे पुरुषों को रिझाने के लिए सजती-संवरती हैं, लड़की के हंसकर बात करने का अर्थ है कि वह सामने वाले को कोई ‘सिग्नल’ दे रही है वगैरह…वगैरह। ऐसी धारणाओं के बनने के पीछे यकीनन ऐतिहासिक और सामाजिक कारण भी हैं लेकिन अब वक्त बदल रहा है और पुरुषों को भी अपनी राय बदलने की जरूरत है।

स्त्री और पुरुष, भले ही इन्हें एक गाड़ी के दो पहिये कहा जाता हो लेकिन वास्तव में उनके स्वभावों में बहुत अंतर होता है जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती है। उनके स्वभाव के अंतर को देखकर ही कहा गया होगा कि ‘मेन आर फ्रॉम मार्स एंड वुमेन आर फ्रॉम वीनस’ यानी पुरुष अगर मंगल ग्रह से हैं तो औरतें शुक्र ग्रह से। दो विपरीत ग्रहों के ये वासी धरती पर एक साथ रहेंगे तो समस्याएं भी होंगी। ऐसे में गलतफहमियों का होना भी स्वाभाविक है। आइए जानते हैं कुछ ऐसी बातें जिन्हें सदियों से महिलाओं के बारे में सच माना जा रहा है लेकिन जिनका हकीकत से कोई वास्ता नहीं।

राजा की आएगी बारात, रंगीली होगी रात…

हम लड़कियों की मुश्किलें बढ़ाने में हिंदी फिल्मों ने कम भूमिका नहीं निभाई है। हिंदुस्तानी अवाम के दिलो-दिमाग पर गहरा असर डालने वाली इन फिल्मों ने लोगों के मन में हमारी कुछ ऐसी छवि बना दी है कि जैसे हम घोड़े पर सवार होकर हमें लेने आने वाले किसी प्रिंस चार्मिंग के हसीं खयालों में खोए रहते हैं।

ना जी ना। आपको क्या लगता है हमारे जिम्मे मोहब्बत और शादी के सिवाय कोई काम नहीं करने को। घटिया रील्स से नजरें हटाकर बाहर देखिए। लड़कियां ओलिंपिक्स में मेडल ला रही हैं, सीमा पर जंग लड़ रही हैं, ट्रक चला रही हैं और अंतरिक्ष में जा रही हैं। सुनीता विलियम्स का नाम सुना है? वो नौ महीने से इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर फंसी हुई हैं और दुनिया का सबसे ताकतवर मुल्क जिसकी वह बाशिंदा हैं, उसका राष्ट्रपति कल ही उन्हें ‘अजीब बालों वाली औरत’ कह रहा था।

सजना है मुझे…सजना के लिए

माफ कीजिएगा सर, ये कोई सोशल सर्विस नहीं है। पता नहीं आप लोगों को कब और क्यों यह लगने लगा कि हम लड़कियों के सजने-संवरने का बस एक ही मकसद है-अपने सो कॉल्ड प्रियतम को रिझाना। अरे भई और भी गम हैं जमाने में मुहब्बत के सिवा।

इसमें शक नहीं कि हमें सजना-संवरना अच्छा लगता है लेकिन वह हमारे लिए, हमारी खुशी के लिए होता है न कि आपके या किसी और के लिए। हम सजते हैं क्योंकि उससे हमें खुशी मिलती है, हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है। हमारी तारीफ होती है तो हमें अच्छा महसूस होता है। आपको आंख सेंकनी है तो किसी अंगीठी के पास जाइए। हमें बख्श दीजिए।

कोएड एडुकेशन संस्थान हों या वर्क प्लेस। लड़कों को यह समझाना मुश्किल है कि हंसकर बात करने का यह मतलब नहीं कि हम उनमें दिलचस्पी रखते हैं। ‘लड़की हंसी तो लड़की फंसी’ ये सिनेमाई और कस्बाई अवधारणा (जो गलत थी) अपनी उम्र पूरी कर चुकी है। अब इसे भूल जाओ। न तो आप शिकारी हो न हम शिकार, दोनों बराबर इंसान हैं।

तू चंदा मैं चांदनी, तू तरुवर मैं छांव रे…

रेशमा और शेरा फिल्म का यह गीत यकीनन किसी पुरुष ने लिखा होगा। तभी तो वह आदमी को चांद और वृक्ष तथा औरत को चांदनी और छांव बता रहा है। अरे दोस्तों कब तक औरतों को सबऑर्डिनेट यानी अधीनस्थ मानते रहोगे आप सब? औरतों को मन ही मन टॉप जॉब के लिए उपयुक्त नहीं मानना भी जेंडर बायस का उदाहरण ही है। आपको लगता है कि नर्म स्वभाव और आक्रामक न होने के कारण औरतें कंपनियों और वर्क प्लेस में शीर्ष पदों पर नहीं बैठ सकतीं।

सच इसके उलट है। बचपन से ही घरेलू जिम्मेदारियां संभाल रही महिलाओं में प्रबंधन की क्षमता पुरुषों के मुकाबले अधिक होती है। नैसर्गिक विनम्रता उनको अपने सहयोगियों और कर्मचारियों का भरोसा जीतने में मदद करती हैं और वे उनको साथ लेकर आगे बढ़ती हैं। कहा जाता है कि महिलाओं को परिवार और करियर के दो मोर्चो पर जूझना पड़ता है इसलिए वे करियर को लेकर गंभीर नहीं होती हैं। लेकिन ऐसा हरगिज नहीं है। इस बात को एक दूसरे पहलू से देखें तो तस्वीर ज्यादा साफ नजर आती है। अगर कोई महिला पारिवारिक जिम्मेदारियां संभालते हुए भी अपने करियर को आगे बढ़ा रही है तो इससे साफ जाहिर होता है कि वे करियर को लेकर गंभीर होने के कारण ही दोहरी मेहनत कर रही हैं।

चलिए टॉप जॉब्स संभाल रही कुछ महिलाओं के नाम लेते चलते हैं: टॉप बायोटेक कंपनी बॉयकॉन की प्रमुख किरण मजुमदार शॉ, टॉप फैशन ब्रांड नायका की प्रमुख फाल्गुनी नायर, कमानी ट्यूब्स की प्रमुख कल्पना सरोज, जिंदल ग्रुप की चेयरपर्सन सावित्री जिंदल…लिस्ट लंबी है दोस्तों।

तू ले आ दे मैनु गोल्डन झुमके…

ऊपर वाली पंक्ति से शुरू होने वाला यह फिल्मी गीत… मैनु शॉपिन्ग करा दे रे पर खत्म होता है। कुड़ी मैनु केन्दी मैनु जुत्ती ले दे सोणिया, कुड़ी केंन्दी बेबी पहले जगुआर ले लो, फिर जिन्न मर्जी प्यार ले लो….महिलाओं को लालची और पैसे या चीजों के बदले प्यार देने वाली यानी गोल्डडिगर ठहराने वाले गानों की एक अंतहीन शृंखला है। ऐसे गीतों के तार ‘करवा चौथ’ जैसे त्योहारों से जुड़े हुए हैं जो तोहफों के बाजार से संचालित हैं। ऊपर के गानों में जिन चीजों का जिक्र है, आधुनिक स्वतंत्र स्त्री उन्हें खुद खरीद सकती है। हां, पति और प्रेमी तोहफे दे सकते हैं लेकिन लड़कियों को ये क्यों सिखाया जा रहा है कि प्यार के बदले ये तोहफे मांगो।

स्त्री की यह कैसी छवि रची जा रही है कि वह पुरुषों के सामने गिड़गिड़ा रही है, चीजों के बदले प्यार देने को कह रही है। आश्चर्य नहीं कि कम उम्र किशोरियां इन्हीं गानों और विज्ञापनों को देखते हुए कंडीशंड होने लगती हैं। संस्कारी और धार्मिक दिखने का दबाव तो है ही। नतीजा, ज्वेलरी, साड़ी मेकअप और शॉपिंग के इतर सोचना मना। यह सब भी खुद कमाकर नहीं खरीदना है, प्यार के बदले यार से लेना है। इससे समय बच जाए तो व्रत-उपवास और घरेलू कामों में लगा दो। यह सब इस तरह किया जाता है कि औरतों को लगता है अपनी मर्जी से कर रही हैं।

डॉक्टर बन जाइये, इंजीनियर बन जाइये, एस्ट्रॉनॉट बन जाइये, एथलीट बन जाइये लेकिन आपको कसा जायेगा उन्हीं कसौटियों पर- खाना, बच्चा, व्रत-उपवास।

मैं कमजोर औरत…ये मेरी कहानी

इस गाने की अगली लाइन है- मेरे आंसुओं से है गंगा में पानी। कवि मैथिली शरण गुप्त की एक कविता भी है- अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आंचल में है दूध और आंखों में पानी। ऐसे गीतों ने एक माइंड सेट तैयार किया है। हकीकत तो यह है कि महिलाएं खुद को कतई कमजोर नहीं मानतीं। वे मजबूत और सक्षम हैं।

आप लोगों से आग्रह है कि घरों में और दफ्तरों में भी उनके संरक्षक बनना बंद कर दीजिए। महिला रिपोर्टर है तो लाइफस्टाइल और एंटरटेनमेंट ही कवर करेगी। दफ्तर में बैठने वाले काम ही करेगी। उसे हर बात दो बार समझानी होगी। वह गणित और विज्ञान में कमजोर होगी। ये सब स्टीरियोटाइप्स अब अपने दिमाग से निकाल दीजिए।

आखिर में एक बात लड़कियों से भी। सुनो लड़कियों, अपने परिवेश, अपनी परवरिश के चलते खुद को पुरुषों से कमजोर मानना बंद कर दो। यह जंजीर तोड़ना तुम्हारी कामयाबी की दिशा में पहला कदम होगा। तुम्हें प्रकृति ने वह क्षमता दी है जो पुरुषों के पास कभी नहीं हो सकती। ईश्वर में विश्वास करने वाले मानेंगे कि ईश्वर के बाद एक स्त्री ही है जो सृष्टि को एक नया जीवन देने की क्षमता रखती है। तुम घर संभालती हो, वर्क प्लेस पर खा जाने को आतुर (हर जगह नहीं लेकिन काफी जगहों पर) पुरुषों की निगाहों के बीच खुद को बचाते हुए अपने काम करती हो। अपना घर छोड़कर एकदम अजनबी माहौल में आकर खुद को ढालती हो। अब वक्त आ गया है कि भूलकर भी खुद को कमजोर न मानो। संवेदनशील रहो, संवेदनशीलता बुरी नहीं है लेकिन आंसुओं की दुकान न बनो। मुश्किल हालात सबके सामने आते हैं, तुम्हारे सामने थोड़ा ज्यादा आएंगे, उनका सामना करो।

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