बंसीलाल परमार: जिनकी नजरों से हम दुनिया पहचानते हैं…

मध्‍यप्रदेश और राजस्‍थान की मिलन स्‍थली मालवा के सुवासरा को किसी शख्‍स के कारण जाना जाता है तो वह नाम है फोटोग्राफर बंसीलाल परमार। परमार जी पेशे से शिक्षक है और शौक से फोटोग्राफर। उनके पढ़ाने का तरीका जितना वैज्ञानिक था, फोटोग्राफी उतनी ही मानवीय दृष्टिकोण से पगी हुई। उनके फोटो में ग्राम्‍य जीवन है, हमारा आसपास है और एक चिंतन है। प्रकृति संरक्षण के प्रति उनकी चिंता फोटो में साफ जाहिर होती है तो जीवन मूल्‍यों के प्रति श्रद्धाभाव स्‍पष्‍ट गौचर होता है।

आइए, आज फिर बंसीलाल परमार जी की दृष्टि से अपनी दुनिया को देखें और समझें।

बकौल बंसीलाल परमार वे 17 जून 2004 को यानी अब से ठीक बीस साल पहले श्री ग्राम सेमलीकांकड़ (सुवासरा) में आयोजित जैविक कृषि कार्यशाला में गए थे। मुझे जाने का सौभाग्य मिला। कार्यशाला किसी भवन में नहीं इस इमली के पेड़ के नीचे आयोजित की गई थी। खेत के किनारे इसकी छाया में बहुत सुकून मिला था। आज हम ऐसे ही पेड़ और सुकून को तरसत हैं।

यह चित्र फोटोशॉप किया हुआ नहीं है। एक रेल्वे स्टेशन का चित्र है जिसका नाम मिटा दिया गया है। चित्र का संकेत क्‍या है, समझना मुश्किल नहीं है।

हमारी टेबल पर भी कभी चाय तो कभी दूध छलक जाता है लेकिन एक कलाकार की दृष्टि पड़े तो यह मायने पा जाता है।

यह फोटो गणतंत्र दिवस 2023 को ट्रेन से रतलाम जाते हुए लिया गया। बंसीलाल परमार लिखते हैं कि जब खेत में तिरंगा लहराता दिखा तो मैं गर्वोन्नत हो गया‌। देश का अन्नदाता तिरंगे का असली हकदार है।

संभव है, हम ऐसे दृश्‍यों को अनदेखा कर गुजर जाएं लेकिन चिंतक मन को नागदा जंक्शन पर यह गाड़ी देख कर खिल गया।

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