बोलते संगीत वाद्यों का चित्रकार नागनाथ मानकेश्वर

राघवेंद्र तेलंग, सुपरिचित कवि,लेखक,विज्ञानवेत्ता

महान चित्रकार,इंजीनियर लियोनार्दो दा विंची ने कहा है कि पेंटिंग दरअसल कविता है जिसे देखने की जरूरत है बनिस्बत कि उसे महसूस किया जाए,वहीं कविता दरअसल एक पेंटिंग है जिसे देखने की जगह महसूस किया जाना चाहिए।

चित्रकला या पेंटिंग कलाकार के चरित्र को प्रकट करती है,कलाकार जो बदले हुए नजरिए से अपने काम के अर्थ में योगदान देता है, इस प्रकार वास्तव में एक कृति को समझने के लिए,कलाकारों और उनके रहने-होने के समय के बारे में जानना उपयोगी होता है। मेरे जैसे मामूली कवि और एक कला प्रेमी के लिए यह भी उत्सुकता का विषय होता है कि सृजन की लंबी यात्रा में कलाकार के अपने इस जुनून-इस ऑब्सेशन के बने रहने के पीछे क्या वजहें रहीं ? कोशिश में रहता हूं कि कलाकारों के सान्निध्य से उनके-अपने जीवन के अनुभवों को साझा करूं ताकि मेरे लेखन को भी दिशा मिले!

कलाकार के शुरुआती मास्टर्स के बारे में भी जानने की मुझे बहुत उत्सुकता रहती है जिनके लाइनों/ स्ट्रोक्स का उसने सावधानीपूर्वक परीक्षण किया हो,जो कि अन्य समकालीन चित्रकारों की तुलना में उसके लिए अधिक विशिष्ट थे और इससे उस कलाकार ने अपने अलग हस्ताक्षर कैसे निर्मित किए ?

विगत दिनों एक ऐसी पेंटिंग या कहूं चित्रकृति पर नजर ठिठक गईं जिसमें प्रदर्शित कम हो रहा था मगर जो छुपे हुए अर्थ वह पेंटिंग बताना चाह रही थी उसकी आवाज मुझ तक जाने कैसे पहुंच गई कह नहीं सकता। हां! इससे हुआ यह कि इतना सब हंसध्वनि कॉलम में लिखा जरूर गया।

यह एक सेक्सोफोन वादक की पेंटिंग है जिसमें फोकस सेक्सोफोन पर और उसकी ऊंगलियों पर है। दिलचस्प बात यह है कि यहां संगीत के चिर-यौवन का संकेत वाद्य को रंगीन बता कर उसे नायकत्व प्रदान किया गया है,वहीं पृष्ठभूमि बतौर वादक के शरीर का हिस्सा ब्लैक एंड व्हाइट में है यानी चित्रकार ने यहां संगीत साधकों की जड़ों की ओर इशारा किया है ,यहां वादक पीढ़ी दर पीढ़ी वाला वादक है जो पुरा-परंपरा की गूंज अपनी आत्मा के माध्यम से रंगीन साज को पात्र बनाकर उड़ेल रहा है।

चेलो वाद्य को ले जाता हुआ कलाकार एक चित्र में है जिसका दिलचस्प शीर्षक ‘ लेबर ऑफ लव’ भी इसी सूत्र को कपड़े है कि सबसे ऊपर है अभिव्यक्ति का माध्यम फिर कलाकार। सनातन संस्कृति में समाए लोकरंग के रस को संगीत वाद्य अपनी बनावट और तासीर के ज़रिए बयान करते हैं और नागनाथ जी अपने मानने वाली यह बात जोर देकर करते हैं कि ऑर्गेनिक साउंड के सोर्स ये जो साज़ हैं इनमें आत्मा तक को जगाने की ताक़त होती है और जब साज़ और कलाकार में एकात्म हो जाता है तब साज़ एक लिविंग एंटिटी की भांति काम करने लगता है।

मैंने हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान इस ऐतिहासिक हो जाने वाले सेक्सोफोन प्लेयर शीर्षक चित्र के कृतिकार नागनाथ मानकेश्वर से बात की। वे मुंबई में रहते हैं और उनकी यह कला यात्रा उतनी ही पुरानी है जितना पुराना उनका मेवाती गुरूकुल ऑफ सितार से रिश्ता है। जी हां! नागनाथ जी एक बेहतरीन सितार वादक भी हैं। इसी तरह की दो अन्य पेंटिंग्स भी मेरे देखने में आईं।

एक चित्र ‘ म्यूजिशियन इन ए सिटी’ में दरअसल होती हुई बारिश ही दृश्य की नायिका है और है एक पुरानी स्टाइल का ट्रक,हमारी सेना के शक्तिमान ट्रक के जैसा। दृश्य की नायिका बारिश के संग अपनी धुन में दीखता एक कलाकार है जिसके दाहिने हाथ में एक क्लेरिनेट है। समझने वाली बात यह है कि इस चित्र का नायक वास्तव में यह क्लेरिनेट ही है जिसे बारिश का आनंद ले चुका हर दर्शक समझ ही जाता है,लेकिन ऊंची-ऊंची इमारतें देखकर ये पंक्तियां याद आ जातीं हैं-ऊंची इमारतों ने मेरा आस्मां ढंक लिया,कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज खा गए।

दूसरा चित्र ‘ रे चार्ल्स ‘ खुलकर हंसते एक ऐसे व्यक्ति का पोर्ट्रेट है जो मजबूत कद-काठी का है और संकल्पित व्यक्तित्व की अनुशासित मगर खुलकर हंसी गई हंसी की लकीरें और शेड्स कैसे होंगे यह इस चित्र के चेहरे में डूबकर देखा जा सकता है,इस हँसते नायक ने जो धूप काला चश्मा पहन रखा वह एक अलग रहस्य का सूत्र भी है। ये दोनों चित्र ब्लैक एंड व्हाइट हैं और यह चारकोल का कार्य है जिसमें नागनाथ इतने निपुण हैं कि कहा ही क्या जाए।

आज का इंसान समझता है कि प्रकृति उसी के लिए बनी है और उसके जीवन का उद्देश्य प्रकृति के दोहन के अलावा और कोई है ही नहीं। आज के समय की दिखती समझ से ऐसा लगता है कि संरक्षण और किफ़ायत से प्रकृति के साथ रिश्ता रखने का काम एलियंस का है हमारा नहीं I तभी तो चित्रकला और साहित्य में लोगों को दिखाई दे रहा है कि प्रकृति और संगीत चारों तरफ अनुपस्थित है। ऐसे में कांक्रीट के जंगल के बरक्स आज प्रकृति के स्रोत व संगीत पर कूची चलाना जोखिम भरा है और वर्चुअल क्रिएटर कहलाने का खतरा मोल लेना है। लेकिन नागनाथ यह खतरा मोल लेते हैं और दर्शक को कन्विन्स करने की सफल कोशिश करते हैं कि संगीत के सुरों की याद भर दिलाकर दर्शक के अंदर सुप्त पड़े भूतकाल को जगा कर उसे वर्तमान से कनेक्ट किया जा सकता है।

फौरी बातचीत के दर्मियां यहां मैं वही एक द्वंद्वात्मक प्रश्न नागनाथ जी के समक्ष उठाना चाहता ही हूं कि वे स्वयं ही कह उठते हैं कि अगर शैल चित्रकला के इतिहास से शुरू करना सोचें तो एक बारगी लगता है कि क्या चित्रकला जैसे कि अतीत की यात्रा करना है और न केवल समय के मामले में,बल्कि हमारा अपना इतिहास, हमारी भावनाएं भी क्या अंततः कलात्मक अभिव्यक्ति के लिए हैं,आखिर इसमें क्या दर्शन छुपा हुआ है? हम दोनों कुछ देर की वार्ता में ही इस विचार पर पहुंच जाते हैं कि इतिहास के आगे बढ़ने के दौर के दौरान शैलचित्र बुद्धि और स्मृति के अंतर्संबंधों के अंकेक्षक हैं जिससे विवेक की निर्मिति हुई तत्पश्चात आज के दौर का वह चर्चित विचार कांशसनेस भी उपजा जो तब भी था मगर छोटे और सघन फॉर्म में। कहते हैं चित्रकार का महान उद्देश्य होता है,न केवल किसी शरीर के बाहरी स्वरूप को, बल्कि उसके आंतरिक सार, उसकी ऊर्जा, जीवन शक्ति और आत्मा को भी पकड़ना,चैतन्य की यही समग्रता किसी कला को कालजयी हो जाने की तरफ ले जाती है। भोपाल के पास भीमबेटका वर्ल्ड हेरिटेज घोषित हैं जहां के शैलचित्र इस बात की तस्दीक़ करते हैं।

नागनाथ जी के चित्र संग्रह देखकर ऑर्गेनिक फीलिंग्स पैदा होती हैं। ये चित्र एक सुघड़ सोच,विश्वास और कॉन्सेप्ट के तहत निर्मित हैं इसीलिए ये वैसा ही असर देखने में पैदा करते है और दर्शक-पाठक को रोककर थाम लेते हैं। यही तो ग्रेविटी की बात है जिसकी तलाश समकालीन कला के अंदर रसिक कर रहा है।

इसी के बरक्स देखें तो साइबर वर्ल्ड में दृश्य अनुभव के लिए एक नया आयाम पेश करने वाली आधुनिक डिजिटल कला की धारा,रेटिना और ऑप्टिकल भ्रम के कंपन पर आधारित है, जो दर्शक की दृश्य धारणा के साथ एक खेल पैदा करती है,आखिर यह कितना सही है ! दो मौलिक अलग-अलग पक्ष मशीन और मानव शरीर यथा सूचनात्मक ज्ञान और अंतर्ज्ञान कैसे भला मिल सकते हैं मौलिक आधार की कला में। डिजिटल और ऑर्गेनिक इन दो पक्षों में से अगर मुझे एक को चुनने को कहा जाए तो मैं ऑर्गेनिक यानी निसर्ग का चुनाव करूंगा,ऐसा मुझे नागनाथ मानकेश्वर जी के काम को देखकर लगा। नागनाथ जी से मिलकर लौटते हुए मैं सोच रहा था कि आजकल की डिजिटल तकनीक चित्रकला या पारंपरिक या समकालीन पेंटिंग को एक अतिरिक्त भौतिक कनेक्शन प्रदान करती है, लेकिन क्या इससे मनुष्य का नितांत एक आत्मिक/अंतरंग अनुभव जो पहले हुआ करता था इस डिजिटल ब्रह्मांड में कहीं खो तो नहीं गया है?

raghvendratelang6938@gmail.com

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