pankaj

ताकि संगीत-संस्कृति से हमारा रिश्ता पहले जैसा जरूर हो

‘कुछ दस्तकें, कुछ दस्तख़त’ के केनवस पर उड़ान के पंख की कलम से लिखे गए चमकीले सुवर्ण हर्फ-हर्फ इस तरह महसूस किए जा सकते हैं जैसे ब्रेल लिपि के पाठक करते हैं।

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मीठी गोलियों का जादू… सेहत बनाने में सहायक

होम्योपैथिक उपचार की जटिल प्रकृति को पूरी तरह से समझने के लिए अभी भी अधिक शोध की आवश्यकता है। ये अध्ययन स्वास्थ्य देखभाल में होम्योपैथी की संभावित प्रभावशीलता के बारे में हों।

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महात्मा गांधी को आप देशी घी कह सकते है…

बापू को गांवों का देशी नुस्खा जिसे ग्राम स्वराज भी कहा जाता है बखूबी याद था, हिंदुस्तान में इसकी जड़ें बहुत बहुत गहरी है। काश हमारे दूसरे नेता भी देशी घी बन पाते तो भारत की सारी बीमारियों का इलाज संभव हो जाता।

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जमीन का बँटवारा रोकने का उपाय, दो भाइयों की एक पत्‍नी

हिमाचल प्रदेश के शिलाई गांव के प्रदीप और कपिल नेगी भाइयों की शादी चर्चा में है। इन भाइयों ने एक ही महिला से विवाह किया है। अपनी पसंद और परंपरा का जश्न मनाते हुए तीन-दिवसीय समारोह भी आयोजित किया गया।

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जजों की नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट और केंद्र में टकराव के मायने

हमें समाज को यह बताने की जरूरत है कि अगर न्यायाधीशों को न्यायाधीशों की नियुक्ति करनी होती तो सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सभी सिफारिशों पर कार्रवाई की जाती। लेकिन ऐसा नहीं होता है।

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सौ साल के गुरुदत्‍त: क्‍या 500 रुपए के फेर में गई जान

हम गुरुदत्‍त को उनकी फिल्‍मों से जानते हैं। ‘प्‍यासा’, ‘साहब, बीबी और गुलाम’, ‘कागज के फूल’ ‘चौदहवीं का चांद’, ‘बाजी’ जैसी फिल्‍में उनका परिचय हैं। इन फिल्‍मों के गीतों, ट्रीटमेंट और पर्दे पर उभरी श्रेष्‍ठता आज भी फिल्‍म प्रेमियों को हतप्रभ करती है।

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गुरु के सान्निध्य में रियाज़ की प्रोसेस

संगीत से जुड़े मनुष्य के मनोवैज्ञानिक और व्यवहारगत पक्षों से भी हर कलाकार को परिचित होना चाहिए। आज की भाग-दौड़ भरी जीवनशैली में बढ़ते स्ट्रेस और एंग्जायटी से निपटने के लिए भी लोग संगीत के निकट आ रहे हैं। यह उजला पक्ष भारतीय समाज के जागृत विवेक का स्वत: परिचायक है।

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धरती की धड़कनें सुनने के लिए, बीज होना होता है… हवा में बहना होता है

गुरुडोंगमर की चुप्पी और कन्याकुमारी की गर्जना- दोनों एक ही संगीत के स्वर। जीवन इस संगीत में बहता है, हर कण में, हर तरंग में। पत्थर रेत बनते हैं, सागर शीतलता बुनता है, और यह लय हमें अपने भीतर समेट लेती है।

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खाली जेबें और आकांक्षी मन

महंगी होती शिक्षा देश के गरीब, वंचित, निम्नमध्यवर्गीय परिवारों की राह को मुश्किल कर रही है। वे अपने बच्चों को पढ़ाना तो चाहते हैं लेकिन शिक्षा का लगातार महंगा होना उनकी राह रोक रहा है।

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लॉकडाउन के 6 साल: सत्‍यम श्रीवास्‍तव के मार्फत स्मृतियाँ हिसाब माँग रही हैं…

सत्‍यम श्रीवास्‍तव की किताब ‘स्मृतियाँ जब हिसाब माँगेंगी’ को पढ़ते हुए हम कोविड 19 से मिले दंश को दोबारा महसूस करते हैं। बल्कि यह कहना सतही होगा। उपयुक्‍त तो यह है कि इस पुस्‍तक को पढ़ते हुए हम उन बातों से रूबरू होते हैं जो उस वक्‍त बड़े समाज के गौर में नहीं आई।

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