
नोटबंदी का काला-सफेद, काले मिला नहीं, सफेद भी काला
देश में कितने जाली नोट थे यह न जानते हुए भी जाली नोट को सामने लाने के लिए नोटबंदी की गई। हकीकत यह है कि जिन दो बड़े उद्देश्यों के लिए नोटबंदी लागू की गई थी वे प्राप्त नहीं हुए हैं।
देश में कितने जाली नोट थे यह न जानते हुए भी जाली नोट को सामने लाने के लिए नोटबंदी की गई। हकीकत यह है कि जिन दो बड़े उद्देश्यों के लिए नोटबंदी लागू की गई थी वे प्राप्त नहीं हुए हैं।
किसी भी शहर को देखने का, उसे याद रखने का सबका एक अलग नजरिया होता है। यायावरी के जुनून को पंख देकर आज उड़ चली हूं मध्यप्रदेश के मुरैना जिले में स्थिति दो प्रसिद्ध मंदिरों के प्रांगण में।
आज के नेताओं का ध्येय एक ही है, किसी तरह सत्ता बनी रहनी चाहिए, विचार की सत्ता जाए तो जाए। अगर आज के ऐसे नेताओं को दादा माखनलाल चतुर्वेदी का एक अनुभव बताएं तो देखना दिलचस्प होगा कि वे आंखें चुराते हैं या मोटी चमड़ी का प्रदर्शन करते हैं।
कई लोग यह भी करते कि मेरे डॉक्टर ने मुझे सॉर्बिट्रेट दी है तो मैं दूसरे को भी हार्ट की कोई समस्या होते ही यही दे देता हूं बिना यह जाने कि यदि दिल की बीमारी के कारण ब्लड प्रेशर कम हो रहा हो तो सॉर्बिट्रेट लेना जानलेवा भी हो सकता है। हम कभी सोचते ही नहीं कि सेल्फ मेडिकेशन या बिना डॉक्टर से पूछे कोई दवा लेना कितना घातक हो सकता है? क्या आप सोचते हैं?
आप जो दवा खा रहे हैं वह संभव है कि नकली हो क्योंकि घरेलू दवाओं में लगभग 25% का हिस्सा नकली दवाओं का है। इस वजह से देश में एक वर्ष में 10 लाख लोगों की मौत हो जाती है। सरकारें इस मामले पर चुप दिखाई देती हैं। इसके भी अपने कारण हो सकते हैं। वैसे, डेटा को खंगालने पर पता चला है कि 23 फार्मा कंपनियों और एक सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल ने इलेक्टोरल बांड के जरिये करीब 762 करोड़ रुपए का चंदा राजनीतिक दलों को दिया है।
जिसे हम बुद्धिमान कहते हैं वह एक बहुत ही चतुर और धूर्त व्यक्ति हो सकता है, और जिसे मूर्ख कहते हैं, वह बड़ा ही धैर्यवान, शांतचित्त, गहरी दृष्टि रखने वाला कोई व्यक्ति भी हो सकता है। सबसे कीमती बात है यह जानना कि हम क्या नहीं जानते।
हमारे लिए किसी दिन की क्या जरूरत है? हमें तो कोई भी, कोई गैर भी, कोई अपना भी, कभी भी मूर्ख बना सकता है। हमें कोई और कहां मूर्ख बनाता है? हम खुद ही खुद को ठगते हैं। हर बार मूर्ख साबित होने के बाद हमारे मन का हीरामन एक कसम खाता है और फिर वही हीरामन अपनी कसम भूल जाता है।
लकड़ी द्वारा घुमाया जाने वाला चाक आजकल बिजली से चलने लगा है। गधे पर मिट्टी लाने का काम ट्रैक्टर पर निर्भर हो गया है। बेचने के लिये फेरी लगाने के लिए मोटरसाइकिल का प्रयोग होने लगा है।
सुप्रिया श्रीनेत, मृणाल पांडे और कंगना रनौत ने जो टिप्पणियां कीं उसमें उन्हें तत्काल कुछ भी गलत नहीं लगा। टोके जाने पर जरूर किसी ने समझदारी दिखाते हुए माफी मांग ली तो कोई अपनी बात पर अड़ा रहा लेकिन यहां असल चुनौती यह है कि ऐसी सोच को किस प्रकार समाप्त किया जाए?
बहुत बताया और समझाया/ मुन्ने ये तो समझो यार/ राई के पहाड़ पर बैठ के कैसे/ देखोगे तुम फिर उस पार …