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हे मेरे मरण, आ और मुझसे बात कर

अहा! उसकी वे स्नेह भरी आँखें! आँखे भर क्यों? चेहरा, देह, देह का रोम-रोम जिस स्नेह से, जिस प्रेम से भरा है। खासकर तब, जब वह अपनी बेटी को गले लगा रहा है! पीछे ही वह दूत प्रतीक्षा में है जिसके साथ उसे उस पार चले जाना है।

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दक्षिण भारत में हिंदू, मुस्लिम, ईसाई हर समुदाय में क्‍यों इस विवाह का चलन?

उत्तर भारत में एक ही परिवार में कम शादियां होने का एक कारण गोत्र है। यहां एक जाति में तो शादी हो सकती है लेकिन एक गोत्र में नहीं। यहां के लोग मानते हैं कि एक गोत्र वाले लोगों के पूर्वज भी एक ही होते हैं, लेकिन दक्षिण भारत में गोत्र के आधार पर शादी का ट्रेड नहीं है।

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काम में आनंद ढूंढना और आनंद से काम करना, जिनका जीवन दर्शन

आज हम बात कर रहे हैं ऑर्गेनिक संवाद को बनाए रखने के लिए गठित प्रोफेशनल्स के समूह संवाद और संपर्क की। इस ग्रुप में के सदस्‍य बंद दरवाज़ों के लोग नहीं हैं बल्कि ये सब फ्रेश हवा की दुनिया के लोग हैं।

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एक कवि की उपस्थिति में उगता है नववर्ष का पहला सूर्य!

मेरा कहने का अर्थ है कि क्या आपका संस्थान लोगों को नौकरी देते वक्त या आप अपनी टीम चुनते वक्त यह ध्यान में रखते हैं कि उसमें समाज के सभी तबकों-जातियों और वर्गों का उचित प्रतिनिधित्व हो सके?

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मेरिट यानी योग्यता: भ्रम या सचाई?

मेरा कहने का अर्थ है कि क्या आपका संस्थान लोगों को नौकरी देते वक्त या आप अपनी टीम चुनते वक्त यह ध्यान में रखते हैं कि उसमें समाज के सभी तबकों-जातियों और वर्गों का उचित प्रतिनिधित्व हो सके?

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ईश्वर आपकी यात्रा सफल करे… कहने का अर्थ क्या है

सोचकर देखिए! यात्रा में एक बार बगल में किसी की नेविगेटर सीट पर अगर ईश्वर सहयात्री के रूप में बैठ जाए तो फिर उस सफर को तो तब सफल होना ही है।

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… जैसे किसी को सदियों बाद अपनी प्रेमिका की चिट्ठी मिल गई हो

जब कोई प्रेम कविता लिखी जाती है तो उसमें महुआ का नाम भले न हो लेकिन उसकी गंध ज़रूर होती है। वह हर प्रेम की तह में बैठा होता है, जो सब जानता है लेकिन कहता कुछ नहीं।

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अभी तो खुश्क पैरों पे मुझे रिमझिम भी लिखनी है…

दो मिसरों में दो ख़याल बांधते हुए उनमें रब्त कायम करना यह शाइर की खूबी होती है। इस लिहाज से जनाब जसवंत राय शर्मा उर्फ़ नक्श लायलपुरी का यह शेर विराधाभासों में ख़ूबसूरती पैदा करता है।

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अभिव्यक्ति की आजादी सबसे कीमती, इसे दबाया नहीं जा सकता

यह मामला दिखाता है कि हमारे संविधान के अस्तित्व में आने के 75 साल बाद भी राज्य की कानून प्रवर्तन मशीनरी नागरिकों को दिए गए मौलिक अधिकार के बारे में या तो अनभिज्ञ है या इस मौलिक अधिकार की परवाह नहीं करती है।

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केवल अनुभव किया जा सकता था,आस्था का महासागर था वह

रास्ते भर मन कल्पनाओं में तैरता रहा, गंगा का दिव्य स्वरूप, साधु-संतों के अखाड़े, मंत्रों की गूंज और असंख्य दीपों से प्रकाशित वह पावन धरा। जब प्रयागराज पहुंचे, तो लगा जैसे समय की सीमाएं विलीन हो गई हों। वहां जो दृश्य था, वह केवल आँखों से देखा नहीं जा सकता था, बल्कि उसे अनुभव किया जाना था, वह आस्था का महासागर था, जहां हर लहर श्रद्धा की एक नई कहानी कह रही थी।

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