इतनी मुहब्बत! मुझे ऐसा प्रेम कहीं ना मिला
यही वह जगह थी जहां मैंने बंगाली संस्कृति, उनके महान लेखकों और फिल्मकारों को जानना शुरू किया। गुरुदेव की लिखी ‘The Home coming’ पढके मैं रोया।
यही वह जगह थी जहां मैंने बंगाली संस्कृति, उनके महान लेखकों और फिल्मकारों को जानना शुरू किया। गुरुदेव की लिखी ‘The Home coming’ पढके मैं रोया।
मणि मोहन जी प्रकृति और परिवेश को जिन साधारण शब्दों से विशिष्ट भाव रूप में उकेर देते हैं उतनी ही दक्षता से कैमरे के जरिए फोटो पर भी उतार देते हैं।
फोटोग्राफर बंसीलाल परमार जी के पढ़ाने का तरीका जितना वैज्ञानिक था, फोटोग्राफी उतनी ही मानवीय दृष्टिकोण से पगी हुई।
आज के बाद ऐसा नहीं होना चाहिए, की धमकी के बाद बिना किसी मारपीट और खून-खराबे के उस धमकैया को जाने दिया। दादागिरी पाठशालाओं में बहुत सामान्य है, पर इसका असर कमजोर पक्ष पर बहुत गहरा पड़ता है। बच्चों द्वारा की गई इस तरह की शिकायतों पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए, और उसका समाधान निकालना चाहिए।
विवेकानंद का कहना है: “सभी मुक्ति के लिए संघर्ष कर रहे हैं, एक क्षुद्र अणु से लेकर एक सितारे तक”। हम सब अपनी आज़ादी के साथ साथ उनकी आज़ादी की भी फिक्र करें जिन्हें हम ‘अन्य’ या ‘पराया’ कहते हैं, तभी मुक्ति का यह लक्ष्य हमारी पहुंच के भीतर रहेगा; वर्ना हर दिन यह दूर खिसकता चला जाएगा।
आज़ादी कोई एक बार मिलकर अनंतकाल तक चलने वाली चीज नहीं है। एक नागरिक के रूप में यह हमारी निरंतर यात्रा है।
दीदी पहले ही घोषणा करती, “जिसको भी डर लग रहा है, अभी बाहर चला जाए। एक बार अनुष्ठान शुरू हुआ, फिर किसी को उठना, हँसना, डरना सख्त मना है। अगर आत्मा गुस्सा हो गई तो भगवान ही बचा पाएंगे।”
मैंने पूछ ही लिया, कि भैया कहां है, जिनकी शान में यह आयोजन हो रहा है? आंटी ने मुस्कुराते हुए, एक पर्दा हटाया और एक 3×2 की फ्रेम की हुई फोटो प्रकट हुई। चित्र में एक किशोरवय का चेहरा मुस्करा रहा था। आंटी ने परिचय कराया, “ये है विनायक… इसका ही birthday है।
हमारा वजन कभी भी स्थिर नहीं होता और वह थोड़ा-बहुत हमेशा बदलता रहता। शरीर में पानी के घटने-बढ़ने से वजन भी घटता-बढ़ता रहता है।
सर्वज्ञानी हो जाते ही आसक्ति की व्यर्थता का रहस्य मालूम पड़ जाता है। आसक्ति विराट तक पहुंचने के ठीक पहले आ खड़ी होने वाली पहली और आखिरी दीवार है।