बेटे, प्रॉमिस करते हैं, हम न टूटेंगे, न रोएंगे

टॉक थ्रू एडिटोरियल डेस्‍क

महाराष्ट्र के एक वरिष्ठ आईएएस दंपति मिलिंद और मनीषा म्हैसकर के इकलौते बेटे मन्मथ ने जुलाई 2017 में मुंबई की एक हाइराइज इमारत की 20 वीं मंजिल से कूद कर आत्महत्या कर ली थी। मन्मथ 18 साल का था और पुणे के एक कॉलेज में पहले साल में पढ़ रहा था। बेटे के इस अप्रत्याशित कदम से क्षुब्ध अभागे म्हैसकर दंपति समझ नहीं पा रहे थे कि मन्मथ की परवरिश में कहां चूक हो गई? सब कुछ तो दिया, सब कुछ उसी का तो था, फिर कहां शून्य रह गया। इस दंपति ने अपने दिवंगत पुत्र के नाम एक मार्मिक खुला पत्र लिखा था, जो शायद आप की आंखें भी नम कर दे….मूल मराठी में लिखे पत्र का हिंदी अनुवाद वरिष्‍ठ पत्रकार अजय बोकिल ने किया है।

प्रिय चिरंजीव मन्मथ,

इस संबोधन से शुरू कर के पत्र लिखना हमे स्कूल में सिखाया जाता था। लेकिन तुझे ऐसा पत्र ‍कभी लिखना ही नहीं पड़ा, क्योंकि तू हमेशा हमारे साथ था…अपने घर में ही रहता था। सो, कभी चिट्ठी लिखने की नौबत ही नहीं आई। तूने जो एक्स्ट्रीम फैसला लिया, उसके बाद हजारों लोग हमसे मिलने आए। तुम्हारे जीवन में तुम्हें मिला कमोबेश हर व्यक्ति हमे मिलने आया। व्यथित हुआ। फूट-फूट कर रोया। हमारे हजारों स्नेहीजन न जाने कहां-कहां से मातमपुरसी के लिए आए। अनेक लोगों ने फोन किए। मैसेजेस किए। चारों तरफ भयंकर बारिश के बावजूद लोग दूर-दूर से मिलने आए। तेरे बारे में, अपने बारे में लोगों में इतना प्यार है, इतनी सदिच्छा है, अगर यह तुझे पहले समझ आ गया होता तो क्या तू अपने उस फैसले को रोक देता रे?  लेकिन तू किसी और ही मिट्टी का बना था। संकट की इस घड़ी में ‍जिन सभी ने सहारा दिया, बिल्कुल दिल से अपनी संवेदनाएं व्यक्त  कीं, उनका आभार मानने के लिए हमारे पास शब्द ही नहीं हैं। आपने जीवन में कितने लोगों को जोड़ा, इसका सबूत पाने के लिए शायद ऐसे ही दिन की जरूरत होती है? लोकप्रियता का यह कितना क्रूर कौतुक ! 

मीडिया और सोशल मीडिया में भी चर्चा हुई। सब कुछ…यश, समृद्धि उपभोगने वाले इस दंपति के बुद्धिमान, सुसंस्कृत बेटे ने ऐसा क्यों किया होगा?…कुछ ने कहा आपने उसे संस्कारित किया तो दूसरे कई लोगों ने कहा कि आपने उसको कुछ ज्यादा ही आजादी दे दी। कुछ का सवाल था कि क्या अपेक्षाओं का बोझ उसके कंधे नहीं झेल पाए? (बेटे की पीठ पर धौल जमा कर ‘बेटा, पढ़ाई ठीक से कर, मेहनत कर, बड़ा आदमी बन…’ कहना, अपेक्षाओं का बोझा बच्चों के कंधे पर डालना है क्या? और अगर ये बोझा है तो अपन सारे अभिभावक कल से बच्चों से कह दें कि…बच्चों जो ठीक लगे सो करो, हम हैं तुम्हारे साथ… जस्ट चिल!) कुछ लोग यह भी बोले कि ये (हम) दोनों सतत इतने व्यस्त रहते हैं कि बेटे को वक्त कहां से दें पाते होंगे। ‍किसी ने तो पूरे महाराष्ट्र को ही खरी-खोटी सुना दी कि ‘बच्चों की तरफ ठीक से ध्यान दो वरना उनका भी ‘मन्मथ’ हो सकता है!’

तू कितना समझदार बच्चा था, यह उन सबको कैसे बताएं? तू और मैं और मम्मू (मां) बस इतनी ही अपनी दुनिया थी, इसका अब और क्या पुरावा दूं?

तूने तेरी जिंदगी मजे में जी। आखिरी घड़ी में जो वेदनाएं हुईं होंगी, उन्हें छोड़ दें तो पूरी‍ जिंदगी में कोई बीमारी, वेदना, रोग, अभाव का स्पर्श भी तुझे कभी नहीं हुआ। तूने जिंदगी का खूब आनंद लिया, बड़े भारी बंगलों में रहा। पूरा शहर शिरकत करे, ऐसे ठाठ से तेरा जन्मदिन मनता था। खाना-पीना, कपड़ा-लत्ता किसी की भी तो कमी नहीं थी। शानदार होटलों में तू रहा। फिल्में देखीं। किताबें पढ़ीं। तेरे पसंदीदा क्रिकेट और फुटबॉल के मैच तूने शाही बॉक्स में बैठकर देखे। मम्मी और बाबा का तो तू दिल-ओ-जान था ही। दादा-दादी, काका-मामा सब तुझ पर जान छिड़कते थे। अनगिनत लोगों ने तुझे खूब प्यार किया। तेरी तारीफ की और तू अपनी शर्मिली विनम्रता के साथ उसे स्वीकारता रहा। जीवन में मिलने वाले सुख, वैभव और प्रेम को यदि दुख, वेदना, कड़की से भाग दें तो जो भागफल (तेरी भाषा में स्ट्राइक रेट) आएगा, उसका स्ट्राइक रेट तेरे चहेते क्रिकेटर विराट से भी और किसी भी इंसान से ज्यादा आएगा। ‘मातृ मुखी, सुदा सुखी’ यह वाक्य कितने ही लोगों ने कितनी ही बार कहा होगा तेरी तरफ देखकर!

मम्मी को किंचित मात्र त्रास दिए बगैर तूने जन्म‍ लिया। हम कहा करते थे ‘भगवान ने स्पीड पोस्ट से पार्सल भेजा है हमारा। बंडल ऑफ जॉय।’ तेरे जन्म के दूसरे ही दिन हम दोनों के ऑफिस के लोग आए थे। उनमें बहस चल रही थी। मम्मी के ऑफिस वाले कह रहे थे कि बच्चा हूबहू मां की तरह दिखता है । बाबा के ऑफिस वालों का कहना था कि बिल्कुल साहब के जैसा दिखता है। ठीक तभी से तू सबको आनंद ही बांटता रहा।

तुझे कहानी सुनने का भयानक शौक था और रोज नई-नई कहानियां तू सुनना चाहता था। तेरी पैदाइश के बाद नागपुर की ठंड में मैं तुझे धूप में गोदी में लेकर बैठता था। और तू सू-सू करके मेरी पेंट गीली कर देता था। और यह किस्सा तू कई सालों तक मजे के साथ सुनता रहा था। ‘बाबा वो सू-सू वाली स्टोरी सुनाअो न ! यह फरमाइश तूने हजारों बार की होगी। और भीगी पेंट, कुछ गरम-गरम सा आभास होने पर चौंकने का अभिनय जब मैं करता तो तू हर बार खिलखिलाकर हंसता था। ऐसे ही किसी दिन जब तू मेरी गोद में बैठा था, प्रारब्ध ने तेरा नसीब तेरे भाल पर लिखा दिया होगा क्या?

…लेकिन तुझे ये प्रारब्ध, नियति, देव कभी रास नहीं आए। तू तेजी से बडा होता गया। तुझे ओ’ हेनरी की ‘रोड्स टू डेस्टिनी, मॉम की ‘अपॉइंटमेंट इन समरा’ कहानियां जैसी तुझे पसंद थीं, उसी अंदाज में मैंने तुझे सुनाईं। तब तूने वो कहानियां बहुत संजीदगी से सुनीं और कहा कि बाबा मुझे ये बातें नहीं जमतीं। हैरी पॉटर के जादुई विश्व ने तुझे मोह लिया था। हैरी पॉटर से संबधित कोई भी क्विज तूने हमेशा जीती। मम्मी को इस ‍क्विज में हराने में तुझे खासा मजा आता था। इंग्लैंड में जब अपन हैरी पॉटर वर्ल्ड देखने गए थे तो उसमें तू पूरी तरह खो गया था। घंटों। हैरी पॉटर के मम्मी-पापा बचपन में चल बसे थे, लेकिन हमारा हैरी पॉटर तो बचपन में ही हमे छोड़कर चला गया!

हर छोटी-छोटी बात में तुझे मम्मी की सलाह लेना जरूरी था। एक बार जब तेरा दूध का दांत गिरा तो तू घबरा गया था। मम्मी कहीं मीटिंग के लिए आउट ऑफ स्टेशन थी। तेरे किसी फ्रेंड ने तुझे बताया था ‍कि दूध का टूटा दांत छप्पर पर फेंका जाता है या फिर किसी मिट्टी के बर्तन में गाड़ दिया जाता है। फिर फोन पर इस बारे में उस दिन आधा घंटा चर्चा हुई। ऐसी असंख्य बातों पर रोज चर्चा होती थी…और ऑफिस में मम्मी के सामने बैठे लोग इसके मजे लिया करते थे। देखकर कि इतनी बिजी महिला तेरे साथ इतनी देर तक बतिया सकती है, इस बात का कई लोगों को आश्चर्य और कुतूहल होता था। लेकिन अब इस महत्वाकांक्षी, कर्तृत्ववान महिला की ‘मां’ के बतौर काबिलियत पर ही सवाल उठाए जा रहे हैं! तू, मम्मू और बाबा तीनो की, फैमिली ऑफ थ्री, की क्या दुनिया थी, कभी कोई ये समझ पाएगा? बिल्कुल पहली परीकथा से लेकर अपन दोनो की पसंदीदा एनिड ब्लायटन और हैरी पॉटर तक की रोमांचक यात्रा अपनों ने एक साथ की। हर रात कम से कम एक-दो घंटे एकत्र वाचन अपने को आनंद से भर देता था। मम्मी के लिए तो वह दिन का सबसे आनंददायी समय होता था।

दसवीं में जब तेरे सारे फ्रेंड्स जब ट्यूशन के लिए जाते थे, तब तूने जब बेबाकी से ‘मम्मी-बाबा मैं तुमसे ही पढ़ूंगा’ कहा तो हमने विषय बांट‍ लिए। अपन खूब मजे में पढ़ाई ‍किया करते थे। कुछ और बड़ा होने पर तू कहने लगा ‘अच्छा हुआ रे बाबा, मम्मी हाउस वाइफ नहीं है, वरना अपने को बहुत तकलीफ हुई होती।’ जंगल का पेड़ बगीचे के पेड़ के मुकाबले इसीलिए बेफिक्री के साथ बढ़ता है शायद।

अपने मामा के साथ मॉल में मटरगश्ती करना तुझे खूब भाता था। मेरे साथ भी तू कई खेल खेलना पसंद करता था। जब एक टीम में अपन क्रिकेट खेला करते तो मैं तुझे नॉन स्ट्राइकर एंड से कहता था ‘मनु, जरा फास्ट खेल। बीस ओवर का ही मैच है।‘ तू कहता था ‘हां बाबा…डोंट वरी।‘ अब कह के गया है ‍क्योंकि ‘डोंट वरी बाबा, यह खेल तो अठारह साल ही था। यह खेलकर मैं तो चला।’  मेरा आईआईटी में होना, ब्रिज खेलना, सुडोकू, शब्द पहेली, ब्रेन टीजर हल करते समय मेरी लाइकिंग का तू मजाक उड़ाया करता था। कहता ‘बाबा ये क्या पझल लेकर बैठे हो? इसके बजाए तो मेरी स्टोरी सुनो!’ लेकिन जाते समय तू ऐसी पहेली छोड़ गया है, जिसे सुलझाते पूरी‍ जिंदगी भी कम पड़ेगी!

तू खूब अलग था। और तेरे दिमाग में चलने वाले विचार किसी स्यास आसमान में अचंभित करने वाली आतिशबाजी की तरह थे। तूने खूब पढ़ा। लिखा। लगभग हर बढि़या अंग्रेजी फिल्म तूने देखी। अपनी मध्यमवर्गीय जड़ें, तेरे आसपास दक्षिण मुंबई की दिखावेबाज जिंदगी, उसका विरोधाभास, कट्टर धर्म संस्कृति, भ्रष्टाचार, राजनीति, नौकरशाही, अपराध, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सद्प्रवृत्ति, यहूदियों का नरसंहार, इत्यादि अनेक विषय अनपेक्षित तेजी से तुझे समझ आते गए। उन विषयों पर तेरी बेबाक और स्वतंत्र राय बनती गई। जब पिछले माह तेरी लिखी पांडुलिपियां लेकर अपन एक प्रका‍शक के पास गए तो वो उन्हें देखकर अवाक् रह गए थे। मात्र सत्रह साल के किशोर में अपनी उम्र से इतनी ज्यादा समझ कहां से आ गई, यह उस अनुभवी प्रकाशक को भी समझ नहीं आ रहा था। तेरा लिखा अपन जरूर प्रकाशित करेंगे। वो पढ़कर किसी को शायद समझ आए कि तेरे मन में आखिर चल क्या रहा था? तब तेरी असीम प्रतिभा दुनिया के सामने आएगी। कंचनजंघा चोटी को अपन मिलकर निहार रहे थे…लॉर्ड्स,चेल्सी, वानखेडे पर तेरे पसंदीदा मैच देख रहे थे… उन रसीले क्षणों में भी तू अपने खयालों की दुनिया में ही खोया हुआ था क्या रे?

तुझे अपयश कभी देखना नहीं पड़ा। तो बनना था न ‍फिर लेखक! लेकिन कॅरियर के रूप में मम्मी की तरह लॉ की ट्रेनिंग लेना तूने बहुत पहले ही तय कर लिया था न। तूने एक बार जो ठान लिया, उसे बदलना लगभग नामुमकिन था। (थोड़ा कम डिटरमाइंड होता तो कितना अच्छा होता रे!) फिर बढि़या  मार्क्स मिलने के कारण तेरे चहेते सिंबायसिस कॉलेज में तुझे एडमिशन मिला। अपन सभी अभिभूत हुए। दूसरे ही दिन शाम को तेरे पसंदीदा हॉटेल में अपन ने डिनर किया। लेकिन तेरे आनंदित होने में भी एक दूरी-सी रहा करती थी। मानो तेरे आसपास की दुनिया और तेरे भावजगत में तेरी अपनी दुनिया, ये दोनो एक दूसरे से हजारो मील दूर स्थित ग्रह हों।

मम्मी और मुझे समुद्र, जंगल, पर्वत आदि बहुत प्रिय हैं। तू जिद के साथ ऐसी हर छुट्टी एंज्वाय करना चाहता था। लेकिन तेरी फितरत कुछ और ही थी। स्टीफन हॉकिंग, फाइट क्लब, जिलियन फ्लिकन के ‘गॉन गर्ल’ जैसी आभासी और काल्पनिक दुनिया ही तुझे खूब भाती थी। कुछ उसी तरह का लेखक बनना तेरा सपना था। तेरी ‘हैवन स्टोरी’ में तूने स्वर्ग का बहुत बारीकी से वर्णन किया था। वहां कौन-कौन जाएगा, वहां के नियम कायदे क्या होंगे, इस पर तू हमेशा सोचता रहता था। अपने आसपास की और ऐतिहासिक विभूतियों के बारे में तू हमसे घंटों बतियाता रहता था…उन्होंने कितना अच्छा किया, कितना बुरा किया…यह तू विचारपूर्वक बयान करता था…और उन्हें स्वर्ग भेजना ठीक होगा या नर्क में। ‍फिर उसकी कारण मीमांसा पर अपनी चर्चा होती थी। कई बार  तलवारें भी खिंच जाती थीं। उसमे फिर से श्रेणी विभाजन होता था कि किसी को कठोर, ‍किसी को स्थायी नरक तो किसी को मामूली नरक तो किसी को थोड़ा बहुत तो किसी को श्रेष्ठ स्वर्ग! तू जिस किसी स्वर्ग में गया है, वहां खुश रहना मेरे बच्चे!

तेरे बारे में हम दोनो ने बहुत सपने सजाए थे। तुझे भी हमारा बहुत अभिमान था। मेरे मम्मी-बाबा कुछ भी कर सकते हैं, हर छोटे बच्चे की तरह तुझे भी यह आत्मविश्वास था। तेरी फेवरेट कोई भी चीज लाकर सरप्राइज देना हमे भी खूब अच्छा लगता था। उसे पाकर तेरी आंखों में चमक आ जाती थी। तू चहक कर कहता था- थैंक्यू मम्मी बाबा। फिर मैं झूठमूठ गुस्सा होकर और आंखे चढ़ाकर कहता था- ‘मनु, मम्मी बाबा को भी कोई थैंक्यू या सॉरी कहता है क्या?’… और अब जाते समय इतना बड़ा ‘सॉरी’ कह कर गया रे? तुझे अपने मम्मी बाबा के प्रॉमिस पर पूरा यकीन रहता था। हमारे पक्के प्रॉमिस पर तू तुरंत निश्चिंत हो जाता था। हमारे चेहरे पर जरा सी चिंता या परेशानी दिखते ही तू व्याकुल हो जाता था। अब हम तुझे प्रॉमिस करते हैं कि इस भारी सदमें के बाद भी हम फिर उठ खड़े होंगे और हमेशा जैसे तुझे चाहिए होते थे वैसे ही शांत और निश्चिंत मम्मी बाबा के रूप में दिखेंगे।

यह सब क्यों हुआ? इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं है। ईश्वर जिस तरह अपार दु:ख देता है, उतनी ही उसे सहन करने की शक्ति भी देता है। जितना ही छीनता है, उतना ही छप्पर फाड़ कर भी देता है।

यही अंतिम सत्य है…!

हमेशा तेरे…

मम्मी बाबा

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