
इश्क रूहानी: क्यों मैंने ताजमहल नहीं देखा…
मैं अक्सर जिद किया करता था, मुझे आगरा जाना है। समझाइश मिलती, छुट्टियों में जाएंगे। कई छुट्टियां आईं और गईं। मैं कई जगह गया। मगर राह में आगरा आया ही नहीं।
मैं अक्सर जिद किया करता था, मुझे आगरा जाना है। समझाइश मिलती, छुट्टियों में जाएंगे। कई छुट्टियां आईं और गईं। मैं कई जगह गया। मगर राह में आगरा आया ही नहीं।
मैं धीमी रफ्तार से चलती इस जिंदगी में ठहरकर हर शय को इत्मीनान से देखती हूँ। मेरी ये धीमी सी भीतरी दुनिया बहुत शांत है। दुनिया जिस पर बाहरी दुनिया की बेरुखी का कोई फर्क नहीं पड़ता। दुनिया जिसमें कहीं पहुँचने, कुछ होने की कोई होड़ नहीं है।
उसकी हालत देखकर लग रहा था कि इस वक्त कोई ऐसा होना चाहिए इसके पास जो प्यार से कुछ पूछ भर दे…नरमाहट से हथेलियों को थाम ले… सर पर हाथ फिरा दे…।
क्या हम अपने जीवन की पूरी दिशा बदल सकते हैं? या हम सिर्फ संकीर्ण, घटिया, अर्थहीन जीवन जीने के लिए अभिशप्त हैं? क्या हम यह सब छोड़ सकते हैं और एक साफ स्लेट के साथ नए सिरे से शुरुआत कर सकते हैं?”
मधुबन कॉटेज केवल एक गंतव्य नहीं है; यह एक जीवनशैली है। इसने मुझे धीमा होना सिखाया है, छोटे-छोटे क्षणों का आनंद लेना सिखाया है, और सादगी में खुशी पाना सिखाया है, अपनी शाश्वत सुंदरता और शांत आकर्षण के साथ।
शारीरिक तौर पर दिमाग से दिल की भौतिक दूरी सिर्फ 18 इंच के करीब होती है पर उसे पूरा करने में अक्सर जिंदगी बीत जाया करती है।
आबिदा के सूफी कलाम और पंडित जसराज के राग सुनती हूं तो पिता जीवंत हो जाते हैं। सब कलाकारों, सूफियों, अवधूतों से मेरी पहचान करवाने वाले वही थे।
शरद ऋतु मानसून का विदाई गीत है। बारिश प्रकृति के शुद्धिकरण का त्यौहार है। उसके बाद कोई अदृश्य चितेरा बारिश में धुले, स्वच्छ आकाश के कैनवास पर हर कल्पनीय रंग बिखेर जाता है।
भीड़ समवेत स्वर में जोर से चिल्लाई-छोड़ दो….। दादा ने बिना सुलगा सुतलीबम फेंक दिया। लोग हंसने लगे।
जयेंद्रगंज, ढोली बुआ का पुल, इंदरगंज, हजीरा और मुरार में जैसे कोचिंग क्लासेस और गुरुजनों की बड़ी-छोटी दुकानें सज गईं। छात्र-छात्राओं का रेला दिन भर शहर की सड़कों पर भेड़ों की तरह भटकता रहता।