तब तुम्‍हें मारा था, मुझे दर्द अब तक होता है

पंकज शुक्‍ला, पत्रकार एवं स्‍तंभकार

निदा फाजली साहब ने क्‍या खूब कहा है, धूप में निकलो, घटाओं में नहा कर देखो, जिंदगी क्‍या है, किताबों हटा कर देखो। मुझे लगता है कि बतौर शिक्षक किसी की सफलता को सिर्फ उसकी कक्षा के परिणाम से नहीं देखना चाहिए। किसी भी शिक्षक का आकलन उसके पूरे काम से करना चाहिए। एक सरकारी स्‍कूल के शिक्षक की पीड़ा को हम तभी समझ सकते हैं जब उसके समूचे काम को जानें। यह बात इतनी विश्‍वास से इसलिए कह पा रहा हूं क्‍योंकि मैंने एक शिक्षक डायरी पढ़ी है। इस डायरी के कुछ पन्‍ने आप भी पढि़ए:

5 जुलाई

स्कूल शुरू हो गए हैं। अभी मुझे चार क्लास पढ़ाना है। एक साथी शिक्षक जन शिक्षा केन्द्र में रिपोर्ट बनाने में व्यस्त हैं। उन्हें हर दूसरे दिन डाक ले कर जाना पड़ता है। कहने को तो जन शिक्षा केन्द्र में प्रभारी की व्यवस्था है, लेकिन यहां प्रभारी का काम भी किसी प्रभारी के भरोसे चल रहा है। एक शिक्षक पूरे महीने तमाम काम करने में जुटा रहता है।

15 जुलाई

मैं अध्यापक हूं और कई सालों की लड़ाई के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हमारी समस्याओं को सुना और पूरा किया। लेकिन ढीले प्रशासनिक कामकाज के कारण वे आदेश अभी तक नहीं मिले हैं। मेरा प्रमोशन होना है, लेकिन सरकार के आदेश के बाद भी यह काम नहीं हो रहा है। जनपद सीईओ के पास जाता हूँ तो वे जिला शिक्षा अधिकारी के पास भेज देते हैं। डीईओ के पास जाता हूँ तो वे कहते हैं ऊपर से मार्गदर्शन माँगा गया है। जब आदेश ही ऊपर वालों ने दिया है तो उनका मार्गदर्शन कब मिलेगा।

23 जुलाई

बिटिया स्कूल जाने लगी है। जब से वह आई है, तभी से सोच रहा था कि उसे कान्वेंट में पढ़ाऊंगा। लेकिन मेरी इतनी तनख्वाह कहां कि मोटी फीस भर सकूं। मैंने उसे पास के ही एक प्रायवेट स्कूल में भर्ती किया है। फीस भी कम है। घर के पास है तो लाने-ले जाने का खर्चा भी बच जाता है। कल पुराना दोस्त मनीष मिल गया था। मुझसे पढ़ने में कमजोर था। लेकिन पिता की दुकान क्या संभाली, आज ठाठ में मुझसे आगे हैं। मुझे मेरी किस्मत पर गुस्सा भी आया। क्या कहूं, अभी मेरा वेतन 18 हजार रूपए है। बीमा, पेंशन, भत्ता आदि मिलना शुरू नहीं हुआ। इतने कम पैसे और इतनी मंहगाई। कैसे घर चले? पिछले महीने माँ बीमार हो गई तो भइया से पैसे ले कर दवाई लाना पड़ी थी। शाम को घर पहुंचा तो बिटिया ड्रेस की मांग करने लगी। कहती है 15 अगस्त पर पहनना जरूरी होगी तब तक ले आना।

5 अगस्त

आज प्रधानाध्यापक महोदय ने नया आदेश दिया है। समग्र स्वच्छता अभियान में काम करने जाना है। अभी-अभी जनगणना की ड्यूटी खत्म हुई है। अब नया काम मिल गया। मुझे बहुत गुस्सा आता है। अध्यापक जैसे गरीब की गाय हो। जो चाहे वहां काम पर लगा देता है। जबकि न्यायालय और सरकार भी कई बार कह चुके हैं कि हमें शैक्षणिक कार्य के अलावा किसी और काम पर नहीं लगाना है। पिछली बार का किस्सा सुनाता हूं। मेरी जनगणना में ड्यूटी थी कि भोपाल के एक साहब दौरे पर आ गए। गांव वालों ने शिकायत कर दी कि मास्साब नहीं आते हैं। फिर क्या, मुझे सस्पेंड कर दिया। मुझे पता चला तो मैंने कलेक्टर साहब का आदेश दिखाया। तब कहीं जा कर मुझे न्याय मिला। लेकिन तब तक मुझे जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में दर्जनों चक्कर लगाना पड़े। खर्चा हुआ और टेंशन लिया वो अलग।

11 अगस्त

मैं काम पर लौट आया। लेकिन इस बीच स्वतंत्रता दिवस आ गया। बिटिया की ड्रेस नहीं आई अब तक। बार-बार जिद कर रही थी तो मैंने एक तमाचा मार दिया। कितना रोई थी वह। मुझे भी बहुत बुरा लगा। पहली बार मारा था। क्या करूं हालात बिगड़ जाते हैं तो कभी-कभी गुस्सा आ जाता है।

19 अगस्त

मध्याह्न भोजन कितना बड़ा सिरदर्द है। कहने को तो काम करने वाले लोग अलग है। लेकिन कोई गलती हो जाए, खाना खराब हो या कीड़ा निकल जाए तो सस्पेंड होगा मास्टर। पिछले साल पास वाले गांव के एक सर का इंक्रीमेंट रुक चुका है। नहीं जी, कौन बला मोल ले। मैं तो बच्चों को काम दे कर मध्याह्न भोजन की व्यवस्था संभालता हूं। पढ़ाई तो बाद में हो जाएगी। कोई लफड़ा हो गया तो क्या जवाब दूंगा। मन में अकसर खुद ही सवाल पूछता हूँ पढ़ाई का क्या होगा? गुणवत्ता ? लेकिन फिर लगता है कि व्यवस्था ही मुझे बेहतर पढ़ाने नहीं देती तो मैं क्या करूं? वह चाहती है कि मैं मतगणना करूं, लोगों को गिनूं, पशु गिनूं, बच्चों को छोड़ बड़ों को सफाई का पाठ पढ़ाऊं, डाक लाऊं, तमाम योजनाओं के लक्ष्य को पूरा करूं और फिर परिवार का पेट भरने के लिए ज्यादा कमाई का जुगाड़ करूं तो ठीक है। पढ़ाई का क्या?

28 अगस्त

जन शिक्षा केन्द्र गया था, डाक देने। वहां प्रमोशन आदेश का पूछा लेकिन कोई आदेश नहीं आया। इधर हाथ तंग है और समस्या हल नहीं हो रही है। बहुत खीज होती है। लौट कर स्कूल आया तो राकेश और केशव मस्ती कर रहे थे। उत्तर याद करने को दिए थे। दो दिन से पूछ रहा हूँ लेकिन दो उत्तर याद नहीं हुए। दोनों को जमा कर दिए दो। चुपचाप बैठ कर पढ़ाई नहीं कर सकते। समझ नहीं सकते सर परेशान है। बाद में समझाया कि कल याद करके आना।

29 अगस्त

कल शाम को घर गया तो मन खराब था। पत्नी ने पूछ लिया। क्या कहता। उस दिन भी बुरा लगा था, जब बिटिया को पीटा था, आज भी बुरा लगा जब दो बच्चों को पीट दिया। ऐसा थोड़े ही है कि मैं रोज पीटता हूं लेकिन क्या करूं मेरी बात कोई समझता ही नहीं है।

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